वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दशक का पहला बजट पेश करते हुए उसकी थीम “आकांक्षी भारत, आर्थिक विकास और हितैषी समाज” बताई। इस बजट से आम आदमी, किसान, कॉरपोरेट जगत को भी कई सारे आकांक्षाए थी। उसे उम्मीद थी कि मंदी के भंवर में फंस चुकी अर्थव्यवस्था को निकालने के लिए वित्त मंत्री लोगों के बजट में इजाफा करेंगी। इसके लिए उन्होंने टैक्स छूट का ऐलान भी किया। बजट भाषण के दौरान 5-10 फीसदी तक टैक्स छूट का ऐलान काफी बड़ा लगा था। लेकिन भाषण खत्म होते-होते वह झुनझुना ही साबित हुआ।
क्योंकि एक तो उन्होंने टैक्स कटौती का लाभ देने के लिए टैक्स सेविंग का विकल्प ही हटा दिया है। यानी अगर 5-10 फीसदी की टैक्स छूट लेनी है तो आपको 80 सी सहित दूसरे विकल्प का फायदा नहीं मिलेगा। साथ ही 50 हजार रुपये का मिलने वाला स्टैण्डर्ड डिडक्शन भी छोड़ना होगा। सी.ए. समीर गोगिया के कैलकुलेशन के अनुसार, नया टैक्स विकल्प चुनने पर कम आय वाले करदाता को जहां नुकसान होगा, वहीं ज्यादा इनकम वालों को फायदा होगा। इसी तरह वित्त मंत्री ने भाषण में तो यह कहा कि नए टैक्स सिस्टम से करदाता को सिंपल सिस्टम मिलेगा। लेकिन उन्होंने अब चार की जगह सात टैक्स स्लैब बना दिए हैं। जाहिर अब टैक्स सिस्टम कहीं ज्यादा पेचीदा हो गया है। क्योंकि करदाता को यह हिसाब लगाने में भी काफी माथा-पच्ची करनी होगी कि वह पुराना टैक्स सिस्टम अपनाकर फायदे में रहेगा या फिर नए टैक्स सिस्टम से उसे फायदा मिलेगा। साथ ही वित्त मंत्री ने कम टैक्स के लिए प्रोत्साहन दिया है लेकिन इसका नेगेटिव इंपैक्ट यह भी हो सकता है कि करदाता टैक्स बचाने के लिए सेविंग से परहेज करने लगेंगे क्योंकि अभी तक वह टैक्स बचाने के बहाने एलआईसी, पीपीएफ, एनपीएफ जैसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में निवेश करते हैं। लेकिन जब उन्हें लगेगा कि इसमें बचत करने का फायदा नहीं मिलेगा तो इन योजनाओं में बचत नहीं करेंगे और इसका उन्हें लंबी अवधि में नुकसान हो सकता है।
इसके अलावा वित्त मंत्री ने डिपॉजिट इन्श्योरेंस की लिमिट 5 लाख रुपये बढ़ाकर आम निवेशक के बैंकिंग सेक्टर पर डगमगाते भरोसे को संभालने की कोशिश की है। अभी तक बैंकों में रखी जमाओं पर एक लाख रुपये तक का इन्श्योरेंस कवर मिलता था। नई लिमिट के बाद भारतीय बैंकिंग सिस्टम अब अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर हो गया है।
टैक्स कलेक्शन बड़ी चुनौती
वित्त मंत्री के 2 घंटे 41 मिनट के भाषण में एक बात साफ थी कि वह अर्थव्यवस्था को लेकर खड़ी चुनौती को अब खुलकर स्वीकार लगी हैं। उन्होंने यह मान लिया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा। वित्त मंत्री ने कहा है कि इस साल यह 3.8 फीसदी रहेगा। हालांकि अगले साल के लिए उन्होंने 3.5 फीसदी का ही लक्ष्य रखा है। जिसे हासिल करना उनके मुश्किल होने वाला है। साल 2020-21 के लिए वित्त मंत्री ने 30 लाख 42,230 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है। इसके तहत सरकार को उम्मीद है कि 24 लाख 23,020 करोड़ रुपये टैक्स रेवेन्यू आएगा। जिसमें कॉरपोरेशन टैक्स से 6,81,000 करोड़ रुपये, इनकम टैक्स से 6,38,000 करोड़ और जीएसटी से 6,90,500 करोड़ रुपये कमाई की उम्मीद है। खास बात यह है कि कमाई का यह लक्ष्य काफी आशाओं भरा है। क्योंकि 2019-20 में सरकार कॉरोपोरेशन टैक्स, इनकम टैक्स , जीएसटी आदि किसी भी टैक्स का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई है। ऐसे में जब कॉरपोरेशन टैक्स और पर्सनल इनकम टैक्स में बड़ी कटौती की गई और अर्थव्यवस्था अभी भी सुस्ती में है तो कैसे टैक्स बढ़ेगा, ये बड़ा सवाल है।
विनिवेश का लक्ष्य काफी महात्वाकांक्षी
सरकार ने अपने कमाई बढ़ाने के लिए साल 2020-21 के लिए 2.10 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश का लक्ष्य रखा है। लेकिन यह बहुत महात्वाकांक्षी लगता है। खास तौर से 2019-20 के प्रदर्शन को देखते हुए , यह बात और सिद्ध होती है। इस साल के लिए सरकार ने 1.05 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा था लेकिन उसे केवल 65 हजार करोड़ रुपये ही मिले थे। ऐसे में लगता है सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम से ही उम्मीदें लगा रखी है। ऐसा पहली बार होगा जब सरकार एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी। इसी तरह आईडीबीआई बैंक में मौजूद 46.5 फीसदी हिस्सेदारी को भी बेचने का फैसला किया है।
