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उत्तराखंड में एक हजार करोड़ की जीएसटी चोरी, फर्मों ने कराया था ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन

उत्तराखंड में जीएसटी की चोरी करके सरकार को एक हजार करोड़ रुपये का चूना लगाने का मामला सामने आया है।...
उत्तराखंड में एक हजार करोड़ की जीएसटी चोरी, फर्मों ने कराया था ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन

उत्तराखंड में जीएसटी की चोरी करके सरकार को एक हजार करोड़ रुपये का चूना लगाने का मामला सामने आया है। मामला पकड़ में आया तो आरोपी फर्मों के खिलाफ एफआइआर करा दी गई है। अहम बात यह भी है कि इस मामले में विभागीय अफसर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर सिस्टम की खामी को दोषी बता रहे हैं। 

काशीपुर, रुद्रपुर में 74 फर्मों पर एफआइआर

राज्य के ऊधमसिंहनगर जिले में जीएसटी घोटाले का यह बड़ा मामला सामने आया है। राज्य कर विभाग की ओर से रुद्रपुर और काशीपुर कोतवाली में दो अलग-अलग एफआइआर कराईं गईं है। रुद्रपुर कोतवाली में दर्ज एफआईआर के अनुसार 40 फर्मों ने 473 करोड़ की कर चोरी की है। इसी तरह, काशीपुर कोतवाली की रिपोर्ट के अनुसार 34 फर्मों ने सरकार को 529 करोड़ रुपये की चपत लगाई है। इस तरह से यह घोटाला एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है। अधिकांश फर्में काशीपुर और रुद्रपुर की ही हैं। हालांकि कुछ फर्म राजधानी देहरादून की भी बताई जा रही हैं।

जीएसटी रिटर्न जमा नहीं कराए गए

बताया जा रहा है कि इन फर्मों ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया था। सभी ने अपने कागजात भी ऑनलाइन जमा कराए और पंजीकरण हासिल कर लिया। इसके बाद ई-वे बिल जनरेट करके अन्य राज्यों ने माल मंगाना शुरू कर दिया। लेकिन जीएसटी राशि जमा नहीं कराई गई। विभागीय अधिकारियों ने किसी भी फर्म का सर्वे या फिर स्थलीय निरीक्षण नहीं किया। नियमानुसार किसी भी फर्म को हर माह के अंत में जीएसटीआर-1 और फार्म 3-बी के विवरण के आधार पर टैक्स राशि जमा करनी होती है। ये फर्जी फर्में सरकार को राजस्व का चूना लगाती रहीं और विभागीय अफसरों को इसकी भनक तक नहीं लग सकी। न तो जिम्मेदार अफसरों ने यह जानने की कोशिश की कि पंजीकरण के बाद भी रिटर्न फार्म क्यों नहीं आ रहे हैं और जीएसटी क्यों जमा नहीं हो रहा है।

कई फर्मों के पंजीयन में एक ही शख्स का फोटो

इसकी भनक राज्य मुख्यालय को लगी तो फील्ड के अफसरों को तहकीकात करने को कहा गया। जांच में पता चला है कि ऑनलाइन पंजीकरण में अधिकांश फर्मों की ओर से आवेदक यानी फर्म के संचालक के तौर पर एक ही शख्स के फोटो का इस्तेमाल किया गया है। अलबत्ता कागजात अलग-अलग अपलोड किए गए हैं। इन फर्मों ने प्लास्टिक दाना और चप्पल के लिए कच्चा माल मंगाने के लिए ई-वे बिल जनरेट किए। कुछ फर्मों ने मशीनें मंगाने के लिए भी ई-वे बिल जनरेट किए।

केंद्र की जिम्मेदारी बताकर पल्ला झाड़ा

जीएसटी चोरी के मामले में अफसरों के अपने ही तर्क है। एफआइआर कराने वाले उपायुक्त (एसटीएफ) आरएल वर्मा का कहना है कि पहली बात तो यह है कि इन फर्मों ने अपना पंजीकरण सीजीएसटी (केंद्रीय जीएसटी विभाग) में कराया है। इसकी पूरी मॉनीटरिंग केंद्रीय विभाग ही करता है। हालांकि वर्मा ने माना कि मॉनीटरिंग का काम एसजीएसटी (राज्य कर विभाग) का भी है। अगर ऐसा न होता तो यह मामला पकड़ में ही नहीं आता। वर्मा कहते हैं कि ऑनलाइन पंजीकरण सिस्टम में कुछ खामियां हैं। लोग कट-पेस्ट करके ऑनलाइन पंजीकरण करा लते हैं। इसी का फायदा व्यापारी उठाते रहते हैं। बेहतर होगा कि पंजीरकरण पहले की तरह ऑफलाइन ही कराया जाए। वर्मा ने कहा कि इस मामले में अहम बात यह है कि न तो उत्तराखंड में कोई माल आया और न ही गया है। अब इस मामले की सच्चाई क्या है, यह तो साइबर जांच के बाद ही सामने आ पाएगा।

जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी जाएगी

कर चोरी की एफआइआर होने के बाद विभाग में हड़कंप मचा है। बताया जा रहा है कि पुलिस इस मामले की जांच ईओडब्ल्यू ( आर्थिक अपराध शाखा) को सौंप रही है। किसी अपराध में राशि एक करोड़ से अधिक होने पर सामान्य पुलिस को जांच का अधिकार नहीं होता है।

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