एसोचैम ने कहा, मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में बाजार मूल्य पर 5.15 लाख करोड़ रुपये के सरकारी खर्च के मुकाबले सरकार को तीसरी और चौथी तिमाही में प्रत्येक के लिए इसे बढ़ाकर सात लाख करोड़ रुपये करना चाहिए। भले ही वृद्धि के नाम पर कुछ राजकोषीय असंतुलन क्यों न आ जाए।
सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए तरीके ढूंढने होंगे कि नकदी की कमी के चलते परियोजनाओं का निर्माण नहीं रुके। एसोचैम ने कहा कि निजी अंतिम उपभोग खर्च (पीएफसीई) का आंकड़ा मौजूदा मूल्य पर देश के सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत जबकि स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) के आधार पर यह 55 प्रतिशत रहा है।
एसोचैम के मुताबिक नोटबंदी के बाद करीब 86 प्रतिशत मुद्रा चलन से बाहर हो गई है जिससे तीसरी तिमाही में पीएफसीई में कटौती होने की आशंका है और यह करीब 35 से 40 प्रतिशत कम हो जाएगा और इसके बाद चौथी तिमाही में यह और घट सकता है।
संख्या के आधार पर मौजूदा मूल्य पर पीएफसीई दूसरी तिमाही में 21.78 लाख करोड़ रुपये रहा है जो पिछले साल इसी अवधि के पीएफसीई से 12.4 प्रतिशत अधिक है। स्थिर मूल्य के आधार पर वित्त वर्ष 2016-17 की जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान पीएफसीई के 16.26 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था।
भाषा