पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुके कोरोना वायरस का अर्थव्यवस्था पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने विश्व अर्थव्यवस्था मंदी के गर्त में जा चुकी है। हालांकि उसने यह उम्मीद भी जताई है कि अगले साल से अर्थव्यवस्था सुधरने लगेगी।
अर्थव्यवस्था के हालात 2009 से भी ज्यादा खराब
आइएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टलीना जॉर्जिवा ने वाशिंगटन में संवाददाताओं को बताया कि हमने वर्ष 2020 और 2021 के दौरान ग्रोथ को अनुमानों पर दोबारा गौर किया है। अब यह स्पष्ट है कि विश्व अर्थव्यवस्था 2009 जैसे या कहें तो उससे भी खराब दौर में पहुंच चुकी है। लेकिन आर्थिक गतिविधियों में अगले सुधार दिखाई देने लगेगा। आइएमएफ की गवर्निंग बॉडी इंटरनेशनल मॉनेटरी एंड फाइनेंशियल कमेटी की बैठक के बाद एमडी ने यह जानकारी दी। 189 सदस्य देशों के प्रतिनिधित्व वाले इस संगठन की बैठक में कोरोना वायरस से वैश्विक स्तर पर संक्रमण फैलने से अर्थव्यवस्था के सामने उत्पन्न अप्रत्याशित चुनौती पर चर्चा की गई।
अगर संक्रमण रुका तो अगले साल रिकवरी
उन्होंने कहा कि अगले साल 2021 में भी रिकवरी तभी संभव होगी, अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय कोरोना वायरस को पूरी दुनिया में रोक पाने में सफल होते हैं और नकदी की समस्या को दूर करते हैं। दुनिया की बाकी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तरह अमेरिका भी मंदी की शिकार है। बड़ी संख्या में विकासशील अर्थव्यस्थाओं पर भी इसका असर है। इसका असर कितना व्यापक है, इस पर हम काम कर रहे हैं। हम 2020 के संशोधित अनुमानों पर काम कर रहे हैं। नए अनुमान अगले कुछ हफ्तों में जारी होने की संभावना है।
संक्रमण रोकना सबसे बड़ी चुनौती
आइएमएफ प्रमुख ने कहा कि आर्थिक गतिविधियों के थमने और अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने की मुख्य वजह कोरोना वायरस का फैलाव है। इसके फैलाव को रोकने से ही हम इस स्थिति से बाहर निकलेंगे और रिकवरी शुरू होगी। उन्होंने कहा कि जब तक वायरस पर अंकुश नहीं लगता है, तब हम सामान्य हालात की तरफ नहीं लौट सकते हैं।
दिवालिया और बड़े पैमाने पर छंटकी की आशंका
जॉर्जिवा ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था के थमने का लंबे अरसे से जारी रहने वाला प्रभाव प्रमुख चिंता का कारण है। इसके कारण कंपनियों के दिवालिया होने और बड़े पैमाने पर छंटनी शुरू होने का खतरा है, जिससे कारण रिकवरी भी प्रभावित होगी। इससे सामाजिक ढांचे का बिखराव शुरू हो सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए कई देश स्वास्थ्य की समस्याएं दूर करने और अर्थव्यवस्था को संभालने के उपायों में जुट गए हैं।