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इक्विटी म्युचुअल फंड में जोखिम कम

रिस्क यानी जोखिम हर क्षेत्र में होता है, लेकिन यह स्थिति और दूसरे कारणों पर भी निर्भर करता है। वित्तीय...
इक्विटी म्युचुअल फंड में जोखिम कम

रिस्क यानी जोखिम हर क्षेत्र में होता है, लेकिन यह स्थिति और दूसरे कारणों पर भी निर्भर करता है। वित्तीय क्षेत्र में निवेश से जुड़े कई इस्ट्रूमेंट्स है जिनमें अलग अलग तरह के जोखिम होते हैं। मैने एक बात सीखी है कि निवेश और जोखिम एक ही सिक्के के दो पहलू है और हमेशा साथ-साथ चलते हैं। लेकिन इसके लिए हमें चीजों को मैनेज करना आना चाहिए।

जब निवेश की बात आती है तो पहले हमें अपनी सुरक्षा खासकर जीवन और स्वास्थय को प्राथमिकता देनी चाहिए। वहीं आपात स्थिति के लिए इमरजेंसी फंड का भी इंतजाम होना चाहिए। जब ये दोनों चीजे पूरी हो जाए तब निवेश के बारे में सोचना चाहिए। अपने निवेश यात्रा को शुरु करने से पहले हमें तीन बातों का अतंर बारीकी से समझना होगा कि सेविंग, निवेश और आकलन में क्या अंतर है।

बचत और निवेश को समझना आसान है। जबकि अटकलबाजी जोखिम भरा है, क्योंकि यह वित्तीय साधनों में पैसा लगाने के बारे में पैसा लगाते समय संबंधित जोखिम को समझने के बिना ही किया जाता है। जब आप इसके बारे में पढ़ते है तो आप इसे एक निवेशक की मानसिकता के साथ पढ़े न कि सट्टेबाजी की मानसिकता के साथ।
म्युचुअल फंड के निवेश में एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि इशमें जोखिम उठाने की रणनीति पहले से तय होती है। जो पेशेवरों के द्वारा किया जाता है। इसलिए सीधे इक्विटी में निवेश और उसके जोखिम को समझने के लिए आपको पहले म्युचुअल फंड में निवेश करना चाहिए।

इक्विटी म्युचुअल फंड के लिए क्वालीफाई करने के लिए फंड स्कीम का इक्विटी एक्सपोजर कम से कम 65 फीसदी होना चाहिए जो अधिकतम 100 फीसदी तक हो सकता है। इसके अलावा एक इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) भी होती है जिसमें इक्विटी एक्सपोजर कम से कम 90 फीसदी होता है। इस स्कीम में निवेश तीन साल के लॉक इन पीरियड के लिए होता है। यह स्कीम इनकम टैक्स के सेक्शन 80सी के तहत टैक्स डिडक्शन के लिए भी क्वालीफाई करती है।

इक्विटी म्यूचुअल फंड का यूनिवर्स भारत के मार्केट कैपिटलाइजेशन और सेक्टर्स के साथ अंतरराष्ट्रीय स्टॉक्स में भी पर्याप्त डाइवर्सिफिकेशन प्रदान करता है। इसके लिए निवेश के विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति निवेश जोखिम का प्रबंधन करने के लिए सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकता है।

एसआईपी के जरिए निवेश के कई लाभ हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या रुपए की लागत है। जब आप एसआईपी के जरिए निवेश करते हैं तो म्यूचुअल फंड स्कीम में ज्यादा यूनिट खरीदने का प्रयास करते हैं। मार्केट के डाउन होने पर आप निवेश करते हैं और जब यूनिट्स की संख्या कम हो जाती है तो मार्केट अप हो जाता है। इस तरीके से एक अवधि के बाद फंड स्कीम में औसत यूनिट खरीदने का मौका मिलता है। सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि एसआईपी आपके वित्तीय लक्ष्यों को पाने के लिए निवेश के अप और डाउन की स्थिति में इमोशंस को संभालता है।

इक्विटी म्यूचुअल फंड 7 से 10 साल या इससे ज्यादा लंबी अवधि के निवेश के लिए उपयुक्त है। इक्विटी म्यूचुअल फंड लंबी अवधि में कंपाउंडिंग की पावर को महत्वपूर्ण इजाफा करते हैं। आप एक वित्तीय लक्ष्य तय करके निवेश शुरू कर सकते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए राशि और निवेश की अवधि तय करनी होती है। आपके वित्तीय लक्ष्य के अनुसार, एसआईपी निवेश की गणना करने के लिए कई ऑनलाइन कैलकुलेटर मौजूद हैं। इसके जरिए आप अनुमानित रिटर्न की गणना कर सकते हैं। आप अपने वित्तीय लक्ष्य को तय वर्षों में पाने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड का एक मिक्स पोर्टफोलियो बना सकते हैं।

आमतौर पर एक पोर्टफोलियो में 4 से 5 फंड स्कीम हो सकती है, जिसे आप एक निवेश सलाहकार के साथ बातचीत करने के बाद तय कर सकते हैं। एक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर बातचीत के दौरान आपके अनुभव के आधार पर सबसे अच्छी सलाह दे सकता है। मैं भी आपको बातचीत करने के बाद ही अच्छी सलाह दे सकता हूं क्योंकि मेरे पास भी अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए एक सलाहकार है।

(लेखक पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड के सीईओ हैं)

 

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