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आवरण कथा : कंटेंट इज नॉट किंग

भारतीय सिनेमा में लोग लाख ‘कंटेंट इज किंग’ जपते रहें लेकिन सितारों के आगे हर कंटेंट फीका है।...
आवरण कथा :  कंटेंट इज नॉट किंग

भारतीय सिनेमा में लोग लाख ‘कंटेंट इज किंग’ जपते रहें लेकिन सितारों के आगे हर कंटेंट फीका है। बॉलीवुड की हाल की फिल्मों के कारोबार से तो यही लगता है। जिन फिल्मों में स्टार नहीं होते या जो बड़े प्रोडक्शन हाउस नहीं जुड़ी होतीं, उन्हें रिलीज होने से लेकर स्क्रीन हासिल करने, उचित शो टाइमिंग मिलने में अनगिनत दिक्कतें आती हैं। इन सभी चुनौतियों से पार पाने के बाद भी किसी सार्थक फिल्म को अगर दर्शक न मिलें या फिल्म दो दिन में थियेटर से उतर जाए तो क्‍या कहेंगे। निर्देशक अनुराग कश्यप कहते हैं, ‘‘फिल्म का टिकट खरीदना और वोट देना एक जैसा है। आप जैसे उम्‍मीदवार को वोट देंगे, वैसी ही सरकार होगी। आप अपराधी, लोभी व्यक्तियों को वोट देंगे तो वह जनता की सेवा करने की जगह अपना खजाना भरेगा। ठीक इसी तरह आप हिंसक, सेक्सुअल कंटेंट पसंद करेंगे तो वैसी ही फिल्में बनेंगी।’’ उनके मुताबिक, फिल्म निर्माण समाज कल्याण का माध्यम नहीं है, उससे व्यापार जुड़ा है। जब दर्शक सार्थक विषयों पर बनी फिल्मों के टिकट नहीं खरीदेंगे तो फिर कोई निर्देशक सार्थक विषयों पर फिल्म कैसे बना पाएगा।

अभिनेता मनोज बाजपेयी का मानना है, ‘‘अब निर्माता-निर्देशक और फिल्म समीक्षकों के साथ-साथ दर्शक भी व्यापार की भाषा बोल रहे हैं। दर्शक भी फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का जिक्र करते दिखते हैं। यानी फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ही फिल्म की गुणवत्ता का पैमाना बन गया है। जो फिल्म 100, 200 या 500 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है, उसे शानदार फिल्म माना जा रहा है।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘यह स्थिति भयानक है। सभी पैसा कमाने के लिए ही सिनेमा बनाएंगे तो फिल्म निर्माण की प्रतिबद्धता खत्म हो जाएगी। फिल्म कला न रहकर केवल बाजार का प्रोडक्ट रह जाएगी। ऐसे में छोटे फिल्मकार दम तोड़ देंगे। जिनके पास मार्केटिंग का बजट नहीं होगा, वह फिल्म बनाने की जगह कोई दूसरा काम करेंगे।’’

दरअसल 1 दिसंबर 2023 को रिलीज हुई निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म एनिमल ने बॉक्स ऑफिस पर तूफान मचा दिया। फिल्म ने देश में तकरीबन 500 करोड़ रुपये का कारोबार किया। दुनिया भर में कुल कमाई के साथ यह आंकड़ा 800 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों और न्यूज चैनलों पर इसी फिल्म की चर्चा रही। सिनेमाघरों में जुट रही भीड़ और हाउसफुल शो बता रहे थे कि यह फिल्म ‘असाधारण’ है। अभिनेता रणबीर कपूर ने अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया। लेकिन एनिमल के हिस्से में केवल तारीफ नहीं आई, उसे आलोचनाएं भी मिलीं। आलोचकों के अनुसार एनिमल में महिलाओं के सम्मान पर चोट की गई है, उन्हें नीचा दिखाया गया है। फिल्म पर अनावश्यक रूप से हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगे और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग तक उठी। हालांकि एनिमल की अभूतपूर्व कारोबारी सफलता ने सिनेमा जगत में एक बार फिर स्टार सिस्टम बनाम सार्थक सिनेमा की बहस छेड़ दी है। इस फिल्म के तूफान के बीच मनोज बाजपेयी की बेहतरीन फिल्म जोरम प्रदर्शित हुई लेकिन उसे थिएटर में दर्शक नहीं मिले। 

 

गौरतलब है कि जब कोविड के दौर से बाहर निकलते हुए हिंदी सिनेमा चुनौतियों का सामना कर रहा था और आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्डा से लेकर अक्षय कुमार की फिल्म रक्षाबंधन बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर रही थीं, तो कहा जाने लगा था कि स्टार सिस्टम का अंत शुरू हो गया है।

