हिन्दी सिनेमा में एक से बढ़कर एक गायक हुए हैं। सभी का अपना अंदाज रहा है। अपने विशेष अंदाज से इन गायकों ने सुननेवालों के दिलों पर राज किया है। इन्हीं गायकों में एक नाम ऐसा भी है, जिसने अपनी आवाज से ऐसा जादू रचा कि सुननेवाले बस सुनते चले गए। वह नाम है गायक के के का, जिनके गीतों ने श्रोताओं पर जादुई असर किया। के के का गायन सुनकर आदमी कई दिनों तक संगीत की गिरफ्त में रहता है। यह सम्मोहन और असर है के के की आवाज में।
के के का जन्म 23 अगस्त सन 1968 को दिल्ली में हुआ था। उन्हें बचपन से ही संगीत में रुचि थी। स्कूल में जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता तो के के हमेशा ही मंच पर पाए जाते। जब के के दूसरी क्लास में थे तो उनके स्कूल में एक गायन प्रतियोगिता हुई। के के ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया। के के ने मंच पर जाकर अभिनेता राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की फिल्म "राजा रानी" का गीत "जब अंधेरा होता है" गाया। आनंद बख्शी के लिखे और राहुल देव बर्मन के संगीत से सजे इस गीत को आशा भोसले और भूपिंदर सिंह ने आवाज दी थी। यह गीत कई उतार चढ़ाव लिए हुए है। जो संगीत को समझते हैं, उन्हें मालूम है कि एक छोटे बच्चे के लिए इस गीत को गाना आसान नहीं है। लेकिन यह के के की प्रतिभा थी कि उन्होंने न केवल इस गीत को खूबसूरती से गाया बल्कि सभी का दिल जीतने में भी कामयाब रहे।
के के को इस प्रस्तुति से बहुत हिम्मत मिली। उन्होंने लगातार स्कूल में गायन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और विजेता बने। जब के के कॉलेज में पहुंचे तो उन्होंने एक बैंड के साथ गाना शुरू किया। के के एक दूसरे बैंड में ड्रम्स भी बजाते थे। आहिस्ता आहिस्ता कॉलेज में के के की गायन शैली विकसित हो रही थी। के के लोकप्रिय हो रहे थे। कॉलेज के दौरान बैंड परफॉर्मेंस से के के को खासी लोकप्रियता हासिल हुई। एक शो के लिए मशहूर गायक हरिहरन दिल्ली आए हुए थे। उन्होंने जब के के का गायन सुना तो उन्हें के के की प्रतिभा नजर आई। हरिहरन ने के के से मुंबई आकर फिल्मों में प्रयास करने के लिए कहा।
के के को बेहद कम उम्र में ज्योति नाम की लड़की से प्रेम हुआ। ज्योति से विवाह करने के लिए के के को एक नौकरी की तलाश थी। अपने दोस्त की मदद से के के ने मार्केटिंग की एक नौकरी ज्वॉइन कर ली। के के और ज्योति की शादी हुई और जीवन हंसी खुशी बीतने लगा। लेकिन नौकरी के छह महीने के के पर अजाब की तरह बीते। के के को समझ आ गया कि नौकरी उनके बस की बात नहीं है। तब के के ने ज्योति से कहा कि वह संगीत में अपना करियर बनाना चाहते हैं। ज्योति ने के के का साथ दिया। के के ने नौकरी छोड़ दी और विज्ञापन फिल्मों के लिए संगीत बनाने लगे। इसके साथ साथ के के बैंड से भी जुड़े रहे। के के की घर गृहस्थी चल रही थी मगर उन्हें वह कामायाबी नहीं मिल रही थी, जिसके वह हकदार थे। तब उनकी पत्नी ज्योति ने उनसे कहा कि विज्ञापन, टीवी, फिल्मों, एल्बम का सारा मुख्य काम मुंबई में होता है इसलिए उन्हें मुंबई जाना चाहिए। ज्योति की बात में तर्क था। ज्योति की सलाह मानते हुए के के सन 1994 में मुंबई पहुंच गए।
