क्याेंकि इस फिल्म का कथानक बिल्कुल अनोखा है लेकिन इसको कहने का अंदाज थोड़ा पेचीदा है। फिल्म की शुरूआत बहुत शानदार है, जिसके लिए बाल्की निश्चित रूप से धन्यवाद के पात्र हैं, लेकिन फिल्म के दूसरे भाग तक पहुंचते-पहुंचते फिल्म रास्ता भटकती लगती है। हालांकि फिल्म में अमिताभ और धनुष दोनों ने ही बेहतरीन अदाकारी की है।
बच्चन की शराबी वाली भूमिका में ज्यादा नयापन नहीं है, उन्हें हम इस तरह के किरदारोें में उनकी जवानी के दिनों में भी देख चुके हैं। फिल्म में वह एक बेपरवाह शराबी बने हैं। वह एक कब्रिस्तान में रहते हैं जहां कब्र खोदने वाले उन्हें मुगल ए आजम और जहांपनाह जैसे उपनामों से संबोधित करते हैं।
फिल्म में धनुष का किरदार छोटे शहर का है जो सपनों के शहर में सितारा बनने का सपना लिए आता है और इन दो अलग अलग किरदारों को मिलाने का काम करती हैं अक्षरा हसन।
फिल्म में बाल्की का कमाल अमिताभ से उनके अभिनय की हद तक काम करवाने में दिखता है। वहीं धनुष फिल्म में बहुत सहज दिखे हैं। अक्षरा इस फिल्म से शुरूआत कर रही हैं और कहानी में उनके किरदार के लिए कम गुंजाइश होने के बावजूद उन्होंने अच्छा अभिनय किया है।