हालांकि अमेरिका की रेटिंग एजेंसी ने अक्तूबर-दिसंबर तिमाही के लिये 7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर को चकित करने वाला बताया है। इससे पिछली तिमाही में यह 7.4 प्रतिशत थी। फिच ने कहा, यह आंकड़ा थोड़ा चकित करने वाला है क्योंकि वास्तविक गतिविधियों के बारे में नोटबंदी के बाद जो आंकड़े जारी किये थे, वे खपत तथा सेवा गतिविधियों में गिरावट का संकेत देते हैं। इसका कारण इन गतिविधियों का नकदी से जुड़ा होना है। इसके विपरीत आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2016 की चौथी तिमाही में निजी खपत मजबूत (हालांकि सेवा उत्पाद वृद्धि उल्लेखनीय रूप से नरम हुई) थी। एजेंसी को उम्मीद है कि भारत की जीडीपी वृद्धि 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रहेगी जो 2017-18 और 2018-19 दोनों वित्त वर्ष में बढ़कर 7.7 प्रतिशत तक हो जाएगी।
उसने कहा कि दिसंबर तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े बताते हैं कि नकदी की समस्या से आर्थिक गतिविधियों पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ा। सरकार ने नवंबर में बड़ी राशि के नोटों को चलन से हटाने का निर्णय किया जो कुल मुद्रा का 86 प्रतिशत था।
इस विसंगति के बारे में फिच ने कहा कि हो सकता है कि सरकारी आंकड़ा नोटबंदी के नकारात्मक प्रभाव को शामिल करने में सक्षम नहीं हो। हालांकि संगठित क्षेत्र आश्चर्यजनक तरीके से मजबूत बना रहा।
रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार, इससे यह आशंका बढ़ी है कि वृद्धि के इन आरंभिक अनुमान में नोटबंदी के प्रभाव को कमतर आंका गया हो। ऐसे में आधिकारिक जीडीपी के आंकड़े में बाद में संशोधन की संभावना है।
फिच ने कहा, संरचनात्मक सुधार के एजेंडे को धीरे-धीरे आगे बढ़ाने, सरकारी कर्मचारियों के वेतन में करीब 24 प्रतिशत की वृद्धि के साथ लोगों की खर्च योग्य आय में वृद्धि से उच्च वृद्धि की उम्मीद है। रेटिंग एजेंसी का यह अनुमान सीएसओ और वैश्विक शोध संस्थान ओईसीडी के अनुमान के अनुरूप है। फिच ने कहा कि उसे नीतिगत ब्याज दर मौजूदा 6 . 25 प्रतिशत पर बने रहने की उम्मीद है।
भाषा