“दुनिया में मंदी के लंबे होते साये के बीच बहुराष्ट्रीय और भारतीय खासकर आइटी कंपनियो में बड़े पैमाने पर छंटनी जारी है, तो क्या लकदक विदेशी नौकरियों और जीवन-शैली हासिल करने के ‘द ग्रेट इंडियन ड्रीम’ का गुब्बारा फटने जा रहा?”
ललक बैकुंठ यानी सर्वोत्तम जीवन-शैली हासिल करने की हो और उसी के टूटने-बिखरने के खतरे मंडराने लगें तो! यकीनन आधुनिक दुनिया में पश्चिम में बसने या उसी जैसी जीवन-शैली हासिल करना ही खासकर नब्बे के दशक में उदारीकरण के बाद से भारतीय मध्यवर्ग का ऐसा सपना रहा है, जिसे कई बार 'द ग्रेट इंडियन ड्रीम' (महान भारतीय सपना) कह दिया जाता है। पश्चिम यानी यूरोप, अमेरिका वगैरह विकसित या पहली दुनिया के देश। कोई चाहे तो उसमें ऑस्ट्रेलिया और कुछ हद तक न्यूजीलैंड जैसे देशों को भी जोड़ सकता है। हाल के वर्षों, खासकर कोविड महामारी के बाद यह सपना और बलवती हुआ। यह उम्मीद न्यू इकोनॉमी वाली वैश्विक कंपनियों के शिखर पर पहुंचे सुंदर पिचाई जैसे भारतीय मूल के लोगों की वजह से और तगड़ी होती चली गई। लेकिन पिछले साल से वैश्विक मंदी के आसार घने होने लगे और खासकर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में छंटनी की लहर शुरू हो गई। यह लहर इस साल और तेज बहने लगी है। इससे यह सवाल बेहद मौजू हो गया है कि क्या विदेशी या देसी लकदक नौकरियों की आस पर बिजली गिरने वाली है? आइए पहले इस सपने का वितान तो देखें। इन आंकड़ों को ही देखिए। राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के मुताबिक 2022 के नवंबर तक 6,46,260 छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए गए, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। आजाद भारत में पढ़ाई के लिए विदेश जाने का आंकड़ा तो 2021 में ही 4,44,553 छात्रों के साथ सबसे ऊपर चला गया था। इस पढ़ाई पर अभिभावकों ने करीब 90 लाख डॉलर का निवेश किया है। इसी तरह एक आंकड़ा यह भी है कि पिछले कुछेक साल में 15 लाख से ज्यादा लोग देश की नागरिकता छोड़कर विदेश में जा बसे। यह आंकड़ा भी अप्रत्याशित है और इसमें ज्यादातर उच्च मध्यम वर्ग, उच्च वर्ग और अमीर ही हैं। एक वक्त वह था, जब मजदूरी करने विकसित और खाड़ी देशों में जाने वालों की तादाद ज्यादा हुआ करती थी। फर्क यह है कि ये वहां से कमाये पैसे अपने देश में भेजा करते रहे हैं, जो हमारी जीडीपी में एक अहम योगदान करता रहा है, जिसे मनी ऑर्डर इकोनॉमी भी कहा जाता है। मगर मध्य और उच्च वर्ग तो वाकई बैकुंठ या कहिए लकदक जीवन-शैली की ख्वाहिश रखता है। इसलिए मंदी और छंटनी की यह लहर उसके लिए दिल तोड़ने वाली हो सकती है।
वैश्विक बड़ी कंपनियों में हाल में छंटनी की लहर पर नजर दौड़ाएं तो अंदाजा लग जाएगा कि इस सपने पर कैसा ग्रहण लगता दिख रहा है। विराट बहुराष्ट्रीय आइटी कंपनी गूगल ने पिछले दिनों 12,000 कर्मचारियों को हटाने की घोषणा की। उससे पहले अमेजन ने 5 जनवरी को 18,000 कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की। यह कंपनी के कुल कार्यबल का 3 फीसदी है। पहले उसने 10,000 लोगों की छंटनी की बात कही थी। फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा ने नवंबर में 11,000 लोगों, यानी अपने 13 फीसदी कार्यबल की छंटनी करने का ऐलान किया था। अमेरिकी बिजनेस सॉफ्टवेयर फर्म सेल्सफोर्स ने 8,000 लोगों को हटाने का ऐलान किया, जो उसके कुल कार्यबल का 10 फीसदी है। अक्टूबर में ट्विटर को खरीदने के बाद एलॉन मस्क ने भी 3,700 कर्मचारियों को निकाल दिया था। यह सिलसिला जारी है और हर रोज छंटनी के नए-नए ऐलान जारी हो रहे हैं। लेऑफ्स डॉट एफवाइआइ वेबसाइट (https://layoffs.fyi/) के अनुसार 2022 में 1046 टेक्नोलॉजी कंपनियों ने 1,59,684 कर्मचारियों की छंटनी की। 2023 में अब तक 219 टेक्नोलॉजी कंपनियां 68,149 लोगों को निकाल चुकी हैं।
