ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में लंबे समय से चली आ रही मंदी के कारण दस लाख नौकरियों पर खतरे की तलवार लटक रही है। इस स्थिति से बचने के लिए ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने पूरे ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए जीएसटी दर में 18 प्रतिशत की एक समान स्तर की कमी की मांग की है। वाहन उद्योग में लंबे समय से चली आ रही मंदी से इस क्षेत्र की नौकरियों पर जोखिम बढ़ गया है। यदि जीएसटी की दर पर सरकार बात मान लेती है तो नौकरियां बचाने में मदद मिल सकती है।
कई महीनों से है गिरावट
ऑटो कंपोनेंट उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (एसीएमए) जो अकेले लगभग 50 लाख लोगों को रोजगार देता है ने वाहनों के विद्युतीकरण नीति पर भी सरकार से रुख स्पष्ट करने की मांग की है।एसीएमए के अध्यक्ष राम वेंकटरमानी का कहना है कि, मोटर वाहन उद्योग अभूतपूर्व मंदी का सामना कर रहा है। पिछले कई महीनों से हर सेगमेंट में वाहनों की बिक्री में गिरावट लगातार जारी है। उनका कहना है कि वाहन उद्योग के कारण ही ऑटो कंपोनेंट उद्योग प्रगति करता है। ऐसे में वाहन उत्पादन में वर्तमान 15-20 प्रतिशत की कटौती से संकट जैसी स्थिति पैदा हो गई है। यदि वाहन उद्योग में यही स्थिति जारी रहती है तो करीब 10 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
जीएसटी दर है 28 प्रतिशत
वेंकटरमानी का कहना है कि कुछ जगह तो लेऑफ की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है। जीएसटी के तहत पहले से ही करीब 70 फीसदी ऑटो कंपोनेंट्स 18 फीसदी जीएसटी स्लैब के दायरे में आ चुके हैं। हालांकि 28 फीसदी के स्लैब में 30 फीसदी ही प्रोडक्ट आते हैं। इसके अलावा, फिलहाल इंजन साइज और टाइप के आधार पर ऑटोमोबाइल 1 से 15 फीसदी के अतिरिक्त सेस के साथ 28 प्रतिशत की ऊंची जीएसटी दर में आता है।
वेंकटरामनानी ने कहा कि हाल ही में बीएस 4 से बीएस 6 उत्सर्जन मानकों में बदलाव के लिए किए गए हालिया निवेश, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पॉलिसी पर स्पष्टता की कमी ने उद्योग में अनिश्चितता पैदा कर दी है और इससे भविष्य के सभी निवेश बंद हो गए हैं।वेंकटरमानी का कहना है कि उद्योग को तत्काल सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है हम दृढ़ता से अनुशंसा करते हैं कि सरकार पूरे ऑटो और ऑटो कंपोनेंट क्षेत्र में 18 प्रतिशत जीएसटी दर लाए।इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए एक स्थिर नीति की आवश्यकता पर टिप्पणी करते हुए, वेंकटरमनी ने कहा कि ईवी के रोलआउट के लिए लक्ष्यों में किसी भी तरह के बदलाव से देश के आयात बिल में वृद्धि होगी और पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के मौजूदा घटकों को नुकसान होगा।