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साधना : हिंदी सिनेमा की मिस्ट्री गर्ल

2 सितंबर सन 1941 को साधना का जन्म पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था। एक सिंधी परिवार में जन्मी साधना के घर...
साधना : हिंदी सिनेमा की मिस्ट्री गर्ल

2 सितंबर सन 1941 को साधना का जन्म पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था। एक सिंधी परिवार में जन्मी साधना के घर में कलात्मक माहौल था। उनके पिता को संगीत और नृत्य से लगाव था। लोकप्रिय डांसर साधना बोस से प्रेरणा लेकर ही साधना का नामकरण, उनके पिता द्वारा किया गया था। साधना के पिता के भाई हरी शिवदसानी हिन्दी फिल्मों में काम करते थे। उन्होंने राज कपूर की कई फिल्मों में काम किया। साधना जब बड़ी हो रही थीं, उस समय देश बदलाव से गुजर रहा था। भारत आजाद हुआ और देश के विभाजन के कारण साधना को अपने परिवार के साथ विस्थापित होना पड़ा। 

 

साल 1950 में कराची से भारत आने के बाद साधना के शुरुआती दिन संघर्ष भरे रहे। परिवार को जीरो से शुरूआत करनी पड़ी। सब कुछ स्थापित करने में समय लगा। इस कारण उनकी प्रारंभिक शिक्षा मां की देखरेख में घर में ही हुई। साधना की मां एक स्कूल में शिक्षिका थीं। मां की ममता और मागदर्शन में साधना का विकास बेहतर ढंग से हुआ। उनका दाखिला स्कूल में सीधा पांचवी कक्षा में हुआ। साधना ने जय हिंदी कॉलेज मुंबई से कॉलेज की पढ़ाई की। उन्हीं दिनों फिल्म निर्माता टी एम बिहारी की सिंधी भाषा में बनी फिल्म "अबाना" में साधना को अभिनय का अवसर मिला। साल 1958 में बनी फिल्म "अबाना" विभाजन की पृष्ठभूमि पर आधारित थी। इसके निर्माताओं ने साधना की खूबसूरती और मासूमियत से प्रभावित होकर उन्हें यह रोल दिया था। साधना ने फिल्म "अबाना" के निर्माताओं के भरोसे को सही साबित किया। उनकी प्रस्तुति देखकर सभी ने उनकी प्रतिभा की प्रशंसा की। 

साधना महान शोमैन राज कपूर की फिल्म श्री 420 में भी नजर आईं मगर उन्हें किसी ने नोटिस नहीं किया। तभी स्क्रीन मैगजीन में साधना की तस्वीर छपी, जिस पर हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्माता और निर्देशक सशाधर मुखर्जी की नजर पड़ी। सशाधर मुखर्जी साधना की तस्वीर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने साधना को अपनी फिल्म "लव इन शिमला" के लिए साइन कर लिया। इस फिल्म में सशाधर मुखर्जी के सुपुत्र जॉय मुखर्जी साधना के हीरो बने। फिल्म निर्माण से पहले साधना और जॉय मुखर्जी ने सशाधर मुखर्जी के एक्टिंग स्कूल में अभिनय की बारीकियां सीखीं। यह फिल्म सशाधर मुखर्जी के फिल्मालय स्टूडियो के प्रोडक्शन तले बनी और इसका निर्देशन आर के नय्यर ने किया। फिल्म रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर सफ़ल साबित हुई। साधना रातों रात स्टार बन गई थीं। साधना का माथा कुछ चौड़ा था। इसे लेकर निर्देशक आर के नय्यर का विचार था कि यदि साधना कुछ विशेष हेयर स्टाइल रखें तो, वह और सुंदर नजर आएंगी। तब आर के नय्यर ने साधना को ब्रिटिश अभिनेत्री ऑड्रे हेपबर्न की तरह हेयर स्टाइल रखने के लिए कहा। आर के नय्यर का यह सुझाव क्रांतिकारी साबित हुआ और फिल्म "लव इन शिमला" के रिलीज होने के बाद साधना का हेयर स्टाइल देश भर में "साधना कट" के नाम से मशहूर हुआ। 

 

लव इन शिमला की कामयाबी के बाद साधना के लिए हिन्दी फिल्मों के दरवाजे खुल गए। उनके सामने हिन्दी सिनेमा के बड़े निर्माता और निर्देशक लाइन में खड़े थे। सभी साधना को अपनी फिल्मों में लेना चाहते थे। साधना सफलता की गारंटी मान ली गई थीं। साधना ने देव आनंद, सुनील दत्त, राजेन्द्र कुमार, शम्मी कपूर जैसे सुपरस्टार्स के साथ एक से बढ़कर एक कामयाब फिल्में बनाईं। जुबली कुमार राजेन्द्र कुमार के साथ साधना की जोड़ी खूब जमी। दोनों ने आरजू, मेरे महबूब, आप आए बहार आई में एक साथ काम किया। साधना की मां राजेन्द्र कुमार की बड़ी प्रशंसक थीं। निर्देशक महेश कौल ने साधना को एक फिल्म ऑफ़र की थी मगर चूंकि रोल लीड एक्ट्रेस नहीं था तो साधना ने फिल्म करने से मना कर दिया। इस फिल्म में मुख्य भूमिका राजेन्द्र कुमार निभा रहे थे। राजेन्द्र कुमार और साधना में गहरी दोस्ती थी। यह दोस्ती का ही असर था कि रविवार को शूटिंग नहीं करने वाली साधना ने राजेन्द्र कुमार के कहने पर रविवार के दिन फिल्म "मेरे महबूब" की शूटिंग की। 