इस छंटनी के पांच प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। एक, कोविड-19 महामारी के दौरान ई-बिजनेस के प्रसार की संभावनाएं देखकर जरूरत से ज्यादा भर्तियां कर ली गईं। दूसरे, निवेशक कंपनी मैनेजमेंट पर आर्थिक मंदी से निपटने के लिए दबाव बना रहे हैं। तीसरे, मंदी और बढ़ती महंगाई से सर्विस और डिलीवरी तथा ग्राहकों में खर्च में कटौती का रुझान बढ़ने से कंपनियों की कमाई घट रही है। चौथे, कंपनियां भी मंदी की आशंका से ग्रस्त हैं और अपनी रीस्ट्रक्चरिंग कर रही हैं। पांचवें, यह भी कहा जा रहा है कि टेक्नोलॉजी सेक्टर मैच्योर हो रहा है इसलिए कंपनियां अपने को चुस्त-दुरुस्त कर रही हैं। इसके अलावा आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने की वजह से भी कंपनियों को कर्मचारियों की जरूरत कम होती जा रही है।
यकीनन ये सभी खबरें भारत में खासकर मध्यवर्ग के लिए दुःस्वप्न सरीखी हैं, जहां बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है। यह दर 2018 में ही 45 साल से ऊपर चली गई थी, जो नवंबर 2022 में 8 फीसदी से बढ़कर अब 8.30 फीसदी हो गई है। औसत बेरोजगारी दर 8.22 फीसदी है। इससे भी बढ़कर यह है कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों में अपेक्षाकृत सबसे ज्यादा है। लेकिन उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की ख्वाहिश के बारे में राज्यसभा में मानव संसाधन मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में बताया, “उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वालों का मकसद अपने गंतव्य देशों के वीसा के लिए पहले हुए इमिग्रेशन क्लीयरेंस को प्रस्तुत करना है।” राज्यसभा में ही विदेश मंत्रालय ने एक दूसरे सवाल के जवाब में बताया कि आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर भारतीय छात्र उच्च शिक्षा में डिग्री के लिए कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन जाना पसंद करते हैं। मानव संसाधन मंत्रालय के मुताबिक, विदेश में पढ़ाई के लिए जाने वालों की संख्या 2017 में 4,54,009 से उछलकर 2019 में 5,86,337 हो गई। 2020 में कोविड-19 महामारी के दौर में यह घटकर 2,59,655 हो गई, लेकिन महामारी का खतरा घटते ही 6 लाख के ऊपर चली गई। लगभग इसी तरह देश में नागरिकता छोड़ने और दूसरे देशों की नागरिकता लेने वालों की संख्या भी बढ़ी है।
जाहिर है, जो ख्वाहिश एक वक्त आइएएस-आइपीएस या सरकारी नौकरी के लिए हुआ करती थी या एक-डेढ़ दशक पहले तक देश में ऊंची तनख्वाह वाली निजी नौकरियों के लिए हुआ करती थी, अब खासकर संपन्न मध्यम या उच्च वर्ग के मन में वैसी ही लालसा विदेशी लकदक नौकरियों और जीवन-शैली के लिए पनपने लगी है। बेशक, यह रुझान देश की मौजूदा स्थितियों से भी पैदा हुआ होगा। देश की अर्थव्यवस्था संभलने का नाम नहीं ले रही है। लगभग हर क्षेत्र में गिरावट जारी है। तिस पर सरकारी नौकरियों में स्थायित्व जैसी स्थिति नहीं रह गई है। स्थायित्व के सारे नियम-कायदे लगातार बदले जाते रहे हैं। पुराने श्रम कानूनों के बदले नई श्रम संहिताओं में तो नियोक्ताओं को हायर ऐंड फायर का ज्यादा अधिकार दे दिया गया है। हालांकि ये संहिताएं अभी पूरी तरह लागू नहीं हो पाई हैं लेकिन समूचा माहौल नियोक्ताओं के हक में है। ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मायूसी और नौकरियों के जाने से वह दरवाजा भी बंद होता दिख रहा है।