के के जब मुंबई पहुंचे तो उनके दिमाग में एल्बम रिलीज करने की योजना थी। शुरुआती दिनों में के के ने विज्ञापन फिल्मों में जिंगल्स गाए। उनकी मुलाकात संगीतकार लेजली से हुई, जिनके साथ के के ने एक सफल जिंगल गाया। विज्ञापन जगत में के के की आवाज़ लोकप्रिय हो गई और उन्हें काम मिलने लगा। इन्हीं दिनों। सोनी म्यूजिक ने भारत में आकर एल्बम बनाने का काम शुरू किया। के के की मेहनत रंग लाई और उन्हें सोनी म्यूजिक ने एल्बम के लिए साइन किया। के के का करियर रफ्तार पकड़ने लगा था।
गुलजार अपनी फिल्म "माचिस" बना रहे थे। फिल्म का संगीत विशाल भारद्वाज के जिम्मे था। विशाल भारद्वाज ने के के को फिल्म में एक गीत गाने के लिए बुलाया। के के को गीत की सिर्फ एक लाइन गानी थी। के के को एक लाइन गाते हुए थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन जब गुलजार ने कहा कि वह इस एक लाइन से ही अपनी फिल्म की शुरूआत और अंत करेंगे तो के के को बड़ी हिम्मत मिली। के के ने गीत "छोड़ आए हम वो गलियां" की पहली लाइन गाकर सभी को अपनी प्रतिभा से मुरीद बना लिया। के के दिल्ली छोड़कर मुंबई आए थे। वह फील माचिस की लाइन में महसूस होता है।
गीतकार महबूब से के के की अच्छी दोस्ती थी। एक रोज महबूब ने के के को बताया कि उनके संगीतकार मित्र इस्माइल दरबार अपनी फिल्म पर काम कर रहे हैं। उन्होंने एक शानदार गाना बनाया है, जिस पर के के की आवाज बहुत बढ़िया लगेगी। यह बताते हुए महबूब ने के के से कहा कि गाने के सिलसिले में उन्हें इस्माइल दरबार से मिलना चाहिए। के के की इस्माइल दरबार से मुलाकात हुई। के के ने जब गाना सुना तो वह बेहद प्रभावित हुए। गाना बिलकुल अलग रंग का था। ऐसा गाना न के के ने कभी गाया था और न ही लोकप्रिय गीतों में उन्हें ऐसी कोई मिसाल नजर आई थी। यह गीत के के को चुनौती की तरह महसूस हुआ। के के ने इस्माइल दरबार से कहा कि वह समय लेकर इस गाने को सीखना चाहेंगे। इस्माइल दरबार ने के के की आवाज में गीत की कुछ लाइनें सुनी और यह आश्वासन दिया कि के के ही यह गीत गाएंगे। के के ने अपना समय लिया और गाने को अपनी रूह में उतार लिया।
के के की खासियत यही थी कि वह हर गाने को महसूस कर के गाते थे। के के ने इस्माइल दरबार के इस गाने को भी डूबकर गाया। सुबह के साढ़े चार बजे गाने की रिकॉर्डिंग हुई। जब गाने को फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने सुना तो वह बेहद भावुक हो गए। के के से मिलने पर संजय लीला भंसाली ने बताया कि वह गाने को 25 से अधिक बार सुन चुके हैं और वह जितनी बार भी सुन रहे हैं, उनके आंसू बहते जा रहे हैं। यह जादू था के के का। वह गीत, जिसने के के को पहचान दी और जिसे सुनकर संजय लीला भंसाली की आंखों से आंसू बह निकले, उसके बोल थे "तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही"। फिल्म "हम दिल दे चुके सनम" का यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ।
