सूत्रों ने बताया कि यह छोटे दुकानदार जाहिरा तौर पर बड़ी रकम की नकदी नहीं बदलते हैं और एक दो नोट ही बदलते हैं, लेकिन किसी संपर्क अथवा बिचौलिये के जरिये पहुंचने पर एक लाख रुपये की पुरानी नकदी पर सौ सौ रुपये की शक्ल में 50 हजार रूपये तक मिल सकते हैं।
जानकारों का कहना है कि यह लोग पहले पुराने नोटों को फाड़ देते हैं और फिर उसे 30 दिसंबर से पहले रिजर्व बैंक में बदलवाकर मुनाफा निकाल लेंगे। उन्होंने बताया कि सिंडीकेट ने कमीशन पर नोट बदलने का अनुपात कुछ इस प्रकार तय किया है कि बड़ी रकम पर टैक्स और 200 फीसद जुर्माना देने के बाद भी उन्हें कुछ फायदा मिल जाएगा। हालांकि सरकार काले धन के खिलाफ जंग में पूरी तरह से मुस्तैद है और रोज नये-नये निर्देश जारी करके अवैध तरीके से कमाये गये ज्यादा से ज्यादा धन को बाहर लाने का पूरा प्रयास कर रही है।
खाते में ढाई लाख रुपये तक की छूट और पैन की अनिवार्यताओं के बावजूद लोग कालेधन के खिलाफ जंग में भी कालाधन बनाने के नये नये उपाय तलाश रहे हैं। सरकार ने एक सप्ताह बाद भी बैंकों में खत्म नहीं होने वाली कतारों, लोगों के झगड़ालू होते स्वभाव और काले धन को सफेद करने वाले सिंडिकेटों को रोकने के लिए बंद हो चुकी मुद्रा की अदला-बदली करने वाले लोगों की निशानदेही के लिए अमिट स्याही से निशान लगाने की तरकीब निकाली है।
हालांकि सरकार की स्याही लगाने की घोषणा के बाद चुनाव आयोग ने वित्त मंत्रालय को एक पत्र भेजकर संदिग्ध जमाकर्ताओं पर नजर रखने के उपाय के तौर पर अमिट स्याही के इस्तेमाल करने के लिए चुनाव आयोग के नियमों का खयाल जरूर रखने को कहा है। आयोग की घोषणा के अनुसार 19 नवंबर को पांच राज्यों में उपचुनाव होने हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा और गाजियाबाद के बिल्डर और भवन निर्माता भी कालेधन को सफेद बनाने के धंधे में शामिल हैं। बिल्डर अभी भी पुराने नोट स्वीकार करके फ्लैट बुक कराने पर तो सहमत हैं, लेकिन पुरानी नकदी में फ्लैट के लिए पूरा भुगतान लेने को लेकर डरे हुए भी हैं। सूत्रों का कहना है कि गोवा में मोदी द्वारा बेनामी संपत्ति और रीयल एस्टेट क्षेत्र में सर्जिकल स्टाइल की आशंका से अब बिल्डर जल्द से जल्द अपने फ्लैटों को निकालने के चक्कर में हैं, जिसके लिए उन्होंने अपने दाम भी घटा दिये हैं।
सूत्रों ने बताया कि बिल्डर के पास करीब 60 फीसद कर्मचारी दिहाड़ी मजदूर और छोटे ठेकेदार होते हैं, जिन्हें रोजाना भुगतान किया जाता है। बुक कराने की राशि को बड़ी आसानी से वह तीस दिसंबर तक अपने दिहाड़ी मजदूरों के बीच खपा देंगे। इसके अलावा वह ठेकेदारों को भी अग्रिम भुगतान कर नये आर्डर दे रहे हैं। हालांकि सरकार ने लोगों से दूसरों के पैसे अपने खाते में जमा नहीं कराने की भी अपील की है। सरकार ने कहा था कि वह जनधन खातों समेत अचानक जमा बढ़ने वाले अन्य खातों पर भी पैनी निगाह रखे हुये है। इसके अलावा अक्तूबर माह के दौरान देश का सोना आयात भी दोगुना होकर 3.5 अरब डाॅॅलर पर पहुंच गया। पिछले साल के अक्तूबर में 1.67 अरब डाॅॅलर का सोना आयात किया गया था।
हालांकि बीते दिनों दीपावली और त्यौहारी मांग के कारण भी स्वर्ण आयात बढ़ा है, लेकिन इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लोगों ने नोटबंदी के बाद काली कमाई को सोने में बदल लिया हो। पेटोल पंपों और मंदिरों के चढ़ावे के जरिये भी कालेधन को वैध बनाने की अफवाहें चल रही हैं। दूसरी ओर चलन से बाहर किये गये नोटों को बदलने में व्यापारियों और अन्य परिचालकों द्वारा कथित तौर पर मुनाफाखोरी करने और कर अपवंचना करने की खबरें आने के बाद आयकर विभाग द्वारा जांच और छापेमारी करने के डर से राजधानी में छठवें दिन भी स्वर्ण एवं आभूषण प्रतिष्ठान बंद हैं। राजधानी में अधिकांश सर्राफा दुकानें 11 नवंबर से बंद हैं।
सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्राालय की एक शाखा, केन्द्रीय उत्पाद खुफिया महानिदेशालय :डीजीसीईआई: के अधिकारियों ने उक्त आभूषण विक्रेताओं को नोटिस भेजा है तथा उनसे सोने की बिक्री का ब्यौरा मांगा है। इस सबके बीच उच्चतम न्यायालय ने कालेधन और अपराध के खिलाफ लड़ाई के लिए सरकार के कदम को सराहनीय बताते हुए केंद्र को आम लोगों की परेशानी कम करने संबंधी उपाय करने तथा नकदी निकासी की सीमा बढाने पर भी विचार करने का निर्देश दिया है। राजधानी के उद्योग मंडल सीआईआई ने अध्यक्ष नौशाद फोब्रस ने नकदी समस्या के लंबा खिंचने पर कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजों पर प्रतिकूल असर पड़ने का आशंका जताई है।
इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार के इस कदम से ज्यादातर लोगों को परेशानी हो रही है। विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी अर्थशास्त्राी गाॅय सोरमन का कहना है कि भारत सरकार का 500 और 1,000 का नोट बंद करने का फैसला एक स्मार्ट राजनीतिक कदम है, लेेकिन इससे भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अधिक नियमन वाली अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ता है।
उन्हाेंने कहा कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से बैंक नोोटों को बदलना एक स्मार्ट कदम है। हालांकि, इससे कुछ समय के लिए वाणिज्यिक लेनदेन बंद हो सकता है और अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ सकती है, लेकिन यह भ्रष्टाचार को गहराई से खत्म नहीं कर सकता। भाषा एजेंसी