अगर आप मुख्य दिल्ली से थोड़ा बाहर निकले, एनसीआर का ही चक्कर काटें तो आपको विशालकाय अपार्टमेंट दिखाई देंगे। इनमें से बहुत से खाली पड़े हुए हैं, वीरान, सांय-सांय करते हुए, बहुत से आधे बने हुए, बीच में अटके हुए से नजर आते हैं। इन्हें देखकर सहज ही लगता है कि हाउसिंग का कारोबार मंदी की गिरफ्त से बाहर नहीं निकल पा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक एनसीआर क्षेत्र में वर्ष 2015 के अंत तक 2.06 लाख इकाइयां खरीदारों के इंतजार में खाली पड़ी हुई थी। एक अध्ययन के मुताबिक पिछले साल हाउसिंग के कारोबर में चार फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। वर्ष 2010 के बाद से यह पहली इतनी बड़ी गिरावट है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा हाउसिंग ऋण में कटौती करने के बावजूद आठ बड़े शहरों में घरों की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है। नाइट फ्रैंक संस्था द्वारा कराए गए अध्ययन के मुताबिक रियल इस्टेट के बाजार में 4 फीसदी गिरावट आई और पिछले साल केवल 2,63,720 मकानों की बिक्री हुई। यह अध्ययन दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, मुंबई, चैन्ने, कोलकाता, बंगलूरू, पूणे, हैदराबाद और अहमदाबाद में किया गया। इसमें अगर नए मकानों की बिक्री पर ध्यान दे, तो इन शहरों में खाली पड़े रियल इस्टेट के अपार्टमेंट की कहानी समझ आती है। वर्ष 2015 में नए घरों की बिक्री में 21 फीसदी गिरावट आई है। इसी वजह से नए घरों की लॉन्च में भी 20 फीसदी की कमी आई है।
निश्चित तौर पर रियल इस्टेट में मंदी बेहद चिंताजनक है। बड़ी-बड़ी कंपनियों की परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं। आगामी बजट में इस बारे में कुछ राहत मिलने के आस में रियल इस्टेट बैठ हुआ है।