जल्दबाजी में बुलाए गए एक संवाददाता सम्मेलन में वित्त सचिव राजीव महर्षि के लिए यह स्पष्टीकरण देने में कठिनाई हो रही थी कि मौद्रिक नीति समिति में रिजर्व बैंक के गवर्नर के वीटो का अधिकार खत्म करने के प्रस्ताव का मसौदा किसका था। उन्हाेंने यह कह कर कि यह एफएसएलआरसी का प्रस्ताव नहीं है, मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के दावे का खंडन किया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार की ओर से उठाया गया कदम भी नहीं है।
उन्हाेंने इस विवाद को समाप्त करने का प्रयास करते हुए कहा कि भारत के लोग इस रिपोर्ट के मसौदे के मालिक हैं। भारतीय वित्तीय संहिता (आईएफसी) के संशोधित मसौदे में नीतिगत ब्याज दर तय करने के लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर के वीटो के अधिकार को वापस लेने का प्रस्ताव है जिसको लेकर बहस छिड़ गई है। महर्षि ने नए विधेयक के मसौदे को आईएफसी 1.1 कहा। उन्हाेंने कहा कि संशोधित विधेयक वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला गया है और इसमें यह नहीं कहा गया है कि इसके लिए वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) ने सिफारिश की है। उन्हाेंने कहा कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की अगुवाई वाली समिति के गठन के साथ सबसे कुछ सार्वजनिक है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि यह किसकी सिफारिश है। सब सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।
महर्षि ने कहा, यदि आप वेबसाइट देखें, तो इसमें साफ कहा गया है कि कुछ बदलाव किए गए हैं। इसमें यह नहीं कहा गया है कि इसके लिए एफएसएलआरसी ने सिफारिश की है। भारत के लोग इस विधेयक के मालिक हैं क्याेंकि यह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। भारतीय वित्तीय संहिता (आईएफसी) के संशोधित मसौदे में कहा गया है कि किसी प्रकार का मौद्रिक फैसला सात सदस्यीय समिति द्वारा बहुमत के आधार पर किया जाएगा और इसमें गवर्नर को वीटो अधिकार नहीं होगा। इसको लेकर काफी बहस छिड़ी है और इसे केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता में कटौती के कदम के रूप में देखा जा रहा है।