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द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर: पोस्टर के आगे-पीछे

एक निमार्णाधीन फिल्म का पोस्टर खूब चर्चा में आ गया है। फिल्म की स्क्रिप्ट अभी लिखी जा रही है, पर पोस्टर जारी कर निर्माताओं ने इसे लोगों के बीच चर्चा का विषय बना दिया।
द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर: पोस्टर के आगे-पीछे

चर्चा भी क्यों ना हो जब एक पूर्व प्रधानमंत्री के कमजोर पहलू को उछाल कर दिखाने वाली किताब पर फिल्म का निर्माण हो रहा है। पत्रकार संजय बारू की किताब 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' को आधार बनाकर यह फिल्म बनाई जा रही है। किताब के लेखक संजय बारू पूर्व प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे हैं सो किताब के तथ्यों पर यकीन करना आसान है। हालांकि कांग्रेस इसे फिक्शन करार दे चुकी है।

किसी किताब पर फिल्म बनना बड़ी बात है सो इस पर फिर से राजनीति गरमा सकती है। फिल्म का निर्माण बोहरा फिल्मस मुंबई की ओर से हो रहा है। किताब को फिल्म स्क्रिप्ट में ढालने का काम लेखक-निर्देशक हंसल मेहता कर रहे हैं, जो इससे पहले बोहरा फिल्मस के लिए शाहिद का निर्देशन कर प्रशंसा पा चुके हैं। फिल्म का निर्देशन विजय रत्नाकर गुट्टे करेंगे और मनमोहन सिंह के किरदार में अनुपम खेर अभी से सुर्खियां बटोरने लगे हैं। फिल्म का सबसे रोचक पक्ष भी यही है।

भले ही मनमोहन सिंह का जीवन उतना विवादित नहीं रहा लेकिन इस फिल्म का विवादों में आना तय है। खासकर फिल्म के पोस्टर में एक गलियारे में खड़ी महिला की छवि सोनिया गांधी से मिलती-जुलती लग रही है। इस फिल्म के निर्माण में लगे वोहरा फिल्मस की सक्रियता भी काफी समय के बाद दिखाई पड़ी है। यूं तो वोहरा फिल्मस का नाम रामगोपाल वर्मा के साथ बनाई एक-दो फिल्मों के अलावा अनुराग कश्यप की गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्मों के साथ भी जुड़ चुका हैं। लेकिन एरोटिक फिल्म मस्तराम की नाकामयाबी और दूसरी फिल्म निकी अक्की ते विकी के अधर में लटक जाने के बाद बाद करीब दो साल से ये प्रोडक्शन निष्क्रिय-सा पड़ा है। इसे आर्थिक संजीवनी की बेहद आवश्यकता थी।  

इस फिल्म के चर्चित होने की एक वजह इसके प्रोड्यूसर अशोक पंडित भी हैं। अशोक पंडित कहने के लिए तो मुंबई फिल्म डायरेक्टर्स एसोसिएशन में पदाधिकारी हैं, लेकिन उनकी प्रमुख सक्रियता विस्थापित कश्मीरी पंडितों को लेकर है। माना जा रहा है कि अशोक पंडित की वजह से ही मुख्य किरदार निभाने के लिए अनुपम खेर राजी हुए। संजय बारू की किताब में बहुत विस्तार से मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के ब्यौरे पेश किए गए हैं। उनमें से किन बातों को, किस रूप में पर्दे पर उतारा जाएगा यह देखने वाली बात है।

फिल्म के प्रोडक्शन वैल्यूज से लग रहा हैं कि यह कोई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ना होकर, कम से कम ब्लैक फ्राइडे लुक वाली एक फीचर फिल्म तो होगी ही,  जिसमें वाकायदा किरदार और एक कहानी हो। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि मनमोहन सिंह की कहानी में क्या उन दर्शकों की कोई रुचि होगी जो बॉक्स आफिस का आंकड़ा सौ करोड़ पार पहुंचाते हैं। फिर एक राजनीतिक विषय पर ऐसा प्रोडक्शन हाउस फिल्म क्यों बना रहा है, जिसकी स्थिति फिलहाल बहुत बेहतर नजर नहीं आ रही है। यानी इस फिल्म के निर्माण की भी अपनी अलग राजनीति हो सकती है।

   

 

 

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