ट्राई ने कहा कि इस फैसले के तहत दूरसंचार कंपनी को कॉल ड्राॅप के चार घंटे के भीतर अपने ग्राहक को एसएमएस या यूएसएसडी कर के संदेश भेज कर काल ड्राप और उसके खाते में भेजी गई राशि की जानकारी देना होगा। पोस्ट पेड ग्राहकों को उक्त राशि उनके अगले बिल में मुहैया कराई जाएगी।
नियामक ने कहा कि उसका मानना है कि इस प्रणाली से ग्राहकों को कुछ हद तक कॉल-ड्रॉप की समस्या से निजात मिलेगी और सेवा प्रदाताओं को अपनी सेवा की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिलेगी। दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने टाइ की राय का समर्थन किया।
उन्होंने कहा जहां तक शुल्क का सवाल है, ट्राई अधिनियम के तहत नियामक के पास अंतिम अधिकार है। यह नियम एक बार बन जाएगा तो यह कानून बन जाएगा और परिचालकों तथा सरकारों के लिए बाध्यकारी हो जाएगा। इसलिए इसका स्वागत करते हैं और हमें उम्मीद है कि यह उपभोक्ताओं की चिंता दूर करने की दिशा में बड़ी भूमिका निभाएगा। मंत्री ने सभी परिचालकों से कहा है कि वे कॉल-ड्रॉप के मुद्दे का समाधान बेहद गंभीरता से करें। प्रसाद ने कहा वोडाफोन यहां थे। मैंने उन्हें इसके बारे में बताया .. दूरसंचार सचिव ने भी सभी मालिकों से बात की है। मेरा कार्यालय इसकी निगरानी कर रहा है। मुझे उम्मीद है कि कॉल-ड्रॉप जल्दी ही अतीत की चीज बन जाएगा।
उद्योग संगठन सेल्यूलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने अनुमान जताया कि यदि आधे उपभोक्ताओं को ही यदि कॉल-ड्रॉप का सामना करना पड़ा तो इस नियम से उद्योग को रोजाना करीब 150 करोड़ रुपये अदा करने होंगे। सीओएआई के महानिदेशक राजन एस मैथ्यूज ने कहा ऐसे कई प्रावधान हैं जिनकी नियामक ने उपेक्षा की है। उपभोक्ता जिस नेटवर्क पर काल कर रहा है और यदि उस नेटवर्क में कोई समस्या है तो जिस नेटवर्क से काल हो रही है उसे क्यों दंड दिया जाए। परिचालकों के संगठन ने कहा कि वह नियामक के पास जाएगा और अपनी चिंता सामने रखेगा क्योंकि यह फैसला कॉल-ड्रॉप की वास्तविक वजह से इतर है।
मैथ्यूज ने कहा दिल्ली में पिछले तीन सप्ताह में कोई 350 टावर और मुंबई में पिछले चार-पांच महीनों में 100 टावर सील किए गए हैं। कॉल-ड्रॉप की समस्या सुलझाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं जबकि स्थानीय अधिकारी मोबाइल टावर सील कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लाइसेंस की शर्तों में दूरसंचार परिचालकों को 100 प्रतिशत कवरेज और भवन के अंदर भी सेवा मुहैया कराने का प्रावधान शामिल नहीं है। उन्होंने कहा यदि कुछ हद तक कॉल-ड्रॉप लाइसेंस की शर्तों में न आने वाले कारणों से हो तो परिचालक उपभोक्ता को भरपाई क्यों करे। लाइसेंस की शर्तों में कहा गया है कि सड़क पर सिग्नल 85 डीबीयू होना चाहिए जो कुछ मामलों में भवन के अंदर उपलब्ध हो सकता है और कभी-कभी नहीं भी। यदि किसी भवन के भीतर कॉल-ड्रॉप होती है तो इसकी भरपाई परिचालक क्यों करे। उन्होंने कहा कि नियामक ने अपनी सिफारिशों के मुताबिक नेटवर्क में बदलाव के लिए उद्योग पर प्रौद्योगिकी में बदलाव और लागत के बोझ को ध्यान में नहीं रखा। मैथ्यूज ने कहा हम कोई फैसला करने से पहले टाइ के साथ इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे।