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आईएमएफ के अर्थशास्त्री ने कहा, भारत उम्मीद की किरण, पर एनपीए चुनौती

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के मुख्य अर्थशास्त्री मौरिस ऑब्स्टफेल्ड ने आज आर्थिक ताकतों के जटिल जोड़ के बीच भारत को एक उम्मीद की किरण बताया। हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस प्रगति के बावजूद सरकारी बैंकों की बढ़ती गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) चुनौती है।
आईएमएफ के अर्थशास्त्री ने कहा, भारत उम्मीद की किरण, पर एनपीए चुनौती

मौरिस ने बु्रकिंग्स इंडिया द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा, आर्थिक ताकतों का जटिल जोड़ लगातार सुस्त आर्थिक वृद्धि के परिदृश्य को आकार दे रहा है....सिर्फ भारत ही नहीं, चीन ने भी अपनी वृद्धि की रफ्तार को कायम रखा है। भारत एक उम्मीद की किरण है। भारत में मुद्रास्फीति, चालू खाते का घाटा (कैड) राजकोषीय घाटा नीचे आ रहा है।

उन्होंने कहा कि यहां कुछ बुनियादी चुनौतियां हैं। काफी प्रगति के बावजूद सरकारी बैंकों का बढ़ता एनपीए चुनौती है। इससे पहले इसी महीने आईएमएफ ने 2016 और 2017 में भारत की वृद्धि दर उच्चस्तर पर 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। हालांकि, इसके साथ ही आईएमएफ ने सरकार से अपनी कराधान प्रणाली में सुधार तथा सब्सिडी को समाप्त करने को कहा था जिससे बुनियादी ढांचा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में निवेश के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध हो सकें।

वित्त वर्ष 2015-16 में सरकारी बैंकों का सकल एनपीए कुल रिण पर 9.32 प्रतिशत बढ़कर 4.76 लाख करोड़ रुपये हो गईं, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 5.43 प्रतिशत या 2.67 लाख करोड़ रपये थीं। दिसंबर में रिजर्व बैंक ने संपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा को अनिवार्य किया था। इसके बाद प्रावधान में भारी बढ़ोतरी के चलते कई बैंकों बैंक आफ इंडिया, देना बैंक और सेंट्रल बैंक आफ इंडिया को जून तिमाही में घाटा झेलना पड़ा। नकदी संकट की कमी का सामना कर रहे सरकारी बैंकों के लिए सरकार ने अगस्त में 13 बैंकों में 22,915 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश की घोषणा की है। चालू वित्त वर्ष के लिए पहली किस्त और आगे कोष बैंकों को उनके प्रदर्शन के आधार पर उपलब्ध कराया जाएगा। आईएमएफ के नवनियुक्त मुख्य अर्थशास्त्री मौरिस ने कहा कि जिंस कीमतों में गिरावट से भारत को लाभ हुआ है। उन्होंने कहा, अमेरिका में यह धारणा है कि व्यापार नौकरी खत्म कर देता है। दुनिया ने एशिया पर कहीं अधिक व्यापार अंकुश लगाए हैं। एशिया ने दुनिया पर उतने अंकुश नहीं लगाए हैं। उन्होंने कहा कि 2016 में आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि निराशाजनक रही। लेकिन उभरती अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन अच्छा रहा।

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