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आईएमएफ ने माना भारत की आर्थिक वृद्धि उम्मीद से ‘काफी कमजोर’

भारत में आर्थिक विकास की धुंधली तस्वीर पर चिंता जताने वालों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भी...
आईएमएफ ने माना भारत की आर्थिक वृद्धि उम्मीद से ‘काफी कमजोर’

भारत में आर्थिक विकास की धुंधली तस्वीर पर चिंता जताने वालों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भी शामिल हो गया है। आईएमएफ ने कहा है कि भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट उम्मीद से काफी कम है। आईएमएफ ने गुरुवार को कहा कि कॉरपोरेट और पर्यावरण से जुड़ी नियामक संस्थाओं की अनिश्चितता और कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कमजोरियों के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि उम्मीद से काफी कमजोर है।

हालांकि आईएमएफ ने यह भी कहा है कि सुस्ती के बावजूद चीन से विकास के मामले में भारत आगे रहेगा और दुनिया की सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में बना रहेगा। आईएमएफ प्रवक्ता गेरी राइस ने वॉशिंगटन में पत्रकारों से कहा, ‘हम नए आंकड़े पेश करेंगे लेकिन खासकर कॉरपोरेट एवं पर्यावरणीय नियामक की अनिश्चितता एवं कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कमजोरियों के कारण भारत में हालिया आर्थिक वृद्धि उम्मीद से काफी कमजोर है।’

इससे पहले आईएमएफ ने धीमे विकास दर का लगाया था अनुमान

बता दें कि आईएमएफ ने जुलाई में 2019 और 2020 के लिए धीमे विकास दर का अनुमान लगाया था। आईएमएफ ने कहा था कि इन दोनों सालों में भारत की आर्थिक विकास दर में 0.3 फीसदी गिरावट होगी और 2019 में भारत की विकास दर 7 प्रतिशत और 2020 में 7.2 प्रतिशत रहेगी।

तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा भारत

हालांकि इन चिंताओं के बीच अभी भी भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। आईएमएफ के अनुमानों के मुताबिक भारत आर्थिक विकास की रेस में चीन से काफी आगे बना रहेगा। भारत के हाल के जीडीपी आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए गेरी राइस ने कहा कि आईएमएफ भारत की आर्थिक स्थिति पर लगातार निगाह बनाए रखेगा।

जून में खत्म पहली तिमाही में आर्थिक विकास की दर मात्र 5% रही

30 अगस्त को जारी मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों ने भारत समेत दुनिया के अर्थशास्त्रियों को चौंका दिया था। जून में खत्म पहली तिमाही में आर्थिक विकास की दर मात्र 5 प्रतिशत रही, जबकि पिछले साल इस अवधि में ग्रोथ रेट 8 फीसदी थी। जीडीपी ग्रोथ का ये आंकड़ा 6 साल में सबसे निचले स्‍तर का है। अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक विकास में गिरावट की वजह कमजोर घरेलू मांग और निवेश के सुस्त माहौल को बताया था।

 

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