वैसे छंटनी पर बड़ी कंपनियों की दलीलें अपनी हैं। अमेजन के सीईओ एंड्रयू जेसी ने छंटनी की घोषणा करते हुए कहा, “पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमने काफी तेजी से भर्तियां की थीं।” मार्च 2020 में दुनिया भर में अमेजन के 6.28 लाख कर्मचारी थे जो बढ़कर 15 लाख हो गए। महामारी के दौरान जब ऑनलाइन खरीदारी का चलन बढ़ा तब अमेजन ने तेजी से नई भर्तियां की थीं। अभी जो छंटनी हो रही है उसमें ऑनलाइन रिटेल, वेयरहाउसिंग और सामान्य आउटलेट सभी शामिल हैं। सेल्सफोर्स के चीफ एग्जीक्यूटिव मार्क बेनिऑफ ने कहा, “हमने जरूरत से ज्यादा विस्तार कर लिया था। महामारी में हमारा रेवेन्यू बढ़ा तो हमने बड़ी संख्या में लोगों को काम पर रखा।” मेटा के सीईओ और फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग ने नवंबर में जब 11000 लोगों की छंटनी की घोषणा की तो उन्होंने कहा, “महामारी के समय जब हमने बिजनेस का विस्तार किया तब उम्मीद थी कि ऑनलाइन गतिविधियां में वृद्धि जारी रहेगी। दुर्भाग्यवश हमने जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ।”
बेंगलूरू में एसएपी और आइबीएम के कर्मचारियों में घबराहट फैलती जा रही है। दोनों कंपनियां दुनिया भर में छंटनी का ऐलान कर चुकी हैं।
हालात दरअसल ये हैं कि अमेरिकी कंपनियों के सीईओ का कॉन्फिडेंस इंडेक्स 2008 के आर्थिक संकट के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। जाहिर है कि जब कंपनियों के प्रमुख इतने सहमे हुए हैं तो वे छंटनी करेंगे ही। इसकी प्रमुख वजह अमेरिका-यूरोप समेत अनेक देशों में आर्थिक सुस्ती है। उक्रेन युद्ध से हालात बेहद पेचीदा हो गए हैं। उससे उबरने के अभी कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। इसी वजह से आने वाले महीनों में और छंटनी की आशंका जताई जा रही है। फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों के लिए विज्ञापन से कमाई बड़ा स्रोत होती है और मंदी की आशंका को देखते हुए कंपनियां विज्ञापन पर कम खर्च कर रही हैं। महंगाई अधिक होने के कारण लोगों के जीवनयापन का खर्च बढ़ रहा है और वे जरूरी चीजों पर ही पैसा खर्च कर रहे हैं। फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा ने विज्ञापनों के सिकुड़ने को छंटनी की बड़ी वजह बताया है। मार्क जकरबर्ग ने मीडिया से एक बातचीत में कहा, “हमें मैनेजरों को मैनेज करने वाले लोगों की दरकार नहीं है। काम करने वालों को मैनेज करने वालों का अब काम नहीं है।” डच हेल्थ टेक्नोलॉजी कंपनी फिलिप्स दुनिया भर में 6,000 लोगों को हटाने की योजना बना चुकी है। पिछले साल भी उसने अपनी टीम का आकार छोटा किया था। उसके नए सीईओ रॉय जैकब्स कहते हैं, “हम आज जिस स्थिति में हैं, मैं समझता हूं कि फिलिप्स के भविष्य को बचाने के लिए गंभीर योजना की जरूरत है। चुनौतियां बेहद कड़ी हैं और उससे हमें पार पाना ही होगा।”
