भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने उम्मीद जताई है कि जल्दी ही देश के सभी बैंकों के लोन और डिपॉजिट की ब्याज दर मौद्रिक नीति से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ जाएंगी। इससे रेपो रेट में बदलाव के साथ ही लोन और डिपॉजिट की ब्याज दरें बदलने लगेंगी। भारतीय स्टेट बैंक समेत एक दर्जन से ज्यादा सरकारी बैंक स्वेच्छा से अपने लोन और डिपॉजिट को रेपो रेट से जोड़ चुके हैं।
छह बैंकों ने स्वेच्छा से उठाया कदम
सबसे पहले एसबीआइ ने मई में अपने डिपॉजिट को रेपो रेट से जोड़ दिया था। इसके बाद जुलाई में होम लोन को भी इससे जोड़ दिया गया। बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक और केनरा बैंक भी उन बैंकों में शामिल हैं जिन्होंने पिछले अपने कर्जों को पिछले सप्ताह रेपो रेट से जोड़ने की घोषणा कर दी। आरबीआइ की हाल की मौद्रिक नीति के साथ ही इन बैंकों ने अपनी ब्याज दरों को रेपो रेट से जोड़ दिया। मौद्रिक नीति की घोषणा के समय आरबीआइ ने कहा कि बैंकों की वित्तीय स्थिति देखते हुए उन्हें समय मिलना चाहिए। इस वजह से इन बैंकों ने स्वेच्छा से यह कदम उठाया।
तुरंत मिलेगा रेपो रेट घटने का फायदा
इस व्यवस्था के तहत आरबीआइ के रेपो रेट में बदलाव के साथ ही बैंकों को अपने लोन और डिपॉजिट के ब्याज में बदलाव करना होता है। रेपो रेट में कमी के साथ ही लोन में ग्राहकों को ब्याज दर में कटौती का फायदा मिलना चाहिए। लेकिन बैंक रेपो रेट में बदलाव के साथ अपने मार्जिनल कॉस्ट बेस्ड लैंडिंग रेट (एमसीएलआर) में बदलाव नहीं करते थे। शिकायत रहती थी कि बैंक रेपो रेट में कटौती का पूरा लाभ ग्राहकों को नहीं दे रहे हैं। जबकि आरबीआइ रेपो रेट में कटौती का प्रभाव जल्द से जल्द चाहता है ताकि इसका लाभ अर्थव्यवस्था और कर्जदारों को मिल सकें।
आरबीआइ ने कहा, बैंक जल्द लागू करें नई व्यवस्था
शक्तिकांत दास ने मुंबई में वार्षिक बैंकिंग कांफ्रेंस में कहा कि बाहरी बेंचमार्क पर ब्याज का निर्धारण जल्द होना चाहिए। हमें उम्मीद है कि बैंक इस पर तेजी से काम करेंगे। अब समय आ गया है कि बैंक अपनी ब्याज दरें रेपो रेट के साथ जोड़ें। नियामक केतौर पर हम अपनी भूमिका निभाएंगे। उन्होंने कहा कि आरबीआइ ने अभी तक इसके बारे में कोई निर्देश नहीं दिया क्योंकि हम देखना चाहते थे कि बाजार में इसे स्वतः कैसे देखा जाता है। लेकिन अब इस प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता है।
ब्याज में और कटौती के संकेत
आरबीआइ गवर्नर ने आर्थिक सुस्ती को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती के प्रति नरम रुख अपनाने के संकेत दिए और कहा कि विकास को रफ्तार देने हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। भारतीय बैंकिंग सिस्टम के सामने मौजूद चुनौतियों को देखते हुए भी इसकी दरकार है।
फंड जुटाने की सफलता बैंकों की असली परीक्षा
बैंकों में कॉरपोरेट गवर्नेंस का सख्ती से पालन किए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए दास ने कहा कि पूंजी बाजार से फंड जुटाने की सरकारी बैंकों की क्षमता उनके लिए वास्तविक परीक्षा है। दिवालिया कानून में हाल के संशोधनों की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि इससे बैंकिंग क्षेत्र को कर्ज वसूलने में मदद मिलेगी। नए संशोधनों से वित्तील देनदारों को ऑपरेशनल क्रेडिटर्स से ज्यादा अधिकार मिले हैं। वे दिवालिया कंपनी के असेट बेचकर या फिर उसकी कंपनी को बंद करके कर्ज वसूल सकते हैं।
एनबीएफसी की असेट क्वालिटी रिव्यू अभी नहीं
आरबीआइ गवर्नर ने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) की असेट क्वालिटी रिव्यू के लिए आदेश देने से इन्कार किया है। हालांकि उन्होंने कहा कि किसी भी बड़े एनबीएफसी को फेल न होने देने के लिए नियामकीय उपाय किए जाएंगे। पिछले साल सितंबर में देश में सबसे बड़े एनबीएफसी में से एक आइएलएंडएफएस ग्रुप के पिछले साल सितंबर में दिवालिया होने के बाद कई वित्तीय कंपनियां भारी दबाव में आ गईं। देश में करीब 12000 एनबीएफसी काम कर रही हैं। इनमें बड़ी संख्या में हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां शामिल हैं। देश के समूचे क्रेडिट मार्केट में एनबीएफसी की हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी है।