कहावत है, देर आए दुरुस्त आए। कभी दुनिया की बेहतरीन एयरलाइंस में गिनी जाने वाली एयर इंडिया को बेचने की कोशिश सरकार तो दो दशक से कर रही थी, लेकिन आखिरकार उसे खरीदा टाटा समूह ने। वही टाटा समूह जिससे सरकार ने एयर इंडिया को खरीदा था। इन दो दशकों में कई एयरलाइंस आईं, कई बंद भी हुईं, लेकिन एयर इंडिया के प्रति टाटा समूह का प्रेम जब-तब सामने आता रहा। समूह के पूर्व चेयरमैन जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने ही एयर इंडिया की स्थापना की थी। तब इसका नाम टाटा एयरलाइंस था।
एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण के बाद भी सरकार ने अनेक वर्षों तक जेआरडी को एयरलाइन का चेयरमैन बना कर रखा था। कहा जाता है कि उन दिनों टाटा समूह के अधिकारी आपस में चर्चा करते थे कि जेआरडी को हमेशा टाटा समूह से ज्यादा एयर इंडिया की फिक्र लगी रहती है। हालांकि वे अच्छी तरह जानते थे कि जेआरडी के लिए एयर इंडिया चेयरमैन का पद बस नौकरी नहीं, बल्कि एयरलाइन के प्रति उनका प्रेम था।
इसलिए जब टाटा समूह ने एयर इंडिया को दोबारा खरीदने के लिए 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई तो किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ। जेआरडी ने 1932 में दो लाख रुपये से टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी। 15 अक्टूबर 1932 को जेआरडी ने कराची से मुंबई के लिए पहली उड़ान भरी थी। तब वे वहां से डाक लेकर आए थे। जेआरडी कमर्शियल पायलट का लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय थे।
टाटा एयरलाइंस 1946 में पब्लिक कंपनी बनी। तभी उसका नाम बदलकर एयर इंडिया रखा गया। एयर इंडिया इंटरनेशनल की पहली उड़ान 8 जून 1948 को थी। महाराजा मस्कट के साथ यह उड़ान यूरोप पहुंची थी। जल्दी ही एयर इंडिया इंटरनेशनल अपनी सेवाओं की बदौलत दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइंस में गिनी जाने लगी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया। तब जेआरडी ने उसका कड़ा विरोध किया था। दरअसल सरकार ने उस समय 11 एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण किया। एयर इंडिया को छोड़कर बाकी सब घाटे में थे। उन सबको एयर इंडिया में मिला दिया गया। जेआरडी उसके बाद 25 वर्षों तक चेयरमैन पद पर रहे।
1990 के दशक में जब एविएशन सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए खोला गया तो रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने 1994 में सिंगापुर एयरलाइंस के साथ साझीदारी में इस क्षेत्र में उतरने की कोशिश की। लेकिन उस प्रस्ताव को सरकार ने खारिज कर दिया। तब किसी विदेशी एयरलाइन को घरेलू एयरलाइन में हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति नहीं थी।
वर्ष 2000 में भी टाटा और सिंगापुर एयरलाइंस ने एयर इंडिया को खरीदने की नाकाम कोशिश की। इस बीच टाटा समूह में एविएशन क्षेत्र में उतरने की कोशिश जारी रखी। 2012 में जब विदेशी निवेश की अनुमति दी गई तो उसने 5 नवंबर 2013 को सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर टाटा एसआईए एयरलाइंस लिमिटेड नाम से साझा कंपनी का गठन किया। उसने विस्तारा नाम से एयरलाइंस शुरू की। इसमें टाटा संस की 51 फ़ीसदी और सिंगापुर एयरलाइंस की 49 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। विस्तारा ने 9 जनवरी 2015 को पहली उड़ान भरी। विस्तारा की उड़ान शुरू होने से एक साल पहले टाटा समूह ने मलेशिया की एयर एशिया के साथ मिलकर एयर एशिया इंडिया की स्थापना की। इसने जून 2014 में पहली उड़ान भरी।
एयर एशिया इंडिया में टाटा समूह की 51 फीसदी और एयर एशिया की 49 फीसदी हिस्सेदारी थी। पिछले साल दिसंबर में टाटा संस ने एयर एशिया से 32.67 फीसदी इक्विटी खरीदकर अपनी हिस्सेदारी 83.67 फीसदी कर ली। मलेशियाई साझीदार ने कहा था कि जापान और भारत में उसके बिजनेस को काफी नुकसान हो रहा है।
अब 68 साल बाद एयर इंडिया एक बार फिर टाटा समूह के नियंत्रण में आने वाली है। यह 153 साल पुराने उस औद्योगिक घराने के लिए भी खुशी का मौका है जिसे भारत का सबसे भरोसेमंद नाम माना जाता है। लेकिन अब यह देखना है कि विस्तारा, एयर एशिया इंडिया और एयर इंडिया तीन एयरलाइंस के साथ इस समूह की आगे की रणनीति क्या होती है।