संकट गहरे होने के लक्षण दूसरे भी हैं। महामारी और उक्रेन युद्ध के बाद महंगाई बढ़ी तो उसे थामने के लिए अनेक देशों ने कर्ज महंगा करना शुरू कर दिया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के 85 फीसदी देशों ने पिछले साल कर्ज महंगा किया। 2022 में औसत वैश्विक महंगाई 9 फीसदी पर पहुंच गई थी, जो दो दशक में सबसे ज्यादा है। 2023 में भी महंगाई 6.5 फीसदी के आसपास रहने के आसार हैं। कर्ज महंगा करके मुद्रास्फीति पर तो कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है लेकिन संकट यह है कि कर्ज महंगा करने से विकास दर घटने की आशंका बन जाती है, जिसका असर दिखने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2023 में समूचे विश्व की विकास दर 1.9 फीसदी रहने के आसार हैं। यह हाल के दशकों में सबसे कम होगी। अमेरिका की ग्रोथ रेट 2022 के 1.8 फीसदी के मुकाबले 2023 में सिर्फ 0.4 फीसदी रहने के आसार हैं।
यूरोप के अनेक देशों में मंदी आ सकती है, बल्कि कुछ अर्थशास्त्रियों का तो कहना है मंदी पांव पसार चुकी है। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “आइएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों मंदी का ऐलान तभी करती हैं, जब पानी सिर से गुजरने लगता है। तमाम संकेत यही हैं कि मंदी आ चुकी है और यह ज्यादा लंबे समय तक कायम रह सकती है। इससे उबरना आसान नहीं होगा।” वे इसके लिए 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट का हवाला देते हैं कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने तब तक संकट की बात नहीं मानी, जब तक लेहमन ब्रदर्स डूब नहीं गया क्योंकि उन्हें डर होता है कि शेयर बाजार टूटने न लगें। वाकई संकेत सारे मंदी के ही हैं। यूरोपीय संघ की विकास दर 2022 के 3.3 फीसदी की तुलना में 2023 में सिर्फ 0.2 फीसदी रहने का अनुमान है। इसी तरह भारत की विकास दर 2022 के 6.4 फीसदी की तुलना में 5.8 फीसदी रहने की संभावना है।
संदर्भ सियासीः अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मार्क जकरबर्ग
असर शेयर बाजारों में भी दिखने लगा है। खासकर बड़ी आइटी कंपनियों के शेयरों में गिरावट दिखने लगी है। 2022 में एप्पल के शेयर 27 फीसदी, टेस्ला के 65 फीसदी, मेटा (फेसबुक) के 64 फीसदी और नेटफ्लिक्स के 51 फीसदी गिर चुके थे। वैसे, छंटनी का एक कारण यह भी कहा जा रहा है कि महामारी के समय कंपनियों ने लोगों को हटाने से परहेज किया। वर्क फ्रॉम होम के चलते कंपनियां अपने कर्मचारियों की परफॉर्मेंस का सटीक आकलन नहीं कर पा रही थीं। अब ऑफिस खुलने पर उन्हें उनके बारे में पता चल रहा है, लेकिन बड़ी बात यही है कि उनकी कमाई घट रही है और खपत उस पैमाने पर नहीं हो रही है।
जाहिर है, भारत की आइटी कंपनियों पर भी असर लाजिमी है। आइएनसी फोर्टी टू डॉट कॉम की एक रिपोर्ट (https://inc42.com/features/indian-startup-layoffs-tracker/) के अनुसार, 2023 में अभी तक 21 कंपनियों ने 3300 कर्मचारियों को हटाया है। उससे पहले बीते कुछ समय में बाइजू, कार्स24, ओला, ओयो, मीशो, उड़ान, अनएकेडमी, वेदांतु जैसे 71 स्टार्टअप ने 21,532 कर्मचारियों को निकाला। बाइजू ने सबसे ज्यादा 2500 और ओला ने 2300 कर्मचारी हटाए हैं। मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार कंपनियों के शीर्ष पदों पर भर्तियां करने वाली फर्म लीडरशिप कैपिटल के सीईओ बीएस मूर्ति ने कहा कि भारत में टेक्नोलॉजी कंपनियां जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून तिमाही में 80 हजार से 1.2 लाख कर्मचारियों की छंटनी कर सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार अनेक कंपनियों के एचआर विभाग छंटनी के लिए संभावित कर्मचारियों की सूची तैयार कर रहे हैं।