सिनेमा से जुड़े बड़े वर्ग का कहना था कि अब बॉलीवुड बदलाव के दौर में प्रवेश कर चुका है। अब केवल स्टार के नाम पर फिल्में हिट नहीं होंगी। इस वर्ग का मानना था कि भारतीय दर्शक कोविड के दौरान अंतरराष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय सिनेमा का रसास्‍वादन कर चुके हैं इसलिए उन्हें बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। फिल्मी पंडितों ने कह दिया था कि मसाला फिल्मों के नाम पर कूड़ा परोसने की परंपरा का अंत होकर रहेगा। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि दर्शक सिनेमाघरों में फिल्म देखे तो कंटेंट पर काम करना होगा। माहौल ऐसा बन गया कि सभी को लगने लगा कि बिना ठोस कंटेंट के हिंदी सिनेमा में दाल गलने वाली नहीं है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। स्टार पावर की बदौलत बड़े सितारों की फिल्में तो खूब चलीं लेकिन सार्थक सिनेमा के पैरोकारों को व्यावसायिक दृष्टि से निराशा ही हाथ लगी। 

 

एक ओर न सिर्फ शाहरुख खान की पठान, जवान और डंकी बल्कि कई अन्य मुख्य धारा के सितारों की औसत दर्जे के फिल्में भी सुपरहिट हुईं। रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर की विशुद्ध मसाला फिल्म तू झूठी मैं मक्कार ने 200 करोड़ रुपये कमाए। कार्तिक आर्यन की सत्य प्रेम की कथा और रणवीर सिंह कि रॉकी और रानी की प्रेम कहानी ने बॉलीवुड की बुनियाद को मजबूत करने का काम किया। इन फिल्मों ने क्रमशः 120 करोड़ रुपये और 355 करोड़ रुपये कमाए। अक्षय कुमार-पंकज त्रिपाठी की ओ माई गॉड 2 ने शानदार व्यवसाय किया। बॉक्स ऑफिस पर सनी देओल का जादू कई सालों बाद चला। लोग ट्रैक्टर से लेकर बड़ी-बड़ी गाड़ियों में गदर 2 देखने सिनेमाघर पहुंचने लगे। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तकरीबन 700 करोड़ रुपये कमाए। आयुष्मान खुराना की फिल्म ड्रीम गर्ल 2 ने भी 140 करोड़ रुपये कमाए। साल 2023 खत्म होते-होते, सलमान खान की फिल्म टाइगर 3, विकी कौशल की फिल्म सैम बहादुर और शाहरुख खान की फिल्म डंकी ने बॉलीवुड का परचम बॉक्स ऑफिस पर फहराया लेकिन एनिमल के प्रति जिस तरह की दीवानगी देखी गई, उसने साबित किया कि स्टार सिस्टम कभी खत्म नहीं हो सकता।

विशाल भारद्वाज की फिल्म कुत्ते जिसमें तब्बू, कुमुद मिश्रा, कोंकणा सेन शर्मा जैसे काबिल कलाकार थे फिल्म बॉक्स ऑफिस पर प्रभाव छोड़ने में नाकाम रही। निर्देशक सुधीर मिश्रा की फिल्म अफवाह और निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म भीड़ का भी वही हाल हुआ। इन फिल्मों को न दर्शक मिले न मल्टीप्लेक्स मालिकों ने इन फिल्मों में खासी दिलचस्पी दिखाई। इस तरह उस दावे की हवा निकल गई, जिसमें कहा जा रहा था कि भारतीय दर्शक परिपक्व हो चुके हैं और वह सिनेमाघर में सार्थक सिनेमा देखना चाहते हैं।

भारतीय दर्शक एक्शन, थ्रिलर, रोमांस देखने, स्टार्स को देखने के लिए ही सिनेमाघर पहुंचते हैं। अपवाद छोड़ दें, तो कंटेंट रिच फिल्में दर्शक ओटीटी प्लेटफॉर्म और टीवी पर देखना पसंद करते हैं। उदाहरण स्वरूप, दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल्स में धमाल मचाने वाली मनोज वाजपेयी के जोरम जब भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज हुई, तो बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम से गिर गई। बेहतरीन फिल्म होने के बावजूद इस फिल्म कि असफलता ने सिद्ध किया कि सिनेमाघर तक दर्शकों को खींचने का माद्दा अभी भी केवल और केवल बड़े स्टार्स में है। वर्तमान परिदृश्य में यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि कला फिल्मों का दायरा फिल्म फेस्टिवल और ओटीटी प्लेटफॉर्म तक ही सीमित है।

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