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छोटी कंपनियों के पास वेतन देने के भी पैसे नहीं, लॉकडाउन में सरकार के कदम नाकाफी

कोविड-19 महामारी से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान को कम करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने अभी तक कई...
छोटी कंपनियों के पास वेतन देने के भी पैसे नहीं, लॉकडाउन में सरकार के कदम नाकाफी

कोविड-19 महामारी से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान को कम करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने अभी तक कई उपायों की घोषणा की है, लेकिन इनका एमएसएमई सेक्टर को प्रत्यक्ष लाभ होता नहीं दिख रहा है। एमएसएमई उद्योग संगठनों का कहना है कि अभी तक जो भी घोषणा हुई है उनका कोई खास प्रभाव नहीं दिखेगा। इस समय सबसे बड़ी समस्या कर्मचारियों को वेतन देने की है। जब तक सरकार इसमें मदद नहीं करती तब तक कंपनियों के लिए लॉक डाउन की अवधि में कर्मचारियों को पूरा वेतन दे पाना संभव नहीं होगा। इन कंपनियों के सामने भुगतान का भी संकट है। सरकारी कंपनियों और विभागों से भुगतान में उन्हें देरी हो रही है।

सरकार द्वारा पीएफ भुगतान का लाभ बहुत कम कंपनियों को: फिस्मे

छोटी-मझोली कंपनियों की फेडरेशन फिस्मे के महासचिव अनिल भारद्वाज ने आउटलुक को बताया कि इस सेक्टर के लिए अभी तक जो घोषणाएं हुई हैं उनका लाभ बहुत सीमित है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया, सरकार ने कहा है कि वह 100 कर्मचारियों से कम वाली कंपनियों के लिए पीएफ में नियोक्ता और कर्मचारी दोनों का अंशदान करेगी। पीएफ में सिर्फ 2.35 लाख कंपनियां रजिस्टर्ड हैं जबकि जीएसटी में 1.10 करोड़ रजिस्टर्ड हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार के इस कदम का लाभ कितनी कंपनियों को मिल सकेगा। इसके अलावा एक शर्त यह भी है कि 90 फ़ीसदी कर्मचारियों की तनख्वाह 15000 रुपए से कम होनी चाहिए। यानी इसका लाभ ग्रामीण क्षेत्रों की इकाइयों को ही मिल पाएगा क्योंकि शहरों में 15000 रुपए तक में काम करने वाले कम ही मिलते हैं। 100 कर्मचारियों की शर्त से मझोली कंपनियां वैसे ही बाहर हो गई हैं। 

मोरेटोरियम की अवधि के लिए ब्याज माफ किया जाना चाहिए

रिजर्व बैंक ने कंपनियों को वर्किंग कैपिटल पर ब्याज के भुगतान में 3 महीने तक मोरेटोरियम की छूट दी है। इस पर तमिलनाडु स्मॉल एंड टाइनी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव एम हिंदूनाथन ने कहा कि सरकार को मोरेटोरियम की अवधि में ब्याज माफ करना चाहिए था क्योंकि मोरेटोरियम खत्म होने के बाद कंपनियों को ब्याज की रकम एकमुश्त चुकानी पड़ेगी। जब अभी बिजनेस ही नहीं चल रहा है तो मोरेटोरियम खत्म होने के बाद एकदम से पैसा कहां से आ जाएगा। फिस्मे के भारद्वाज के मुताबिक आरबीआई ने मोरेटोरियम वाले खातों के लिए 10 फीसदी अतिरिक्त प्रोविजनिंग का जो नियम बनाया है उसकी वजह से बैंक मोरटोरियम देने से कतराएंगे।