बेंगलूरू में एसएपी और आइबीएम के कर्मचारियों में घबराहट फैलती जा रही है। दोनों कंपनियां दुनिया भर में छंटनी का ऐलान कर चुकी हैं। यह तो साफ नहीं है कि भारत में कितने लोगों पर इसका असर पड़ेगा, लेकिन कुछ खबरों के मुताबिक सैकड़ों की छुट्टी हो सकती है। दोनों कंपनियों के लिए भारत कर्मचारी भर्ती का सबसे बड़ा ठिकाना है। आइबीएम के भारत में करीब 1 लाख कर्मचारी बताए जाते हैं। एसएपी के यहां 15,000 से ज्यादा इंजीनियर हैं। एसएपी की 3,000 नौकरियों में कटौती की योजना है, जबकि वह मैनेजमेंट कंपनी क्वाट्रिक्स की बिक्री की संभावनाएं टटोल रही है, जिसे उसने पांच साल पहले 8 अरब डॉलर में खरीदा था। एसएपी के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के सदस्य थॉमस सुरेसिग ने कहा, “हमने भविष्य में टिकाऊ कामयाबी के लिए बदलाव के मद में अपने इरादे साफ किए हैं। अपने सफर को जारी रखने के लिए हमें अपने पोर्टफोलियो को चुनिंदा क्षेत्रों तक ही सीमित रखना है और अपनी मौजूदगी सावधानी से चुने बाजारों तक ही बनाए रखनी है। फिर भी हमारे लिए आज का दिन मुश्किल भरा है क्योंकि इसका असर हमारे साथियों, उनके परिवारों और उनकी जिंदगी पर काफी होगा।” आइबीएम के सीएफओ जेम्स कवनॉघ ने ब्लूमबर्ग को बताया कि कंपनी की कम से कम 3,900 कर्मचारियों की छंटनी की योजना है। हालांकि कंपनी का यह भी कहना है कि हर कर्मचारी को अपने लिए कंपनी के भीतर यथोचित स्थान तलाशने का 30 से 60 दिनों की मोहलत दी जा रही है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया तो उसे छोड़ना पड़ेगा।
इधर, भारत में स्टार्ट अप में निवेश लगातार ढलान पर है। आइएनसी फोर्टी टू डॉट कॉम की स्टेट ऑफ इंडियन स्टार्ट अप इकोसिस्टम रिपोर्ट, 2022 के मुताबिक, 2014-22 के बीच भारतीय स्टार्ट अप को 131 अरब डॉलर के फंड मिले। सबसे ज्यादा रकम 2021 में 42 अरब डॉलर जुटी, लेकिन 2022 में यह गिरकर 19 अरब डॉलर पर आ गई। इसी तरह 2014-22 के बीच 10 करोड़ डॉलर के 313 सौदे हुए, जिनमें सबसे ज्यादा 109 सौदे 2021 में हुए लेकिन 2022 में गिरकर 49 सौदे ही रह गए। फिर, 85 फीसदी से ज्यादा यानी 5560 स्टार्ट अप 2.5 करोड़ डॉलर से कम फंडिंग वाले हैं, जबकि 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा की फंडिंग वाले सिर्फ 0.5 यानी 35 स्टार्ट अप ही हैं। सबसे ज्यादा फंडिंग हासिल करने वाले टॉप दस स्टार्ट अप क्रमशः फ्लिपकार्ट, बायजू, ओला, ओयो, रिन्यू पावर, स्विगी, जोमैटो, पेटीएम, ड्रीम स्पोर्ट्स और फोन पे हैं। 2021 में स्टार्ट अप में 2487 निवेशकों ने पैसा लगाया, जो 2022 में घटकर 2020 हो गए। मतलब यह कि न सिर्फ भारतीय स्टार्ट अप में निवेश घट रहे हैं, बल्कि वे छंटनी पर मजबूर हो रहे हैं और मंदी की मार झेल रहे हैं। इसलिए भारतीय मध्यवर्ग के लिए यह विकल्प भी नहीं है कि विदेश में नौकरियां छूटें तो उन्हें अपने देश में आसारा मिले।
