शुक्रवार को संसद में पेश कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2011-16 के दौरान फसल बीमा के दावों का वैरीफिकेशन किए बगैर ही 10 प्राइवेट कंपनियों को 3622.79 करोड़ रुपये की धनराशि का भुगतान कर दिया गया। प्रीमियम पर सब्सिडी के तौर पर बीमा कंपनियों को यह पैसा सरकारी क्षेत्र की एग्रीकल्चर बीमा कंपनी (AIC) के जरिए दिया गया था।
कैग ने 2011-16 के दौरान राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS), संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (MNAIS) और मौसम आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS) के क्रियान्वयन का ऑडिट किया था। 2016 से इन योजनाओं की जगह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने ले ली है।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, उक्त फसल बीमा योजनाओं के लिए केंद्र सरकार ने अपने हिस्से की धनराशि तो जारी कर दी लेकिन कई राज्य सरकारें समय पर अपना योगदान करने में नाकाम रही हैं। जिसके चलते पिछले साल 10 अगस्त तक NAIS के तहत 7010 करोड़ रुपये, MNAIS के तहत 332 करोड़ रुपये और WBCIS के तहत 999.28 करोड़ रुपये के क्लेम अटके हुए थे।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2011-16 के दौरान जिन नौ राज्यों में योजनाओं का ऑडिट किया गया वहां दावों के निपटारे में 45 दिन की तय समय सीमा के बजाय 1060 दिन यानी करीब तीन साल का समय लगा। योजनाओं की मॉनिटरिंग में भी कई खामियां सामने आई हैं। उल्लेखनीय है कि पुरानी फसल बीमा योजनाओं की इन खामियों के चलते ही केंद्र सरकार ने 2016 के खरीफ सीजन से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की है जिसमें पुरानी कमियों को दूर करने का दावा किया है। हालांकि, नई बीमा योजना को लेकर भी किसानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
फसल बीमा के बारे में किसानों के बीच जागरुकता की कमी की बात भी कैग के सर्वे में उजागर हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे के दौरान 67 फीसदी किसानों को फसल बीमा योजनाओं की जानकारी नहीं थी।