प्रमुख योजनाओं का हाल
गिरती कमाई का असर सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं पर भी दिख रहा है। मसलन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के बजट में कटौती कर दी गई है। साल 2019-20 मे जहां सरकार ने इस पर 71002 करोड़ रुपये खर्च किए, वहीं नए साल के लिए 61500 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया है। इसी तरह प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बजट में न के बराबर बढ़ोतरी की गई है। वह इस बार 19500 करोड़ रुपये है। जबकि पिछले साल यह 19 हजार करोड़ रुपये थी। स्मार्ट सिटी मिशन का बजट 13750 करोड़ रुपये ही रखा गया है। फसल बीमा योजना 15000 करोड़ कर दिया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का बजट पिछले बार की तरह 75 हजार करोड़ ही रखा गया है। हालांकि लाभार्थियों की सख्या कम होने से 2019-20 में सरकार 54370 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई थी। प्रधानमंत्री आवास योजना की रकम 25853 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 27500 करोड़ रुपये किया गया है।
ग्रामीण भारत और किसान
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 16 सूत्रीय एजेंडा पेश किया है। इसके तहत सोलर पंप के लिए पीएम-कुसुम योजना, खाद्य पदार्थों को नकुसान से बचाने के लिए किसान रेल और किसान उड़ान स्कीम लांच करने का भी ऐलान किया है। सरकार ने इसके अलावा नए वित्त वर्ष के लिए 15 लाख करोड़ रुपये कृषि ऋण का भी लक्ष्य रखा है। इसी तरह 2022-23 के लिए मतस्य उत्पादन 200 लाख टन और 2024-25 तक एक लाख करोड़ रुपये मतस्य निर्यात का भी लक्ष्य तय किया गया है।
डीडीटी हटा फिर भी नुकसान
कंपनियों के लिए डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (डीडीटी) खत्म कर दिया गया है, अब डिविडेंड पाने वाले निवेशक को यह टैक्स चुकाना पड़ेगा। कंपनियों के लिए डीडीटी 15% है। सरचार्ज और सेस मिलाकर यह 20.56% बनता है। साल में 10 लाख रुपये से ज्यादा डिविडेंड पाने वाले के लिए 10% अतिरिक्त टैक्स (सरचार्ज और सेस अलग) का प्रावधान है। बजट में इस 10% अतिरिक्त टैक्स को हटा दिया गया है, लेकिन कंपनी डिविडेंड देते समय 10% टीडीएस काटेगी। नई व्यवस्था में बड़े निवेशक घाटे में रहेंगे। उनके लिए इनकम टैक्स की प्रभावी दर 42.74% होती है, इसलिए उन्हें डिविडेंड आय पर करीब 28.5% ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा। हालांकि विदेशी निवेशकों को फायदा है। दोहरी कर संधि के तहत उन्हें टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा और उन्हें 20.56% टैक्स राशि की बचत होगी।
सब्सिडी का झटका
सरकार ने 2020-21 के लिए 2.22 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी बिल रखा है। जो कि 2019-20 से 0.23 फीसदी ही ज्यादा है। अहम बात यह है कि इस बार फर्टिलाइजर सब्सिडी में 11 फीसदी की कटौती कर दी गई है। इसी तरह केरोसिन सब्सिडी को करीब 800 करोड़ रुपये घटा दिया गया है। हालांकि एलपीजी पर दी जाने वाली सब्सिडी में 3000 करोड़ रुपये का इजाफा किया गया है। इनके अलावा एजुकेशन सेक्टर के लिए 99,300 करोड़ रुपये और हेल्थ सेक्टर के लिए 66 हजार करोड़ का आवंटन किया गया है। इसी तरह इंफ्रा सेक्टर को लेकर पहले से जारी योजनाओं पर ही सरकार का फोकस है। इस साल ट्रांसपोर्ट इंफ्रा पर 1.70 लाख करोड़ रुपये का प्रावधन किया गया है। वित्त मंत्री पहले ही कह चुकी है कि 103 लाख करोड़ रुपये अगले 5 साल में खर्च किए जाएंगे। अब देखना यह है कि इन योजनाओं से वाकई जीडीपी ग्रोथ सरकार के लक्ष्य के मुताबिक 2020-21 में 6-6.5 फीसदी तक पहुंचती है या पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम का कहना कि सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद छोड़ चुकी है। वह बात सच होती है।