अच्छे दिन के वादे के साथ आई मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में आई थी, तो उस समय सबसे ज्यादा उम्मीद इकोनॉमी की रफ्तार को लेकर थी। ऐसा इसलिए था कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी की छवि एक रिफॉर्मर की थी। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने देश में तीन प्रमुख पोजीशन पर वैश्विक स्तर के अर्थशास्त्रियों को भी बैठाया। जिसमें पहला नाम अरविंद पनगढ़िया का था, जिन्हें सरकार ने नीति आयोग का वाइस चेयरमैन बनाया। इसी तरह वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद अरविंद सुब्रमण्यन को दिया गया। वहीं आरबीआई गवर्नर के रूप में रघुराम राजन जैसे हेवीवेट के बाद उर्जित पटेल को कमान दी। लेकिन मोदी सरकार अभी अपना कार्यकाल पूरी भी नहीं कर पाई और तीनों बड़े चेहरे मोदी सरकार से अलग हो चुके हैं।
अरविंद पनगढ़िया
अरविंद पनगढ़िया जनवरी 2015 से अगस्त 2017 तक नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे। पनगढ़िया भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री हैं और कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। उनका नाम दुनिया के सबसे अनुभवी अर्थशास्त्रियों में लिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग गठन किया था, तब पनगढ़िया को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए उपाध्यक्ष चुना गया था। पनगढ़िया कई पुस्तक भी लिख चुके हैं। उनकी पुस्तक “इंडिया द इमरजिंग ज्वाइंट 2008” में इकोनॉमिस्ट की ओर से सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक में शामिल हो चुकी है। मार्च 2012 में उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है।
अरविंद सुब्रमण्यन
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने 16 अक्टूबर 2014 से 20 जून 2018 तक इस पद पर रहे। उन्होंने सरकार से कार्यकाल न बढ़ाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वह अमेरिका लौट रहे हैं। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने फेसबुक पोस्ट के जरिये यह जानकारी दी थी। सुब्रमण्यन को 16 अक्टूबर 2014 को वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई थी। 2017 में उनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया गया था।
अरविंद सुब्रमण्यन ने हाल ही में रिलीज अपनी किताब ‘ऑफ काउंसेल: द चैलेंजेज ऑफ द मोदी-जेटली इकोनॉमी’ में जीएसटी समेत मोदी सरकार की कई नीतियों की आलोचना की है। उन्होंने आगाह किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था कुछ समय के लिए मंदी के दौर में फंस सकती है। उन्होंने कहा कि बजट में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से राजस्व वसूली का लक्ष्य तर्कसंगत नहीं है।
सुब्रमण्यन ने कहा, ‘बजट में जीएसटी से वसूली के लिए जो लक्ष्य रखा गया है, वह व्यवहारिक नहीं है। मैं स्पष्ट तौर पर कहूंगा कि बजट में जीएसटी के लिए अतार्किक लक्ष्य रखा गया है। इसमें 16-17 प्रतिशत (वृद्धि) की बात कही गई है।’ सुब्रमण्यन ने कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता में कटौती नहीं की जानी चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि आरबीआई की अतिरिक्त आरक्षित राशि का इस्तेमाल सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के पूंजीकरण के लिए करना चाहिए न कि सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए।
उर्जित पटेल
जब सरकार और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बीच मतभेद बढ़े थे, तब उर्जित पटेल को उनकी जगह लाया गया। माना जा रहा था कि सरकार रघुराम राजन का कार्यकाल बढ़ा सकती है लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। 4 सितंबर 2016 को उर्जित पटेल आरबीआई गवर्नर का पद संभाला था। बाद में आरबीआई और सरकार के बीच मतभेद उभरकर सामने आने लगे। उर्जित पटेल ने कार्यकाल पूरा होने से 9 महीने पहले ही इस्तीफा दिया है। सितंबर 2019 में पटेल का कार्यकाल खत्म होने वाला था।
28 अक्टूबर 1963 को जन्मे उर्जित की प्रारंभिक शिक्षा केन्या में हुई। उन्होंने बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की डिग्री हासिल की। इसके बाद 1986 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एम फिल की डिग्री ली। 1990 में उन्होंने येल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि ली।
शिक्षा के बाद उनके काम की बात करें तो उर्जित 1996 से 1997 तक आरबीआई में आईएमएफ के सलाहकार के तौर पर काम किया। 1998 से 2001 तक वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के सलाहकार के तौर पर काम किया। वह प्राइवेट और सरकारी संस्थानों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं।
उर्जित बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए भी काम कर चुके हैं। वह केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ वॉशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (इंटरनेशनल मोनेट्री फंड) में 1990 से 1995 तक कार्य कर चुके हैं। उन्होंने 7 जनवरी 2013 को आरबीआई के डिप्टी गवर्नर का पद संभाला। इसके बाद आरबीआई के गवर्नर बने।