देश में कोयले का संकट गहराता जा रहा है। कोयले का संकट होने का सीधा असर बिजली उत्पादन पर पड़ता है क्योंकि देश में ज्यादातर बिजली कोयले से बनाई जाती है। इस बीच ऊर्जा मंत्रालय का दावा है कि जल्द ही इस संकट को दूर कर लिया जाएगा, लेकिन ये संकट पैदा कैसे हुआ इस पर बात करना ज्यादा जरूरी है।
कोयला संकट के चार कारण-
-अर्थव्यवस्था में सुधार आते ही बिजली की मांग अधिक हो गई है।
-सितंबर में कोयला खदानों के आसपास ज्यादा बारिश होने के कारण कोयले का उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
-मॉनसून की शुरुआत से पहले कोयले का स्टॉक न रखना इसका कारण माना जा सकता है।
-विदेशों से आने वाले कोयले के दामों में बढ़ोतरी होने से घरेलू कोयले पर निर्भरता बढ़ गई है।
बिजली की बढ़ती हुई खपर
कोरोना की दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार आया है। इसकी वजह से बिजली की खपत बढ़ गई है। इस समय हर दिन 4 बिनियन यूनिट्स की खपर हो रही है। 65-70 प्रतिशत तक बिजली की जरूरत कोयले से ही पूरी की जा रही है, जिसकी वजह से कोयल पर निर्भरता बढ़ गई है।
जानिए सरकार के एक्शन
ऊर्जा मंत्रालय ने 27 अगस्त को कोयले के स्टॉक की निगरानी के लिए एक कोर मैनेजमेंट टीम का गठन किया था। यह टीम सप्ताह में दो बार कोल स्टॉक की निगरानी और प्रबंधन का काम देखती है। इस कमेटी में ऊर्जा मंत्राल, सीईओ, पोसोको, रेलवे और कोल इंडिया लिमिटेड के अधिकारी हैं।
इस कमेटी ने 9 अगस्त को एक बैठक की थी। इसमें नोट किया गया कि 7 अक्टूबर को कोल इंडिया ने एक दिन में 1.501 मीट्रिक टन कोयले को डिस्पैच किया, जिससे खपत और सप्लाई के अंतर में कमी आ गई।