पत्र में उन्हाेंने कहा है कि वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क :जीएसटीएन: पर नए सिरे से विचार किया जाना चाहिए और इसकी गहन जांच होनी चाहिए। उन्हाेंने सवाल किया कि कैसे किसी निजी इकाई को बिना सुरक्षा मंजूरी के संवेदनशील सूचनाआें की अनुमति दी जा सकती है। जीएसटीएन कंपनी जीएसटी के लेखे और कर संग्रहण का प्रबंधन तथा नियंत्रण करेगी। स्वामी ने कहा कि इस कंपनी में केंद्र और राज्य सरकाराें की संयुक्त हिस्सेदारी 49 प्रतिशत होगी और शेष हिस्सेदारी निजी क्षेत्रों की इकाइयाें मसलन एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक तथा एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लि. की होगी। इन कंपनियाें में विदेशी हिस्सेदारी भी है।
उन्हाेंने आरोप लगाया कि जीएसटीएन ने शुरुआती प्रक्रिया के खर्च और शुल्क को 4,000 करोड़ रुपये दिखाया है। उन्हाेंने सवाल किया कि कैसे निजी क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली इकाइयाें को धारा 25 वाली कंपनी जो कि गैर-लाभ वाली कंपनी है, उसमें बहुलांश हिस्सेदारी दी गई है। उन्हाेंने कहा कि कर संग्रहण के इस प्रयास में मुख्य खिलाड़ी निश्चित रूप से वह जो आंकड़ाें के संग्रहण का सृजन करेगा। इस मामले में यह केंद्र और राज्य सरकारें होनी चाहिये।
स्वामी ने पत्र में कहा कि अन्य सभी चीजें मसलन विभिन्न राज्याें के लिए जीएसटी के प्रतिशत का समायोजन के लिए सिर्फ प्रोग्रामिंग जरूरी है। यह काम सरकार अपने इलेक्ट्रानिक्स विभाग के जरिये करेगी। सरकार ने पहले ही आयकर को संहिताबद्ध किया है। इससे अधिक जटिल कुछ भी नहीं है। उन्हाेंने कहा कि गृह मंत्राालय से इस पर विचार विमर्श नहीं किया गया है। न ही मंत्रालय ने जीएसटीएन आपरेटराें को कर आंकड़ाें तक पहुंच के लिए सुरक्षा मंजूरी दी है। उन्हाेंने कहा कि वास्तव में इसे गृह मंत्राालय के समक्ष कभी सुरक्षा मंजूरी के लिए नहीं रखा गया, जो काफी हैरान करने वाला है। भाषा एजेंसी