इसी वजह से चिंताएं घर करने लगी हैं। इसकी धमक राजनैतिक हलके में भी गूंजने लगी है। आम आदमी पार्टी के नेता, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया कि सरकार को आइटी और ई-बिजनेस कंपनियों से निकाले जाने वाले लोगों के लिए कुछ करना चाहिए। कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने भी ऐसी ही चिंताएं जाहिर कीं और सरकार से कुछ कदम उठाने की मांग की। तेलुगु देशम के नेता चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि सरकार को इस हालत को एसओएस की तरह समझना चाहिए और फौरन कदम उठाना चाहिए। चेन्नै स्थित यूनियन ऑफ आइटी ऐंड आइटीईएस एंप्लाईज (युनाइट) के प्रतिनिधियों ने 23 जनवरी को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मिलकर विदेश में छंटनी के मामले में हस्तक्षेप करने और उसके शिकार लोगों को कूटनयिक मदद पहुंचाने की मांग की। कुछ ऐसी ही आवाज तमिलनाडु की द्रमुक और अन्नाद्रमुक की ओर से भी उठी है। गौरतलब है कि आइटी और ई-बिजनेस के क्षेत्र में दक्षिण भारत खासकर आंध्र प्रदेश के लोगों की ज्यादा तादाद लगी है। वजह सिर्फ यह नहीं है कि हैदराबाद और बेंगलूरू जैसे शहर आइटी हब रहे हैं, बल्कि नब्बे के दशक के बाद से इन प्रदेशों में खासकर मध्यवर्गीय युवाओं ने विदेशी कंपनियों का रुख कर लिया। उत्तर भारत के मध्यवर्ग की उस ओर पहुंच कुछ देर से हुई।
बहरहाल, हालात नाजुक हैं। देश के मध्यवर्ग का सपना टूटा तो उस पर गहरे संकट के बादल मंडराने लग सकते हैं। वजह यह कि देश में अर्थव्यवस्था में किसी तरह का उठान नहीं दिख रहा है। सरकारी नौकरियां भी लगातार सिकुड़ती जा रही हैं। सरकार का रुझान भी निजीकरण की ओर है। जैसे तमाम सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों के मोनेटाइजेशन की नीति आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे रोजगार का संकट बढ़ता जा रहा है। दरअसल निजी क्षेत्र से निवेश सरकार की लाख रियायतों के बावजूद नहीं आ पा रहा है और सरकार नए निवेश की हालत में नहीं दिखाई देती है। इसलिए फिलहाल उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती।
जिनकी नौकरियां जा रही हैं, उनके दर्द इन्हीं पन्नों में आपबीती में पढ़े जा सकते हैं। यूं तो गिग इकोनॉमी में स्थायित्व की तलाश ही बेमानी है, लेकिन अब फर्क यह आया है कि अब तक अमेरिका और यूरोप में नौकरियों या अवसरों का अकाल नहीं रहता रहा है लेकिन मंदी के नए दौर में वहां भी हालात बिगड़ रहे हैं।
जो भी हो, द ग्रेट इंडियन ड्रीम का टूटना बड़ा दुखदायी हो सकता है। कहते हैं, ख्वाब खत्म होना मौत से बदतर है। इसका दर्द बेंगलूरू के आयन बनर्जी ने लिंक्डइन पर एक अंग्रेजी कविता लिखकर बयां किया है। कुछेक पंक्तियों का हिंदी में अनुवाद कुछ इस तरह हो सकता हैः झुंड में बुलाते हैं, ढेर जैसे बुहार देते हैं...कुछ माह बाद नई नौकरियों की बारिश, फिर पतंगों की तरह ठट्ट के ठट्ट टूटे, ऊंची तनख्वाह की उम्मीद में, बस अगले दिन मरने की खातिर। काश! कुछ हालात बदले और ख्वाब की जगह हकीकत ले।
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भारत में छंटनी डीलशेयर: ई-कॉमर्स फर्म तकरीबन 6 फीसदी कार्यबल हटाएगी
गोमेकैनिक: कार सर्विसिंग स्टार्ट अप 70 फीसदी लोगों की छंटनी करेगी
मोहल्लाटेक: वर्नाकुलर सोशल मीडिया शेयरचैट की पैरेंट कंपनी ने छंटनी के नए दौर में 20 फीसदी लोगों को हटाया
स्विगी: सीईओ श्रीहर्ष मजेटी के मुताबिक कम से कम 360 कर्मियों को हटाएगी क्योंकि उसकी डिलीवरी में मंदी है
डंजो: रिलायंस समर्थित डंजो ने जनवरी के आखिरी हफ्ते अपने 3 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी की