भुगतान का भी संकट, कुछ सरकारी कंपनियों ने 7 महीने से रोक रखा है भुगतान

एमएसएमई के सामने तरलता की भी बड़ी समस्या आ रही है। उन्हें सरकारी विभागों और सरकारी कंपनियों से समय पर भुगतान नहीं हो रहा है। हिंदूनाथन, जो जेआरपी टूल्स एंड गेजेस के प्रमोटर भी हैं, ने बताया कि कोरोनावायरस के पहले से ही यह समस्या बनी हुई है। उनका एचएएल के पास 7 महीने से भुगतान रुका हुआ है। बीएचईएल को की गई सप्लाई का भी भुगतान कई महीने से नहीं आया है। वित्त मंत्री के साथ बैठक में यह मुद्दा उठाने के बावजूद स्थिति नहीं सुधरी है। हालांकि आउटलुक एचएएल और बीएचईएल की भुगतान समस्या का स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका। फिस्मे के अनिल भारद्वाज के अनुसार लॉक डाउन के चलते अभी कहीं कोई काम नहीं हो रहा है इसलिए भी भुगतान का संकट है। लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी नए वित्त वर्ष में सभी विभाग अपना  एलोकेशन करेंगे उसके बाद ही पेमेंट रिलीज होने की संभावना है। हालांकि उन्होंने कहा कि कोरोना संकट को छोड़ दें तो यह समस्या राज्यों की पीएसयू में ज्यादा है। राज्यों के बिजली बोर्ड तो 6 महीने से पहले भुगतान ही नहीं करते।

वेतन देने में मदद नहीं मिली तो बंदी के कगार पर पहुंच जाएंगी इकाइयां

एमएसएमई के सामने फिलहाल सबसे बड़ा संकट कर्मचारियों को वेतन देने का है। सरकार ने कहा है कि कंपनियां लॉक डाउन की अवधि का पूरा वेतन कर्मचारियों को दें। हिंदूनाथन कहते हैं की मार्च का वेतन तो ज्यादातर कंपनियों ने दे दिया है लेकिन अप्रैल में तो पूरे महीने फैक्ट्रियां बंद रहेंगी। ऐसे में उद्यमी कर्मचारियों को वेतन कहां से देंगे। उन्होंने कहा कि कंपनियों का ज्यादातर कामकाज बैंकों के भरोसे चलता है लेकिन धंधा ठप होने के कारण बैंक भी नया कर्ज देने या ओवरड्राफ्ट से कतरा रहे हैं। हिंदूनाथन चाहते हैं कि लॉक डाउन की अवधि के लिए सरकार वेतन देने में उनकी मदद करे। उन्होंने यहां तक कहा कि तमिलनाडु के करीब 45 फ़ीसदी एमएसएमई बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं। तमिलनाडु में 11 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड एमएसएमई हैं।

सिडबी से पैसे मिलने में 3 महीने लग जाएंगे

बैंकों से सहयोग ना मिलने की बात की पुष्टि करते हुए फिस्मे के अनिल भारद्वाज ने कहा कि रिजर्व बैंक ने नकदी बढ़ाने के उपाय तो कर दिए लेकिन बैंकों के स्तर पर काम इतना आसान नहीं लगता। कुछ बैंक अलग से प्रोसेसिंग चार्ज लेने लग गए तो कुछ तरह-तरह के कागजात की मांग करने लगे। जब सब जगह लॉक डाउन है तो कंपनियां कागजात कहां से बनवाएंगी। इसलिए रिजर्व बैंक ने 27 मार्च को जो उपाए घोषित किए थे वह पूरी प्रक्रिया एक तरह से बेकार चली गई। शुक्रवार, 17 अप्रैल को भी रिजर्व बैंक ने कुछ उपायों की घोषणा की। इसमें एमएसएमई सेक्टर को राहत देने के लिए सिडबी को 15000 करोड़ रुपए देने की बात है। लेकिन भारद्वाज के अनुसार सिडबी पहले इसके लिए एक स्कीम बनाएगा, उसमें तय होगा कि किन लोगों को कितना कर्ज दिया जा सकता है। यह पूरी प्रक्रिया तय होने में कम से कम 3 महीने लग जाएंगे। तब तक तो बहुत सी इकाइयां बंदी के कगार पर पहुंच जाएंगी।

 

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