हालांकि, इसके विपरीत भारत में इस दौरान पूंजी प्रवाह बढ़ा है और जानकारों का मानना है कि चीनी बाजार की बिगड़ती स्थिति के बीच निवेशक भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में ज्यादा निवेश करेंगे।
विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मंदी का वैश्विक वित्तीय और कमोडिटी बाजार पर कहीं ज्यादा असर पड़ रहा है और ग्रीस संकट की तुलना में इसका ज्यादा गहरा तथा करीबी असर पड़ेगा। एसोचैम के दस्तावेज में कहा गया है, ‘चूंकि यूरोप और अमेरिका दोनों के लिए चीन दूसरा सबसे बड़ा कारोबार सहयोगी है इसलिए जाहिर है कि चीनी अर्थव्यवस्था की बिगड़ती सेहत शेष विश्व के लिए भी अच्छी खबर नहीं है। इस्पात, तांबा, लौह अयस्क, कच्चे तेल से जुड़ी वैश्विक कंपनियाें के मुनाफे और राजस्व में भारी कमी आई है।’ एसोचैम ने यह दस्तावेज अमेरिका, यूरोप और दक्षिण पूर्वी एशिया में मौजूद अपने विदेशी कार्यालयाें से मिल इनपुट के आधार पर वैश्विक वित्तीय हालात का खाका तैयार करते हुए बनाया है। इसमें कहा गया है कि इसका गहरा असर वैश्विक कंपनियों के संपूर्ण पूंजीगत खर्च में तत्काल देखा गया है और कमोडिटी बाजार में कई सौ अरब डॉलर का निवेश कम हुआ है। दूसरी तरफ, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों तरह की कंपनियों में नुकसान के साथ-साथ मौजूदा कर्ज की सीमा भी समस्या बन गई है जो बंदरगाह, नौवहन, रेलवे और सड़कों जैसी बुनियादी संरचना के लिए दी जा रही है।
एसोचैम के दस्तावेज के मुताबिक, भारत पर भी इसका असर हुआ है क्योंकि कुछ बड़ी कंपनियों ने इस्पात, अल्यूमीनियम, तांबा तथा अन्य धातुओं में बड़े निवेश की घोषणा की थी जिसके लिए अब वे मांग, मूल्य तथा मुनाफे में तेज गिरावट को देखते हुए अपनी योजनाओं की नए सिरे से समीक्षा कर रही हैं। भारत की एक बड़ी जहाजरानी कंपनी की सकल आय नकारात्मक हो गई है और इसने खुद को बीमार कंपनी घोषित कर दिया है। चीन की मंदी का असर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनियों की आय में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत का कहना है कि चीन की दशा यदि और बिगड़ती है तो कंपनियों की स्थिति और दयनीय हो जाएगी। चीनी बाजार में यदि और ज्यादा अस्थिरता पैदा होती है तो इसका असर वित्तीय बाजारों पर भी पड़ेगा जैसा कि 12 जून से पहले तक के कुछ हफ्तों में देखा गया है। चीन की सरकार ने इसके बाद ही स्थिति पर नियंत्रण के लिए कुछ कड़े कदम उठाए थे।