ओला: राइड-हेलिंग और इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी ने करीब 200 लोगों को हटाया, सितंबर में कंपनी 200 इंजीनियरों को हटा चुकी है
कैशफ्री: ऑनलाइन पेमेंट प्रोवाइडर कंपनी ने लागत घटाने के लिए करीब 100 लोगों को हटाया
एडटेक छंटनी
बायजूज: देश की सबसे चर्चित स्टार्ट अप अपने 50,000 कार्यबल में तकरीबन 5 फीसदी की कटौती करेगा, 2022 में कम से कम 600 लोग हटाए जा चुके हैं
वेदांतु: वेदांतु ने इस साल छंटनी के चौथे चरण में 385 लोगों को हटाया, कंपनी उसके पहले अपने 724 पूर्णकालिक कर्मचारियों को हटा चुकी है
अनएकेडमी: एडटेक स्टार्ट अप 350 लोगों को हटाएगा, वह पहले करीब 1000 लोगों को हटा चुका है
फ्रंटरो: करीब 75 फीसदी कार्यबल से निजात पाएगी, मई में 145 लोगों को हटा चुकी है
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अगर चुपके-चुपके दूसरी नौकरी करना अनैतिक है, तो छंटनी भी अनैतिक चीज है। पिछले अक्टूबर तक हम लोग मूनलाइटिंग (गुप्त तरीके से दूसरी नौकरी करने के लिए प्रयोग) के बारे में सुन रहे थे। अब अचानक छंटनी की खबरें सुर्खियों में आ गई हैं। बेशक, अपनी कंपनी के प्रतिद्वंद्वी या प्रतिस्पर्धी के लिए काम करना अनैतिक है लेकिन छंटनी के दौर में दूसरी आय के लिए एक रास्ता खुला रखना हमेशा अच्छा विकल्प होता है। हर किसी की अपनी निजी वित्तीय जिम्मेदारियां होती हैं और कोई कंपनी जब आपके 20 साल के काम को मिनट भर में एक झटके में नकार दे, आपका ऐक्सेस खत्म कर दे, तो यही अनैतिक मूनलाइटिंग आपके काम आएगी। समझदारी से सोचो। तुम्हारा नियोक्ता तुम्हारा परिवार नहीं है। वो तुम्हें तभी तक पैसा दे रहा है जब तक उसे तुम्हारी जरूरत है। जरूरत खत्म होते ही तुम्हारी स्क्रीन पर लिख कर आ जाएगा, ‘योर ऐक्सेस इज डिनाइड।’
मनीष बी., गुरुग्राम
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मुझे निकाला नहीं गया है, मैं खुद छोड़ रहा हूं। अडोबी ने इतनी मंदी में होने के बावजूद अब तक एक भी छंटनी नहीं की है और मैं उनका शुक्रगुजार हूं कि वे कर्मचारियों का इतना सहयोग कर रहे हैं, लेकिन सारी कंपनियां इसके जैसी नहीं हैं। मैं देख रहा हूं कि विशाल अमेरिकी कंपनियां लोगों को ऐसे छांट रही हैं जैसे कि कोई जहरीला रिश्ता खत्म किया जाता है। यही सही समय है हम सब के लिए इस बात को समझने का, कि अपने ही देश के भीतर कंपनी निर्माण हमें एक राष्ट्र के रूप में बड़ा बना सकता है। हमारे देश को पहले से कहीं ज्यादा गूगल, अडोबी, लिंक्डइन जैसी कंपनियों की जरूरत है। इसीलिए मैंने इंजीनियरों की एक टीम के साथ भारत के श्रम बाजार को स्थिरता देने के लिए हाथ मिलाया है। मुझे भरोसा है कि नौकरी छोड़ने का मेरा निर्णय गलत नहीं है।
राहुल माहेश्वरी, अडोबी
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छोटा मुंह, बड़ी बात: मैं देख रहा हूं कि तमाम लोग पोस्ट कर रहे हैं कि वे अमेरिका से भारत लौट रहे हैं क्योंकि नौकरी जाने से ज्यादा बड़ा तनाव उन्होंने अपने एच 1 वीजा के खत्म होने का है।
अब मेरी कहानी: मेरे पास अमेरिका जाने के ढेर सारे मौके थे लेकिन मेरे परिवार में कुछ स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें थीं इसलिए मैंने तय किया कि भारत को छोड़ कर नहीं जाना है। मैं अब भी यही सोचता हूं कि भारत में मैं अच्छा खासा कमा लेता हूं। अनावश्यक अमेरिका जाकर एच 1 वीजा वाली जिंदगी जीने का क्या मतलब है?
इसके अलावा, अमेरिका जाने के पीछे मेरी केवल एक प्रेरणा थी कि मुझे सामाजिक स्वीकृति मिल जाएगी। और कुछ नहीं। अपने तजुर्बे से कह सकता हूं कि दुनिया में किसी काम को करने के पीछे सामाजिक स्वीकृति की चाह सबसे बुरा कारण होती है।
कुछ लोग कह सकते हैं कि भारत में बैठ के बड़ी-बड़ी बात कर रहा हूं, लेकिन मैं तो अमेरिका नहीं गया और भारत में ही बैठा रहा इसलिए ये बड़ी बातें मैं बिलकुल कर सकता हूं। यह पोस्ट किसी में गलती गिनाने के लिए नहीं है बल्कि एक अलग नजरिया देने के लिए है। हम जो भी निर्णय लेते हैं उसके दो पहलू होते हैं। हमें दूसरे पहलू का सामना करने को भी तैयार होना चाहिए। मैं केवल अपना अनुभव ही साझा कर सकता हूं, आपका अनुभव मुझसे बिलकुल उलटा हो सकता है।
और प्लीज, मुझसे असहमति सभ्य तरीके से जताएं और कोई निजी हमला न करें।
रितेश भागवत, पुणे
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मैं यहीं थी जब पता चला कि मैं अब अपनी कंपनी का हिस्सा नहीं रही। अहसासों के उमड़ते-घुमड़ते ज्वार के बीच भी मैं दिन भर इस बात पर मुस्कुराती रही कि आखिर भविष्य के गर्भ में मेरे लिए क्या छुपा हआ है।
मैं छुट्टी पर थी जब मुझे ईमेल से सूचना भेजी गई कि कंपनी ने अपने कर्मचारियों में 15 प्रतिशत की छंटनी करने का फैसला लिया है। बिलकुल इसी सहजता के साथ यह भी कह दिया गया कि मैं भी उसमें शामिल हूं।
मेरी खुशकिस्मती है कि मैंने इन्नोवैक्सर में शानदार लोगों के साथ काम किया। इस खबर को पचा पाना मेरे लिए आसान नहीं था चूंकि सिस्टम में नई थी। फिर भी मैंने दिल को शांत किया यह सोच कर कि छंटनी का आपके प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं होता है। सारा मसला गलत जगह और गलत समय का होता है।
2023 में मैं कहां रहूंगी, इसकी मेरी कोई योजना नहीं है। मैं लिंक्डइन पर अपने समुदाय से अनुरोध करूंगी कि वे मुझे सही अवसर तलाशने में सहयोग करे। मैं फिलहाल फ्रीलांसिंग और पूर्णकालिक दोनों तरह के काम के लिए तैयार हूं।
शेफाली गिल, नोएडा
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आप यदि इस तस्वीर को देखें तो पाएंगे कि गले में एक बड़ा सा हीरों का हार लटका हुआ है। यह 245 कैरेट का जुबिली डायमंड है जो कोहिनूर से भी दोगुना बड़ा था। तस्वीर में दिख रही महिला का नाम है मेहरबाई टाटा, जो जमशेदजी टाटा की बहू और उनके सबसे बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा की पत्नी थीं। सन 1924 में जब पहले विश्व युद्ध के दौरान मंदी आई थी, टाटा स्टील के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं थे। मेहरबाई ने उस समय अपना यह अमूल्य जुबिली डायमंड इम्पीरियल बैंक में गिरवी रख दिया था ताकि कर्मचारियों को नियमित तनख्वाह मिल सके और कंपनी चलती रह सके। सर दोराबजी टाटा ने इस हीरे को बेचकर उससे मिले पैसे से टाटा मेमोरियल कैंसर रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। शीर्ष टेक कंपनियां और कई अन्य जो आज अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं, उन्हें इस घटना से सीखना चाहिए।
अभिषेक विजयवर्गीय,बेंगलूरु
(लोगों के निजी अनुभव उनके लिंक्डइन से साभार)
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महामारी के समय जब हमने बिजनेस का विस्तार किया, तब हमने जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ
मार्क जकरबर्ग, सीईओ मेटा
फिलिप्स के भविष्य को बचाने के लिए गंभीर योजना की जरूरत है। चुनौतियां बेहद कड़ी हैं।
रॉय जैकब्स, सीईओ, फिलिप्स
हम छंटनी के लिए माफी मांगते हैं। मैं समझता हूं कि आप अपने भविष्य को लेकर कितने चिंतित हैं।
सुंदर पिचाई, सीईओ, गूगल
हमने भविष्य में टिकाऊ कामयाबी के लिए बदलाव के मद में अपने इरादे साफ किए हैं।
थॉमस सुरेसिग, एसएपी के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के सदस्य