आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि 50 लाख रुपये तक के कारोबारियों को भी जीएसटी की निर्धारित मानक दर की तुलना में सबसे कम कर भुगतान करना होगा।
अधिकारियों का कहना है कि अंतर-राज्यीय कारोबार करने वाले कारोबारियों के लिए रियायती कर दर का प्रावधान नहीं होगा, चाहे उनका टर्नओवर जितने का रहा हो। रियायत की मात्रा का फैसला प्रस्तावित जीएसटी परिषद द्वारा किया जाएगा और यही परिषद मानक जीएसटी दर भी निर्धारित करेगी। जीएसटी की शुरुआती कर दर सीमा राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार-प्राप्त समिति द्वारा निर्धारित की जाएगी। इस समिति की बैठक शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन भी जारी रही जिसमें संकेत मिला है कि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए यह शुरुआती सीमा पांच लाख रुपये तक हो सकती है।
जीएसटी के लिए प्रस्तावित न्यूनतम टर्नओवर स्तर निर्धारित करने का मतलब दो बातें होंगी। एक तो 10 लाख रुपये से कम की सालाना बिक्री करने वाले छोटे कारोबारी (कई राज्यों में वैट की प्रवेश सीमा 5 लाख रुपये और इससे कम होती है जबकि अन्य राज्यों में यह सीमा 10 लाख रुपये या इससे अधिक है) को कर दायरे से अलग रखा गया है। कुछ छोटी विनिर्माण इकाइयों को कर दायरे में रखने का मतलब होगा कि अब केंद्रीय आबकारी शुल्क सिर्फ 1.5 करोड़ रुपये टर्नओवर वाली इकाइयों को ही चुकाना होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी के लिए 10 लाख रुपये से नीचे के टर्नओवर पर कर निर्धारण का फैसला छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किल पैदा करेगा क्योंकि कर भुगतान के लिए जटिल आईटी नेटवर्क का इस्तेमाल एवं नियम पालन तथा बकाया राशि का दावा करना उनके बस की बात नहीं होगी।
केंद्र सरकार ने 25 लाख रुपये की टर्नओवर सीमा निर्धारित करने की कोशिश की थी और इसे कम टर्नओवार वाले व्यापारियों का पंजीकरण भी शुरू कर दिया था ताकि इस सीमा से अधिक उनकी बिक्री होने पर उन्हें कर दायरे में दबोचा जा सके। लेकिन राज्यों के वित्त मंत्री इससे सहमत नहीं हुए। केंद्र की सिफारिश के मुुताबिक यदि जीएसटी की न्यूनतम टर्नओवर सीमा 25 लाख रुपये रखी जाती है तो इस कर दायरे में आधे से ज्यादा मौजूदा कारोबारी बाहर हो जाएंगे।