लोकसभा चुनाव तीसरे दौर में पहुंच चुका है। भाजपा से लेकर कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दल अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन इस बीच एक खबर मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। दरअसल बुरी खबर अमेरिका से आई है। राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत सहित आठ देशों को ईरान से कच्चा तेल खरीदने पर मिली छूट को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है। इसके तहत 2 मई 2019 के बाद भारत, चीन, इटली, ग्रीस, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की को ईरान से कच्चा तेल नहीं खरीदने की छूट को खत्म करने का फैसला किया है। इस कदम से भारत सहित इन देशों के लिए कच्चा तेल खरीदना महंगा हो सकता है। इसका सीधा असर उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई कीमतों के रूप में चुकाना होगा। ट्रंप के फैसले की खबर आते ही कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में 3.33 फीसदी तक बढ़ गई है। मंगलवार को कच्चे तेल की कीमतें 74.50 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं। ऐसे में महंगाई बढ़ने का डर है। हालांकि सरकार का कहना है कि देश में तेल की कोई कमी नहीं होगी, सरकार सभी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है।
ऐसे बढ़ती है महंगाई
इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड महंगा होने से इंडियन बास्केट में भी क्रूड महंगा हो जाता है। इससे तेल कंपनियों पर मार्जिन का दबाव भी बढ़ता है। दूसरी ओर, पेट्रोल और डीजल महंगा होने से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ जाता है, जिससे महंगाई बढ़ने का डर होता है।
मोदी सरकार की नाकामी
कांग्रेस ने ईरान से तेल की खरीद पर भारत समेत अन्य देशों को प्रतिबंधों से मिली छूट हटाने के अमेरिकी फैसले को मोदी सरकार की कूटनीतिक और आर्थिक नाकामी करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेल कंपनियों को 23 मई तक पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़ाने का निर्देश दिया है ताकि वोट हासिल किए जा सकें।
रणदीप सुरजेवाला ने कहा, कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। छह महीने में रुपये सबसे ज्यादा लुढ़क कर जमीन पर आ गिरा है। यानी एक डॉलर की कीमत 69.61 पर पहुंच गई है। वहीं, अमेरिका ने ईरान से आयात होने वाले कच्चे तेल पर पाबंदी लगा दी है।' हालात इतने बुरे हैं कि 23 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद पेट्रोल और डीजल की कीमतें 5-10 रुपये तक बढ़ सकती हैं।
सरकार की बढ़ेंगी मुश्किलें
अर्थशास्त्री मोहन गुरूस्वामी का कहना है कि ईरान से भारत रूपये में व्यापार करता है। ऐसे में प्रतिबंध लगने से भारत के लिए ईरान से व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा। इसका सीधा असर महंगाई के रूप में दिखेगा। देश में तेल की जरूरत पूरी करने के लिए अरब सहित दूसरे देशों से व्यापार करना होगा। जो कि डॉलर आधारित हैं। ऐसे में आयात महंगा हो जाएगा। साथ ही चालू खाता घाटा भी बढ़ेगा। साथ ही रुपया भी कमजोर होगा।
82 फीसदी तेल आयात करता है भारत
भारत अपनी जरूरतों का करीब 82 फीसदी क्रूड खरीदता है। ऐसे में क्रूड की कीमतें बढ़ने से देश का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़ सकता है। वित्त वर्ष 2017-18 में 22.043 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर 87.7 अरब डॉलर यानी 5.65 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे। वित्त वर्ष 2018-19 में कुल 22.7 करोड़ टन आयात किए जाने का अनुमान है, जिस पर करीब 115 अरब डॉलर खर्च हो सकते हैं, जो 5 साल में सबसे ज्यादा होगा। यह वित्त वर्ष 2017-18 के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा है।