मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने कहा, इस सूचना के आधार पर एक मामला बनता है। इसमें उल्लेखनीय राशि जुड़ी है। इससे पहले रिजर्व बैंक ने उन कंपनियों व व्यक्तियों की सूची न्यायालय को सीलबंद लिफाफे में सौंपी थी जिन्होंने 500 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक कर्ज को नहीं चुकाया है।
पीठ ने नहीं लौटाए जा रहे कर्ज की लगातार बढ़ती राशि पर चिंता जताते हुए कहा, लोग हजारों करोड़ रुपये ले रहे हैं और कंपनी को दिवालिया घोषित कर भाग रहे हैं लेकिन दूसरी ओर 20 हजार रुपये या 15 हजार रुपये का छोटा कर्ज लेने वाला गरीब किसान पीडि़त होता रहता है। न्यायालय ने कहा, (भुगतान में चूक वाले कर्ज की) कुल राशि का खुलासा किया जा सकता है। जो भी चूककर्ता (डिफाल्टर) है उनके नाम गोपनीय रखे जा सकते हैं लेकिन कुल कितनी राशि का भुगतान नहीं किया गया इसका खुलासा किया जा सकता है। लाखों करोड़ों रुपये बकाया है। कई डिफाल्टरों पर तो 500 करोड़ रुपये से भी अधिक राशि बकाया है, जिसे चुकाया जाना है।
पीठ ने इस मामले में वित्त मंत्रालय और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन को भी पक्ष बनाते हुए उनसे मदद मांगी है। मामले में अगली सुनवाई की तारीख 26 अप्रैल को होगी। सुनवाई के दौरान रिजर्व बैंक के वकील ने आरबीआई कानून तथा ऋण सूचना कंपनी (नियमन) कानून, 2005 के प्रावधानों का हवाला दिया जिसके तहत सूचना की गोपनीयता का प्रावधान है।
अगली सुनवाई में सभी संबद्ध पीठ का सहयोग करेंगे और इस दौरान जो मुद्दे तय होने की संभावना है उनमें यह विशिष्ट सवाल भी होगा कि भुगतान चूक वाले ऋणों की कुल बकाया राशि का खुलासा किया जा सकता है या नहीं। इस संबंध में स्वयंसेवी संगठन सेंटर सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) ने याचिका दायर की थी। सीपीआईएल की ओर से हाजिर हुए वकील प्रशांत भूषण ने बकाया ऋण राशि के खुलासे का समर्थन किया और उच्चतम न्यायालय के दिसंबर, 2015 के एक आदेश का हवाला देते हुए दावा किया कि रिजर्व बैंक को सभी सूचनाएं उपलब्ध करानी होंगी। वहीं रिजर्व बैंक के वकील ने कहा कि वह फैसला आरटीआई कानूने से जुड़ा है और इस मामले में लागू नहीं होता है।
न्यायालय ने रिजर्व बैंक द्वारा एक सीलबंद लिफाफे में उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों की ओर संकेत करते हुए कहा कि जून, 2014 के बाद, आंकड़ा बहुत बढ़ गया है और ये आंकड़े गोपनीय नहीं हैं। रिजर्व बैंक की ओर से एक वरिष्ठ वकील ने कुल बकाया राशि के खुलासे का विरोध करते हुए कहा कि आंकड़े के खुलासे से असर पड़ेगा। इस पर पीठ ने कहा, आपने बकाया राशि का उल्लेख किया है। यह बड़ी राशि है। अगर हम आपके आंकड़े पर ध्यान दें तो अगला सवाल यह होगा कि आप वसूली के लिए क्या कर रहे हैं? वसूली के लिए कौन से कदम उठाए जाएंगे? पीठ ने जब यह जानना चाहा कि क्या रिजर्व बैंक को सूचना के खुलासे से छूट है तो वकील ने भारतीय रिजर्व बैंक कानून तथा द क्रेडिट इन्फोरमेशन कंपनीज (रेग्यूलेशन) एक्ट, 2005 के प्रावधानों का हवाला दिया जो कि सूचनाओं की गोपनीयता की अनिवार्यता बताते हैं।