देश की सबसे बड़ी कॉफी चेन कैफे कॉफी डे (सीसीडी) के संस्थापक वी. जी. सिद्धार्थ एक समय में देश के चुनिंदा सफल उद्यमियों में शुमार होते थे। अनायास कारोबार और उनकी तकदीर ने ऐसा करवट ली कि उन्हें सब कुछ खत्म होता नजर आया। फिर भी उनकी संपत्ति देखकर लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि वे आसानी से संकट से उबर सकते थे, फिर उन्होंने हार कैसे मान ली। उन्होंने स्टाफ को लिखे पत्र में एक प्राइवेट इक्विटी पार्टनर पर परेशान करना आरोप लगाया है।
शेयर बायबैक के लिए था दबाव
सिद्धार्थ ने स्टाफ को लिखे पत्र में कहा कि उन्होंने कंपनी को पटरी पर लाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया लेकिन अब वह छोड़ रहे हैं क्योंकि वह और ज्यादा दबाव नहीं झेल सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि एक प्राइवेट इक्विटी पार्टनर शेयर बायबैक के लिए लगातार दबाव डाल रहा था।
मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर शुरू किया था कारोबार
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस. एम. कृष्णा के दामाद सिद्धार्थ ने देश में कॉफी शॉप की विस्तृत चेन खोलकर इसकी नई कल्चर विकसित की। मैंगलौर यूनीवर्सिटी से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने 1983 में चिकमंगलूर में जेएम फाइनेंशियल के साथ मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर कैरियर शुरू किया था।
कॉफी कल्चर ने बनाया सफल उद्यमी
इसके बाद उन्होंने 1992 में एमलगमेटेड बीन कंपनी (वर्तमान नाम कॉफी डे ग्लोबल) शुरू की जो कॉफी खरीदने, प्रोसेसिंग करने और रिटेलिंग के लिए रोस्टिंग का काम करती थी। इसकी सफलता के बाद उन्होंने 1996 में नए आइडिया पर काम करते हुए बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड पर देश की पहला कैफे कॉफी डे शॉप खोली। उस समय अर्थव्यवस्था में खुलापन शुरू ही हुआ था। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था को खोला गया, उसकी रफ्तार तेज होती चली गई। इसके चलते उनका कैफे कॉफी डे यानी सीसीडी का फॉर्मूला हिट हो गया। आज देश भर में 250 शहरों में उसके 1751 आउटलेट काम कर रहे हैं। कंपनी ऑस्ट्रिया, चेक रिपब्लिक, मलेशिया, नेपाल और मिस्र में भी कारोबार कर रही है।
2015 में आइपीओ के साथ आया संकट
कंपनी कॉफी के अलावा वेल्थ मैनेजमेंट के कारोबार में भी लगी है। बीते वित्त वर्ष 2018-19 में उसका कारोबार 3788 करोड़ रुपये हो गया। लेकिन 2015 में सीसीडी की प्रमोटर कंपनी कॉफी डे एंटरप्राइजेज घाटे में चली गई। कंपनी उसी साल आइपीओ लेकर आई और शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हुई। सिद्धार्थ ने इस साल जून में कहा कि वह आइपीओ की पूंजी का इस्तेमाल कर्ज अदा करने में करेंगे और बाकी पैसा कंपनी विस्तार और कॉरपोरेट गतिविधियों में लगाएगी। लेकिन कंपनी पर कर्ज का भार अत्यधिक था। जून 2015 में कंपनी पर 2672 करोड़ रुपये कर्ज था। जो 2018 में बढ़कर 3323 करोड़ रुपये हो गया।
पैसा मिलने की उम्मीद के बाद भी हार क्यों मानी
लेकिन कंपनी आइपीओ की पूंजी और आइटी कंपनी माइंड ट्री में अपनी 20.4 फीसदी हिस्सेदारी बेचकर आसानी से संकट से उबर सकते थे। 20 साल पहले माइंड ट्री में उन्होंने 340 करोड़ रुपये निवेश किया था और 20.4 फीसदी हिस्सेदारी ली ती जिसे बेचकर उन्होंने 3000 करोड़ रुपये हासिल किए। यहीं नहीं, संकट से उबरने के लिए उनकी बातचीत कोका कोला से भी चल रही थी जो उनकी सीसीडी चेन खरीदने को तैयार थी। अनुमान ते मुताबिक उनके कारोबार की वैल्यूशन करीब 8000-10,000 करोड़ रुपये थी। लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि इससे सिद्धार्थ आसानी से संकट से न सिर्फ उबर सकते थे, बल्कि अच्छी रकम बना सकते थे और अपने कारोबार को डायवर्सीफाइ कर सकते थे। ऐसे में उन्हें हार मानने की क्या आवश्यकता थी।
सफल बिजनेस मॉडल बनाने में नाकामी का दर्द
गुमशुदगी के बाद सिद्धार्थ का एक पत्र सामने आया है, जो उन्होंने अपनी कंपनी के निदेशक मंडल को लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि तमाम कोशिशों के बावजूद मैं मुनाफे वाला बिजनेस मॉडल तैयार करने में नाकाम रहा। मैंने लंबे समय तक संघर्ष किया, लेकिन अब और दबाव नहीं झेल सकता। एक प्राइवेट इक्विटी पार्टनर और दूसरे कर्जदाताओं के भारी दबाव की वजह से मैं टूट चुका हूं।
सभी गलतियों के लिए मैं जिम्मेदार’
पत्र में उन्होंने कहा है कि सभी गलतियों और सभी वित्तीय लेन-देनों के लिए मैं जिम्मेदार हूं। मेरी टीम, ऑडिटर्स और सीनियर मैनेजमेंट को मेरे ट्रांजेक्शंस के बारे में जानकारी नहीं है। कानून को सिर्फ मुझे जिम्मेदार ठहराना चाहिए। मैंने परिवार या किसी अन्य को इस बारे में नहीं बताया।
मेरा इरादा धोखा देने का नहीं था
पत्र में उन्होंने आगे कहा है कि मेरा इरादा किसी को गुमराह या धोखा देने का नहीं था। एक कारोबारी के तौर पर मैं विफल रहा। उम्मीद है कि एक दिन आप समझेंगे। मुझे माफ कर दीजिए। हमारी संपत्तियां हमारी देनदारियों से ज्यादा हैं। इनसे सभी का बकाया चुका सकते हैं।