भारत, अमेरिका और सिंगापुर सहित दुनियाभर की बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन की बुनियादी आर्थिक समस्याओं से ज्यादा चिंतित नजर आ रही हैं। एसोचैम के एक दस्तावेज के मुताबिक, इन कंपनियों को आशंका है कि ग्रीस संकट की तुलना में चीन की खराब अर्थव्यवस्था का विश्व के वित्तीय और कमोडिटी बाजारों पर ज्यादा असर पड़ेगा।
यूरोपीय देश आर्थिक संकट से जूझ रहे यूनान को राहत पैकेज देने पर तैयार हो गए हैं। ब्रसेल्स में करीब 17 घंटे तक चली शिखर वार्ता के बाद यूरोपीय संघ और यूनान के बीच इस मुद्दे पर सहमति बन गई है। पिछले पांच साल में यूनान को मिलने वाला यह तीसरा राहत पैकेज होगा, जिसके साथ कई कठोर शर्ते भी माननी होंगी।
यह कोई लंबे चाकुओं वाली रात (नाईट ऑफ लॉन्ग नाईव्ज) नहीं थी। इस बार यह सबको पता था। यूनान के यूरोजोन से बाहर हो जाने को रोकने के लिए एक समाधान निकाल लिया जाएगा, यह और कुछ नहीं सिर्फ एक भोली भाली सोच थी। जैसे ही यूनान के अनियत मार्क्सवादी वित्त मंत्री यानिस वारूफकिस ने अपना पद छोड़ा तो स्टॉक बाजार और मुद्रा विनीमय केंद्र को समझ में ही नहीं आया कि कैसी प्रतिक्रिया दें, राहत मिलने की या घबराहट या गुस्से और खुशी वाली कि सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है।