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ओएनजीसी संग गैस विवाद में सरकार की भूमिका नहीं: रिलायंस

ओएनजीसी-रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच प्राकृतिक गैस विवाद मामले में जिम्मेदारी और मुआवजा निर्धारित करने के लिए गठित न्यायमूर्ति ए पी शाह समिति के कार्यक्षेत्र को लेकर निजी क्षेत्र की कंपनी ने चुनौती दी है और सहयोग नहीं करने का फैसला किया है।
ओएनजीसी संग गैस विवाद में सरकार की भूमिका नहीं: रिलायंस

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी सहयोग कर रही है चाहती है कि समिति उसके बंगाल की खाड़ी स्थित कृष्णा गोदावरी बेसिन ब्लाक से रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी 6 फील्ड में प्रवाहित प्राकृतिक ग्रैस के लिए मुआवजे और जुर्माने का निर्धारण करे।
सूत्रों ने कहा कि रिलायंस ने समिति से कहा है कि वह यह स्वीकार नहीं करती कि भारत सरकार कोई समिति गठित कर सकती है या विवाद से जुड़े किसी भी मुद्दों का निपटान कर सकती है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने दलील दी कि विवाद का समाधान केवल मध्यस्थता प्रक्रिया से हो सकता है। इस संबंध में रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रवक्ता को ई-मेल भेजा गया लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के मंत्रालय को निर्देश के बाद शाह समिति का गठन किया गया। अदालत ने स्वतंत्र सलाकहार डे गोलयेर तथा मैकनॉटन (डी एंड एम) की रिपोर्ट मिलने के छह महीने के भीतर विवाद के बारे में फैसला करने को कहा था। अपनी आंतरिक आकलन पर भरोसा करने के बजाय मंत्रालय ने भूल-चूक के बारे में गौर करने और ओएनजीसी को मुआवजा देने की सिफारिश के लिए पूर्व विधि आयोग के प्रमुख की अध्यक्षता में समिति गठित करने का फैसला किया।
रिलायंस इंडस्ट्रीज तथा ओएनजीसी ने आपसी सहमति से डी एंड एम की नियुक्ति की। स्वतंत्र सलाहकार ने 30 नवंबर को दी अपनी रिपोर्ट में कहा कि ओएनजीसी का केजी बेसिन ब्लाक केजी-डीडब्ल्यूएन...98:2 (केजी-डी5) तथा गोदावरी-पीएमएल धीरूभाई-। तथा 3 फील्ड से जुड़ा है जो आरआईएल के केजी-डीडब्ल्यूएन-98:3 (केजीडी-6) में स्थित है।
रिपोर्ट के अनुसार 11.122 अरब घन मीटर प्राकृतिक गैस ओएनजीसी के निष्कि्रय फील्ड से रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी6 ब्लाक में चली गई। इस गैस का मूल्य 11,000 करोड़ रुपये से अधिक बैठता है। सूत्रों के अनुसार आरआईएल की दलील है कि शाह समिति के पास मामले या ओएनजीसी के दावों के बारे में निर्णय करने का अधिकार नहीं है और उसकी सिफारिशें उस पर बाध्यकारी नहीं हैं।
हालांकि मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार इस बारे में निर्णय सरकार को करना होगा। समिति की सिफारिशें ऐसे किसी निर्णय पर पहुंचने में मददगार होंगी। उसने कहा कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के असहयोग से केवल मामले के समाधान में विलंब होगा।

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