- अजीत सिंह
पहली बात तो यह कि सही मायनों में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया ही नहीं जाता। इसकी वजह यह है कि अर्थशास्त्र के सम्मान की शुरुआत अल्फ्रेड नोबेल की मौत के 72 साल बाद सन 1968 में हुई थी। अर्थशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बैंक ऑफ स्वीडन पुरस्कार दिया जाता है, जिसकी मान्यता नोबेल पुरस्कार के बराबर ही है।
हर साल की तरह इस बार भी नोबेल पुरस्कारों का ऐलान हुआ। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस ने अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थालेर को यह सम्मान देने का फैसला किया है। बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स यानी व्यवहारगत अर्थशास्त्र में उन्होंने वाकई बड़ा काम किया है। बेतुके खर्चों और रुपये-पैसे से जुड़े गलत फैसलों के पीछे मनोविज्ञान पर उनके शोध का लोहा दुनिया भर में माना जाता है। मगर भारत में उनके नाम का ऐलान होते ही एक अलग ही बहस छिड़ गई, जो आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित है।
नोटबंदी और जीएसटी के बाद अर्थव्यवस्था में गिरावट को लेकर आलोचना झेल रही केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के लिए थालेर का सम्मान काफी मायने रखता है। इसलिए भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने ट्वीट कर जताना चाहा कि उन्होंने नोटबंदी का समर्थन किया था। इसके लिए मालवीय ने थालेर के पुराने ट्वीट को शेयर किया। इस ट्वीट में मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर टिप्पणी करते हुए थालेर लिखते हैं कि इस नीति का वह लंबे समय से समर्थन करते रहे हैं। भ्रष्टाचार मिटाने और कैशलेस की दिशा में यह पहला कदम है।
Richard Thaler just won the Nobel for Economics.. pic.twitter.com/oUvSGO0dbX
— Amit Malviya (@malviyamit) October 9, 2017
अमित मालवीय कोई मामूली आदमी नहीं हैं। सोशल मीडिया पर भाजपा का पूरा प्रचार अभियान उनके नेतृत्व में चलता है। उनके इस ट्ववीट के बाद भाजपा के छोटे-बड़े नेताओं ने दावा करना शुरू कर दिया कि नोबेल पुरस्कार विजेता ने किया था नोटबंदी का समर्थन!अपने बयानों के लिए चर्चित केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नसीहत दे डाली कि कांग्रेस के “महान अर्थशास्त्रियों” को इस अर्थशास्त्री से मिलना चाहिए। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी भाजपा आईटी सेल के प्रमुख के ट्वीट को शेयर किया। देखते ही देखते यह बात खबरों में छा गई।
हालांकि, भाजपा नेताओं का यह दावा ज्यादा देर नहीं टिक पाया। फर्जी खबरों की पड़ताल करने वाले पोर्टल www.altnews.in के संचालक प्रतीक सिन्हा ने सिक्के का दूसरा पहलू उजागर करते हुए थालेर का वह ट्वीट भी दिखाया, जिसमें वह 2,000 रुपये का नोट शुरू करने के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। रिचर्ड थालेर ने नोटबंदी का समर्थन किया था, यह सिर्फ आधा सच है। पूरी बात यह है कि उन्होंने 2 हजार रुपये को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। नोटबंदी पर थालेर के समर्थन का श्रेय लूटने वाले लोग इस तथ्य को छिपा गए। थालेर कैशलेस व्यवस्था के पक्के समर्थक हैं। इसे लेकर उनकी आलोचना भी होती है।
Left: The complete story
— Pratik Sinha (@free_thinker) October 9, 2017
Right: What @girirajsinghbjp portrayed. pic.twitter.com/b4rfsSbLgi
सोशल मीडिया के दौर में भ्रम जितनी तेजी से फैलता है, उसकी हवा निकलने में भी देर नहीं लगती। बहरहाल, अर्थशास्त्र का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार जितने वाले रिचर्ड थालेर का नोटबंदी की बहस तक सीमित रखना उचित नहीं होगा। बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स यानी व्यवहारगत अर्थशास्त्र पर उनकी किताब 'नज' खर्च करने के तौर-तरीकों और गलत फैसलों के मनोविज्ञान की गहरी पड़ताल करती है।
ऐसे समय जब दुनिया भर आर्थिक उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के उपायों के बारे में सोचा जा रहा है, थालेर का काम गलत फैसलों से बचने में मददगार हो सकता है। थालेर के रिसर्च ने बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स को पहचान दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई है। कैसे लोग महंगी चीज को बेहतर समझते हैं? फ्री सुनते ही कैसे खींचे चले आते हैं? थालेर ऐसे सवालों की पड़ताल करते हैं। नीतियों के निर्धारण में आर्थिक व्यवहार की समझ के इस्तेमाल का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है।
जूलियन असांजे भी बहस में कूदे
थालेर को लेकर भारत में चल रही बहस में विकिलीक्स के प्रकाशक जूलियन असांजे भी कूद गए। असांजे ने ट्वीट किया है कि थालेर सर्वसत्तावाद राज्य के खतरनाक पैरोकार हैं जो बगैर निगारनी वाले आर्थिक लेन-देन को खत्म करना चाहते हैं। स्वीडन सबसे ज्यादा कैशलेस समाज है। भारत में नोटबंदी के बाद कैशलेस और आधार के जरिए निगरानी को लेकर बहस छिड़ी हुई है।
नोटबंदी को लेकर जिन लोगों को आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की आलोचना रास नहीं आती और थालेर का समर्थन अच्छा लग रहा है। उन्हें रघुराम राजन के बार में थालेर के इस ट्ववीट पर भी गौर करना चाहिए। नोबेल पुरस्कार विजेता रघुराम राजन के बारे में क्या सोचता है, इसकी झलक यहां देखी जा सकती है। दोनों शिकागो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं। दोनों ही इस बार नोबेल पुरस्कार की दौड़ में थे।