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जानें कैसे रिकॉर्ड हुआ अभिजीत भट्टाचार्य का मशहूर गीत 'ओले ओले'

यह बात नब्बे के दशक की है। फिल्म "ये दिल्लगी" के संगीत निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी। संगीतकार दिलीप...
जानें कैसे रिकॉर्ड हुआ अभिजीत भट्टाचार्य का  मशहूर गीत 'ओले ओले'

यह बात नब्बे के दशक की है। फिल्म "ये दिल्लगी" के संगीत निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी। संगीतकार दिलीप सेन और समीर सेन ने तकरीबन फिल्म के सभी गाने रिकॉर्ड कर लिए थे। गीतकार समीर ने एक गाना लिखा था, जिससे दिलीप सेन और समीर सेन को बहुत उम्मीदें थीं। गीत के बोल थे " जब भी कोई लड़की देखूं, मेरा दिल दीवाना बोले ओले ओले ओले"। 

 

 

 

समीर सेन और दिलीप सेन ने इस गाने की ऐसी धुन बनाई, जो रोमांटिक मैलोडी से अलग थी। गीत में वेस्टर्न संगीत की झलक थी। उस दौर में डीजे म्यूजिक कम ही फिल्मों में सुनाई देता था। नदीम श्रवण के गजल नुमा गीत की श्रोताओं के जेहन पर काबिज थे। फिर भी दिलीप सेन और समीर सेन को यकीन था कि यह गीत जरूर कामयाब होगा। 

 

समीर सेन और दिलीप सेन ने उस दौर के सभी बड़े गायकों को बुलाया और उन्हें गाने को सुनने का अवसर दिया। चूंकि गाने का रंग अलहदा था इसलिए सभी गायक दुविधा में पड़ गए। समीर सेन और दिलीप सेन ने एक एक कर के सभी गायकों की आवाज में गीत रिकॉर्ड करने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। जो फील, जो साउंड, जो ऊर्जा, जो रंग चाहिए था, वो गायिकी से नदारद था। इस बात से जहां एक तरफ सभी बड़े गायकों को मायूसी हुई, वहीं दूसरी तरफ समीर सेन और दिलीप सेन नाउम्मीद हो गए। उन्हें ऐसा लगा कि अब यह शानदार गीत केवल उनके कलैक्शन में रह जाएगा। इसे वह कभी दुनिया के सामने पेश नहीं कर पाएंगे। 

 

 

 

समय बीता और एक दिन दिलीप सेन और समीर सेन को यह ख्याल आया कि उन्हें एक बार गीत को गायक अमिताभ भट्टाचार्य से गवाकर देखना चाहिए। उस दौर में कुमार सानू, उदित नारायण, एसपी बालसुब्रमण्यम और विनोद राठौड़ का बोलबाला था। सोनू निगम अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रहे थे। इस सब में सबसे कठिन संघर्ष था गायक अभिजीत भट्टाचार्य का। उन्हें प्रतिभा, मेहनत के बावजूद, वह अवसर नहीं मिल रहे थे, जिसके वो हकदार थे। अभिजीत ने फिल्म "खिलाड़ी" में गीत "वादा रहा सनम" गाकर संगीत प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया था मगर उनके संघर्ष की यात्रा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। अभिजीत भट्टाचार्य किसी भी संगीत निर्देशक भी पहली पसंद नहीं सके थे।वह किसी गुट, किसी कैंप के सदस्य नहीं थे इसलिए उन्हें कोई भी संगीतकार तरजीह नहीं देता था। चलन कुछ ऐसा था कि अभिजीत से गाने की डबिंग कराकर फिल्म में गीत किसी स्थापित और चर्चित गायक की आवाज में शामिल किया जाता था। इतना ही नहीं अभिजीत भट्टाचार्य को तब गाने के लिए याद किया जाता था, जब यह सुनिश्चित हो जाता कि अब किसी अन्य गायक के लिए गाने को रिकॉर्ड करना संभव नहीं है। 

 

 

इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए, दिलीप सेन और समीर सेन ने सभी गायकों से निराश होने के बाद, अभिजीत भट्टाचार्य को अपने स्टूडियो बुलाया। अभिजीत पूरे घटनाक्रम से वाकिफ थे। उन्हें मालूम था कि सभी गायकों को गवाने के बाद उन्हें बुलाया गया है। वह परंपरा से परिचित हो चुके थे। उनके भीतर एक गुस्सा, एक आक्रोश था इस व्यवस्था और परंपरा के खिलाफ। लेकिन हिन्दी सिनेमा में काम करने और खुद को साबित करने के संकल्प के चलते, अभिजीत ने धैर्य धारण किया। अभिजीत दिलीप सेन और समीर सेन के स्टूडियो पहुंचे तो उन्हें गाना सुनाया गया। दिलीप सेन और समीर सेन बहुत आश्वस्त नहीं थे। उन्होंने अंधेरे में तीर चलाया था। गीत के बेकार होने से बेहतर था अंतिम प्रयास करना। उधर अभिजीत भट्टाचार्य के पास भी सुनहरा अवसर था, खुद को साबित करने का। अभिजीत ने गाना सुना और रिकॉर्डिंग माइक पर पहुंचे। रिकॉर्डिंग शुरु हुई। सभी नर्वस थे। अभिजीत ने खुद को समेटा और पूरी ऊर्जा और ध्यान से गीत को गाना शुरु किया। गाना खत्म होने तक सभी के चेहरे पर मुस्कान थी। दिलीप सेन और समीर सेन फूल नहीं समा रहे थे। अभिजीत भावुक हो गए थे। अभिजीत ने अद्भुत ढंग से गीत को रिकॉर्ड किया था। जब फिल्म "ये दिल्लगी" रिलीज हुई तो हर तरफ़ "ओले ओले" की गूंज थी। अभिजीत का गाया "ओले ओले" चार्टबस्टर साबित हुआ। इस गाने ने फिल्म से भी बड़ी कामयाबी पाई और अभिजीत को अलग पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इस गाने से अभिजीत हमेशा के लिए जनमानस में अमर हो गए। 

 

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