एसबीआई ने शुक्रवार को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की तरफ से जारी आर्थिक आंकड़ों की क्वालिटी पर सवाल उठाए हैं। इसने अपनी ईकोरैप रिपोर्ट में कहा है कि सीएसओ ने जब से नई सीरीज के तहत डाटा जारी करना शुरू किया है तब से जीडीपी आंकड़ों में काफी बड़ा संशोधन होने लगा है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों में सीएसओ ने कहा था कि मार्च तिमाही में विकास दर 3.1 फीसदी और पूरे वित्त वर्ष 2019-20 में 4.2 फीसदी रह गई। ये दोनों आंकड़े 11 साल में सबसे कम हैं। रोचक बात यह है कि सीएसओ ने 2019-20 की पहली तीन तिमाही के आंकड़ों में भी संशोधन किया है। फरवरी में ही उसने इन आंकड़ों में संशोधन करते हुए उन्हें बढ़ा हुआ दिखाया था, अब लगभग उतना ही घटा दिया गया है।
लॉकडाउन के नुकसान को सभी तिमाहियों में बांटा गया
रिपोर्ट में कहा गया है कि मई में जब तीसरे अनुमान के आंकड़े जारी किए जाते हैं तब तिमाही आंकड़ों में संशोधन आम बात है। लेकिन इस बार जितना अधिक संशोधन हुआ उससे लगता है कि चौथी तिमाही में लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान को पहले की तीन तिमाहियों में बराबर-बराबर बांट दिया गया है। अगर पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही के आंकड़े वही रहते तो चौथी तिमाही में विकास दर सिर्फ 1.2 फीसदी रह जाती। ग्रॉस वैल्यू ऐडेड (जीवीए) का सिर्फ 18 फीसदी लॉकडाउन से बाहर है और सीएसओ इस सेगमेंट के लिए बाद में आंकड़े जारी कर सकता है। इसलिए 2020-21 की पहली तिमाही में भी डाटा पर सवाल उठाए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्यकांति घोष ने रिपोर्ट में लिखा है, “हम चाहते हैं कि सीएसओ उन कारणों की व्याख्या करे कि क्यों पिछले दो-तीन वर्षों में डाटा में इतना बदलाव होने लगा है? क्या यह अर्थव्यवस्था में हो रहे ढांचागत बदलाव की वजह से है जिसे सीएसओ शामिल नहीं कर पा रहा है? इन सवालों का जवाब सिर्फ सीएसओ ही दे सकता है।”
संशोधन के बाद 2019-20 में और घट सकती है विकास दर
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त के अंत में जब सीएसओ अप्रैल-जून तिमाही के आंकड़े जारी करेगा तब जनवरी-मार्च तिमाही के आंकड़ों में भी वह संशोधन कर सकता है। इस संशोधन में मार्च तिमाही के साथ-साथ वित्त वर्ष 2019-20 की विकास दर और कम हो सकती है। सीएसओ ने शुक्रवार को मार्च तिमाही और 2019-20 के आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि लॉकडाउन के कारण बहुत से संस्थानों में काम शुरू नहीं हो पाया है जिससे वहां से आंकड़े नहीं मिल पाए हैं। इसके अलावा सरकार ने फाइनेंसियल रिटर्न फाइलिंग की तारीख में बढ़ा दी है।
पूरे साल निवेश में गिरावट का ट्रेंड
रिपोर्ट के अनुसार निजी खपत में गिरावट स्थिर और मौजूदा मूल्य दोनों स्तर पर आई है। पूरे वित्त वर्ष में प्राइवेट फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर (पीएफसीई) मौजूदा मूल्यों पर 3 फीसदी घटा है। निवेश मांग को बताने वाले आंकड़े ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉरमेशन (जीएफसीएफ) में भी तेज गिरावट आई है। निवेश मांग 12.6 फीसदी घटी है जो निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था में सुधार के लिहाज से अच्छा संकेत नहीं देता है। कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन वित्त वर्ष के अंत में लागू किया गया, इसके बावजूद निवेश मांग का घटना बताता है कि पूरे साल यही ट्रेंड रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसका असर ज्यादा स्पष्ट नजर आएगा।
अर्थव्यवस्था के महामारी से पहले के स्तर पर पहुंचने के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग देशों के मंदी से उबरने के पुराने अनुभवों से पता चलता है कि पुराने उच्चतम स्तर पर पहुंचने में 5 से 10 साल लग सकते हैं। इसलिए इसने लॉकडाउन से निकलने के लिए बुद्धिमानी भरी रणनीति बनाने का सुझाव दिया है क्योंकि लॉकडाउन जितना लंबा होगा अर्थव्यवस्था को सुधारने में भी उतना अधिक वक्त लगेगा।