फिल्म "हम दिल दे चुके सनम" सुपरहिट साबित हुई। इसका गीत संगीत बेहद पसंद किया गया और इससे के के को हिंदी सिनेमा में पहचान मिली। उन्हीं दिनों के के का एल्बम भी लॉन्च हुआ। एल्बम ने रिलीज होते ही धूम मचा दी। के के की एल्बम के गीत "पल" और "यारों दोस्ती" देशभर में युवाओं की जुबान पर चढ़ गए। धीरे धीरे देखते ही देखते के के देश के सबसे लोकप्रिय गायक बन गए। उन्होंने एक के एक सुपरहिट गीत गाए। हर कामयाब म्यूजिक एल्बम ने के के का गाना होता था। हिंदी सिनेमा में आने वाली गायकों की पीढ़ी के लिए के के प्रेरणा का एक स्त्रोत बन गए।
यूं तो के के ने कई सुपरहिट रोमांटिक गीत गाए। मगर फिल्म "ओम शांति ओम" के लिए गाया "आंखों में तेरी अजब सी" के के का पसंदीदा रोमांटिक सॉन्ग था। के के को इस गीत के लिए संगीतकार विशाल शेखर ने मौका दिया था। फिल्म में यह गीत विशाल ने लिखा था जबकि बाकी सारे गाने गीतकार जावेद अख्तर की कलम से निकले थे। के के ने जब गाने की रिकॉर्डिंग शुरू की तो उन्हें गाने के दौरान सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई। गाना कुछ ऐसा था कि इसमें गाने के बीच में सांस लेने की जगह कम थी। तब विशाल शेखर ने एक तरकीब बताई और के के को सांस लेने की एक खास जगह मिल गई। के के ने इस गाने को इस खूबसूरती से गाया कि फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले शाहरुख खान का भी यह गीत फेवरेट बन गया।
के के की संगीतकार प्रीतम से बहुत गहरी दोस्ती थी। दोनों ने कई सुपरहिट फिल्मों में एक साथ काम किया। इनकी दोस्ती की शुरूआत भी मजेदार ढंग से हुई। के के मुंबई के फेमस स्टूडियो में गाने की रिकॉर्डिंग के लिए आए थे। प्रीतम भी काम के सिलसिले में उसी स्टूडियो में मौजूद था। दोनों की मुलाकात स्टूडियो के बाथरूम में हुई। जब प्रीतम ने के के को देखा तो यह बताए बिना रुक नहीं पाए कि उनके पास एक गीत है, जिसे वह फिल्म के लिए के के से गवाना चाहते हैं। के के ने गाना सुना तो उन्हें बहुत पसन्द आया। के के ने प्रीतम से वादा किया कि वह जरूरी किसी रोज़ यह गीत प्रीतम के लिए गाएंगे। तकरीबन दस वर्षों के बाद प्रीतम ने के के को फोन किया और उसी गीत की याद दिलाई। 10 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद के के ने प्रीतम का वह गीत रिकॉर्ड किया। वह गीत था "अलविदा" जिसे के के ने फिल्म "लाइफ इन ए मेट्रो" के लिए रिकॉर्ड किया था।
के के हिन्दी सिनेमा के उन गायकों में रहे, जिनकी आवाज को जनता ने बहुत प्यार दिया। लेकिन लोग उनके नाम और चेहरे से उस कादर परिचित नहीं थे। इसका बड़ा कारण यह था कि के के मीडिया, पार्टी, ग्लैमर से दूर रहते थे। उनका सारा ध्यान गायकी, स्टेज शोज पर रहता था। 31 मई सन 2022 को कोलकाता में आयोजित एक स्टेज शो के दौरान के के की तबीयत बिगड़ गई। के के को हार्ट अटैक आया और कुछ समय में उनकी मृत्यु हो गई। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि किसी को कुछ समझने का मौका नहीं मिला। के के आज भले ही जीवित नहीं हैं मगर उनके गीतों में वह हमेशा अमर रहेंगे।