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सरकार पेट्रोल-डीजल पर फिर बढ़ा सकती है एक्साइज ड्यूटीः एसबीआई रिपोर्ट

कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भले दो दशक के निचले स्तर पर आ गया हो, लेकिन आम लोगों को इससे खास राहत...
सरकार पेट्रोल-डीजल पर फिर बढ़ा सकती है एक्साइज ड्यूटीः एसबीआई रिपोर्ट

कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भले दो दशक के निचले स्तर पर आ गया हो, लेकिन आम लोगों को इससे खास राहत नहीं मिलने वाली है। अपना घाटा कम करने और कोरोना वायरस पीड़ितों के इलाज पर हो रहे खर्च को देखते हुए सरकार पेट्रोल और डीजल पर फिर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा सकती है। गुरुवार को जारी एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “अगर कच्चे तेल के दाम 30 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बने रहे, और सरकार ने एक्साइज ड्यूटी न बढ़ाई होती तो पेट्रोल-डीजल के दाम 10 से 12 रुपये प्रति लीटर कम हो सकते थे। लेकिन सरकार आगे भी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर इनके दाम में कटौती को सीमित कर सकती है।”

पिछले शनिवार को प्रति लीटर तीन रुपये बढ़ी थी ड्यूटी

इससे पहले शनिवार, 14 मार्च को सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी तीन रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी थी। इससे केंद्र सरकार को एक साल में 45,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी। रिपोर्ट के अनुसार, “एक्साइज ड्यूटी तीन रुपये बढ़ाने के बाद कच्चे तेल के मौजूदा स्तरों पर पेट्रोल के दाम में अधिकतम 4.25 रुपये और डीजल में 3.75 रुपये की कटौती हो सकती है। इसलिए उम्मीद है कि सरकार एक बार फिर एक्साइज बढ़ा सकती है।”

एक्साइज संग्रह में पेट्रोलियम पदार्थों का हिस्सा 90 फीसदी

देश में जीएसटी 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था, लेकिन पेट्रोलियम पदार्थ अभी इसके दायरे से बाहर हैं। इन पर अब भी केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकारें वैट वसूलती हैं। एक्साइज प्रति लीटर के हिसाब से और वैट कुल कीमत पर लगता है। जीएसटी लागू होने के बाद कुल एक्साइज ड्यूटी संग्रह में 85-90 फीसदी हिस्सा पेट्रोलियम पदार्थों का ही होता है। 2019-20 के पहले नौ महीनों में पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज ड्यूटी से सरकार को 1.5 लाख करोड़ रुपये मिले हैं।

कोरोना के कारण घाटे पर नियंत्रण रखना मुश्किल

रिपोर्ट में कोरोना वायरस के कारण सरकार के सामने उपजी कठिन परिस्थिति का भी जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि इसके इलाज पर हो रहे खर्च के कारण सरकार के लिए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखना मुश्किल होगा। अगर कर राजस्व का मौजूदा ट्रेंड जारी रहा, तो मौजूदा वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.8 फीसदी पर रखने के लिए सरकार को 1.2 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व की जरूरत पड़ेगी।

अगले वित्त वर्ष में ज्यादा दिख सकता है असर

रिपोर्ट के अनुसार, “कोविड-19 का जीडीपी पर असर ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट और कम्युनिकेशन सर्विसेज के जरिए पड़ेगा। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ने के आसार हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 10 फीसदी रहने का अनुमान है। इसमें 0.1 फीसदी गिरावट आने से राजकोषीय घाटा 0.01 फीसदी बढ़ जाएगा। हमारा अभी तक का अनुमान है कि मौजूदा वित्त वर्ष में ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट और कम्युनिकेशन सर्विसेज के कारण जीडीपी वृद्धि दर 0.9 फीसदी घट सकती है। अगले साल असर और ज्यादा होगा।”

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