आधी-अधूरी तैयारी के साथ कोई फैसला लागू करने का क्या हश्र हो सकता है, जीएसटी इसका बढ़िया नमूना बन गया है। बार-बार बदलते नियमों से कारोबारी जगत तो परेशान है ही, केंद्र और राज्य सरकारों के लिए भी नई टैक्स व्यवस्था मुश्किल बन गई है। जीएसटी कलेक्शन नहीं बढ़ने के कारण राज्यों को उनके हिस्से का पैसा नहीं मिल रहा है। नतीजा यह कि राज्यों को या तो अपने खर्चे रोकने पड़ रहे हैं या बाजार से पैसा उधार लेना पड़ रहा है। बुधवार को गैर-एनडीए शासित आठ राज्यों के प्रतिनिधि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिले और यह मुद्दा उठाया।
10 दिसंबर को चार महीने का भुगतान बकाया हो जाएगा
सीतारमण से मिलने वालों में दिल्ली, पंजाब, पुद्दुचेरी और मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री और केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि शामिल थे। आधे घंटे की बैठक के बाद पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने मीडिया को बताया कि केंद्र ने अभी तक अगस्त और सितंबर का कंपेंसेशन सेस नहीं दिया है, और अब अक्टूबर-नवंबर के सेस के भुगतान का वक्त आ गया है। यानी 10 दिसंबर को चार महीने का भुगतान बकाया हो जाएगा। बादल के मुताबिक सीतारमण ने यह तो कहा कि भुगतान जल्द किया जाएगा, लेकिन उन्होंने इसकी कोई समय-सीमा नहीं बताई।
कंपेंसेशन फंड में 50 हजार करोड़, फिर भी भुगतान नहीं : सिसोदिया
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, ऐसा नहीं कि कंपेंसेशन सेस फंड में पैसे नहीं हैं। इस फंड में करीब 50,000 करोड़ रुपये होने के बावजूद राज्यों को भुगतान नहीं किया जा रहा है। कंपेंसेशन सेस का भुगतान करना केंद्र की संवैधानिक बाध्यता है, क्योंकि संसद में इसके लिए कानून पारित किया गया है। इस बीच, ऐसी खबरें भी आई हैं कि कंपेंसेशन सेस में देरी का मुद्दा लेकर विपक्ष शासित राज्य सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
केंद्र द्वारा राज्यों के नुकसान की भरपाई का है प्रावधान
ज्यादातर अप्रत्यक्ष करों को शामिल करते हुए एक टैक्स, जीएसटी 1 जुलाई 2017 को लागू हुआ था। जीएसटी कानून में 2015-16 को आधार वर्ष बनाते हुए यह माना गया है कि राज्यों के टैक्स कलेक्शन में हर साल 14 फीसदी बढ़ोतरी होगी। कानून में यह प्रावधान है कि अगर वास्तविक जीएसटी कलेक्शन इस लक्ष्य से कम रहता है तो केंद्र सरकार पांच साल तक उसकी भरपाई करेगी।
जीएसटी काउंसिल कुछ वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाने पर कर सकती है विचार
मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से नवंबर तक जीएसटी कलेक्शन में सिर्फ 3.7 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती के चलते यह 7.76 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 8.05 लाख करोड़ रुपये तक ही पहुंचा है। चर्चा है कि इस महीने के दूसरे पखवाड़े में होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में टैक्स रेट पर चर्चा हो सकती है। इस सिलसिले में जीएसटी काउंसिल ने राज्यों के जीएसटी कमिश्नर को पत्र लिखा है। इसमें जीएसटी कलेक्शन बढ़ाने के लिए सुझाव मांगे गए हैं। इनमें जीरो टैक्स की श्रेणी में शामिल वस्तुओं की सूची की समीक्षा करना, विभिन्न वस्तुओं पर जीएसटी और कंपेंसेशन सेस की समीक्षा करना, इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर पर विचार और कंप्लायंस में सख्ती शामिल हैं।
जीएसटी की औसत प्रभावी दर 11.6 फीसदी : आरबीआई
जीएसटी लागू होने के बाद अनेक बार वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स की दरें संशोधित की गईं। रिजर्व बैंक ने हाल ही अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जीएसटी की औसत प्रभावी दर 14 फीसदी से घटकर 11.6 फीसदी रह गई है। इससे सरकार का राजस्व सालाना दो लाख रुपये कम हुआ है। यानी राज्यों का कर संग्रह भी घटा है और कंपेंसेशन सेस के रूप में केंद्र पर उनका बकाया बढ़ा है।