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सेवा क्षेत्र का पीएमआई मार्च में लगातार दूसरे महीने बढ़ा

देश के सेवा क्षेत्र में मार्च में लगातार दूसरे महीने वृद्धि दर्ज की गई। अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़ने और नये आर्डर मिलने के साथ साथ मुद्रास्फीति दबाव कम रहने से यह वृद्धि दर्ज की गई। एक मासिक सर्वेक्षण में यह परिणाम जारी किया गया है। इससे पहले पीएमआई के विनिर्माण क्षेत्र के सूचकांक में भी अच्छी वृद्धि दर्ज की गई।
सेवा क्षेत्र का पीएमआई मार्च में लगातार दूसरे महीने बढ़ा

निक्केई इंडिया सर्विसिज पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के मुताबिक सेवा क्षेत्र का सूचकांक मार्च में 51.5 अंक हो गया। फरवरी में यह 50.3 अंक रहा था। पीएमआई मासिक आधार पर सेवा क्षेत्र की गतिविधियों का आकलन करता है।

सेवा क्षेत्र की गतिविधियों को मापने वाला यह सूचकांक लगातार दूसरे माह 50 के स्तर से ऊपर रहा। सूचकांक 50 से उपर रहना क्षेत्र में वृद्धि को दर्शाता है जबकि इससे नीचे रहने पर गिरावट का पता चलता है।

आईएचएस मार्किट की अर्थशास्त्री और रिपोर्ट तैयार करने वाली पोलियाना डे लिमा ने सेवा क्षेत्र के पीएमआई पर कहा, मांग और उत्पादन में तेजी का फायदा उठाते हुये भारत की निजी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मार्च में तेजी के रुख में रही। नोटबंदी से आई सुस्ती के बाद देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार आया है और मुद्रास्फीति दबाव नरम रहने के साथ रोजगार के अवसर बढ़े हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद तीन महीने गिरावट में रहने के बाद भारतीय सेवा क्षेत्र फरवरी में वृद्धि की राह पर लौट आया। कारोबारी स्थितियों में सुधार आने से रोजगार सृजन में भी सुधार हुआ है जबकि भविष्य को लेकर कारोबारी परिदृश्य के बारे में विश्वास भी चार माह के उच्चस्तर पर पहुंचा है।

इस बीच, मौसमी आधार पर समायोजित निक्केई इंडिया कंपोजिट पीएमआई उत्पादन सूचकांक - जो कि विनिर्माण के साथ-साथ सेवा क्षेत्र की गतिविधियों पर नजर रखता है- मार्च में बढ़कर 52.3 अंक हो गया। एक महीना पहले फरवरी में यह 50.7 अंक पर रहा था। इस लिहाज से यह देशभर में निजी क्षेत्र में गतिविधियों में त्वरित गति से सुधार की तरफ इशारा करता है।

सेवा कंपनियों का कहना है कि आने वाले 12 माह के दौरान गतिविधियां और बढ़ने की उम्मीद है। कीमतों के मोर्चे पर कहा गया है कि मार्च में हालांकि, कच्चे माल की लागत बढ़ी है और कुछ सेवा कंपनियों ने अपने बिक्री मूल्य बढ़ाये हैं, लेकिन कुल मिलाकर मुद्रास्फीति का दबाव कमजोर रहा।

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