 

साधना सिनेमा की स्क्रीन पर जितनी खुश, मासूम, बेबाक दिखती थीं, असल जिंदगी में वह उतनी ही खामोश थीं। उनका मिलना जुलना बहुत सीमित था। आशा पारेख, हेलेन, वहीदा रहमान उनकी खास दोस्त रहीं। लव इन शिमला के निर्माण के समय साधना और निर्देशक आर के नय्यर के बीच प्रेम पनप गया। साधना के परिवार ने शुरूआत में इसका विरोध किया मगर साधना ने अपने प्यार के लिए हिम्मत दिखाई और आर के नय्यर से शादी की। साधना की जिंदगी बेहद हसीन थीं। वह टॉप की हीरोइन बन चुकी थीं। निर्देशक राज खोसला के साथ आई फिल्म "वो कौन थी" और "मेरा साया" ने साधना को हिंदी सिनेमा की मिस्ट्री गर्ल के रूप में स्थापित किया। यह दोनों ही फिल्में बेहद कामयाब रहीं। इन फिल्मों में साधना पर फिल्माए गीत बहुत पसंद किए गए। वो कौन थी का गीत "लग जा गले" अमर हो गया। शोहरत के उस आयाम पर साधना पहुंच गई थीं कि वह बॉलीवुड की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्री बन गईं। मगर न जाने साधना की खुशियों को किसकी नजर लग गई। 

 

कामयाबी के दौर में साधना की तबीयत बिगड़ गई। जब डॉक्टर को दिखाया गया तो मालूम हुआ कि साधना को थायरॉयड की बीमारी है। वह अमरीका गईं और उन्होंने अपना इलाज कराया। इस दौरान वह फिल्मी दुनिया से दूर रहीं। सभी ने सोचा कि अब साधना फिल्मों में काम नहीं करेंगी। इसके विपरीत साधना ने स्वस्थ होने के बाद हिन्दी सिनेमा में वापसी की। उन्होंने न केवल फिल्मों में अभिनय किया बल्कि फिल्म "गीता मेरा नाम" से निर्देशन के क्षेत्र में कदम भी रखा। यह फिल्म भी सफल रही और इस फिल्म से साधना ने हिंदी सिनेमा को सरोज खान के रूप में महान नृत्य निर्देशक दिया। 

साधना के साथ स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं बनी रहीं। इसके साथ ही उम्र और समय के साथ हिन्दी फिल्मों में नई अभिनेत्रियों का आगमन हुआ, जिन्हें फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाने का अवसर दिया गया। ऐसे में साधना ने सेकेंड लीड रोल करने से परहेज किया और अभिनय से संन्यास ले लिया। उन्होंने तीन वर्षों तक अपने पति आर के नय्यर के साथ सुखी परिवारिक जीवन बिताया। मगर यह दुख साधना को सताता रहा कि उनकी कोई संतान नहीं हुई। यह दुख और खलने लगा, जब आर के नय्यर की साल 1995 में मृत्यु हो गई और साधना पूरी तरह अकेली रह गईं। साधना ने जीवन के अन्तिम 20 साल अकेलेपन में बिताए। 

 

साधना का जीवन देखकर इस बात का एहसास होता है कि जीवन बहुत ही अप्रत्याशित रूप में हमारे सामने आता है। साधना के पति आर के नय्यर ने जीवन के अंतिम दौर में कुछ फिल्में बनाईं, जो असफल रहीं और इसके कारण साधना और नय्यर कर्ज के बोझ में दबते चले गए। उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई। शोहरत के उरुज पर पहुंचने वाली साधना जीवन के अंतिम दिनों में बहुत अकेली थीं। उन्हें बीमारी ने घेर लिया था और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। साधना मीडिया और लोगों से नहीं मिलना चाहती थीं। उनका ख्याल था कि दर्शकों के दिलों में जिस खूबसूरत साधना का ख्वाब बुना हुआ है, उसे बरकरार रहना चाहिए।उनके दोस्तो, रिश्तेदारों ने समय बदलते ही उनका साथ छोड़ दिया था। इतना ही नहीं साधना को बीमारी और बढ़ती उम्र में कोर्ट कचहरी के चक्कर भी काटने पड़े। साधना मुंबई में गायिका आशा भोसले के बंगले में बतौर किराएदार रहती थीं। इसी बंगले में एक अन्य किराएदार यूसुफ लकड़ावाला के साथ साधना का विवाद रहा। साधना के अनुसार यूसुफ उन्हें बंगले से निकालना चाहते थे और वहां निमार्ण कार्य करना चाहते थे। जब उन्होंने इसका विरोध किया तो यूसुफ ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी। साधना और यूसुफ के बीच कोर्ट में लम्बे समय तक केस चला। साधना के खिलाफ गायिका आशा भोसले ने भी बंगले को कब्जाने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया। साधना के जीवन का आख़िरी समय इसी चक्कर में कोर्ट कचहरी में दौड़ते भागते हुए बीत गया। 25 दिसंबर साल 2015 को साधना का निधन हो गया। एक समय जिसकी फिल्म देखने के लिए, जिसकी एक झलक पाने के लिए लोगों का हुजूम जमा हो जाता है, उसी साधना की अंतिम यात्रा में गिने चुने लोग थे। जिन्दगी की सच्चाई, मुंह पर हाथ रखे तमाशा देख रही थी। साधना अकेलेपन, कोर्ट, कचहरी और रिश्तों के दोगलेपन से मुक्त हो गई थीं। 

 

 

 

 

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