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चक दे की रानी अब बनी परबतिया

दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की धुरंधर अदाकारा सीमा आजमी को आज भी फिल्म चक दे इंडिया में झारखंड की खिलाड़ी रानी डिस्पोट्टा के किरदार के लिए जानते हैं। जल्द ही चक दे गर्ल रामभजन जिंदाबाद में दिखाई देंगी।
चक दे की रानी अब बनी परबतिया

रामभजन जिंदाबाद की खासियत क्या है?

यह पॉलिटिकल सटायर है। इस फिल्म में उत्तर-प्रदेश के ऐसे परिवार की कहानी है जो गरीब है और हर गरीब की तरह उसके भी कुछ सपने हैं। इन सपनों को सच करने के लिए कैसे वह सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक स्कीम की आड़ लेता है और किस तरह से उस स्कीम का दुरुपयोग होता है, यह फिल्म इसे बहुत अच्छे से दिखाती है।

आप इसमें क्या किरदार निभा रही हैं?

मेरे किरदार का नाम परबतिया है जो एक दिहाड़ी मजदूर की पत्नी है। वह गरीब है लेकिन उसके अंदर भी स्वाभिमान है। कहीं मुफ्त का खाना मिल रहा हो तो वह अपने बच्चों को उसे खाने से रोकती है। जब उसका पति उसे अपनी स्कीम बताता है तो वह उसे भी धमका देती है।

 क्या सोच कर आपने इस किरदार के लिए हां कहा?

यह किरदार जब पहली बार मुझे सुनाया गया तो मुझे भी यह अचंभा-सा लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन बतौर कलाकार हम लोग ऐसे किरदारों को तलाशते रहते हैं जिनमें हमें कुछ हट कर करने का मौका मिले, जिनमें हमें अपने टैलेंट को दिखाने का मौका मिले और लगे कि कुछ समय बाद हमें इसके लिए याद किया जाएगा।

 

किस तरह का होमवर्क किया आपने इस किरदार के लिए?

मैं खुद उत्तर प्रदेश से हूं और मुझे लगता है कि इस तरह के किरदारों को मैंने करीब से देखा है। हालांकि इस किरदार की जो बोली है, उसके लिए मुझे थोड़ी प्रैक्टिस करनी पड़ी लेकिन थिएटर की अपनी बैकग्राउंड की वजह से मेरे लिए ऐसे किरदार मुश्किल नहीं होते।

एक गंभीर विषय को व्यंग्य की तरह क्यों पेश किया जा रहा है?

सिनेमा ऐसा माध्यम है जिसमें अगर किसी गंभीर बात को गंभीरता से कहा जाए तो उसका दायरा सीमित हो जाता है जबकि उसी बात को अगर व्यंग्य के साथ पेश किया जाए तो वह ज्यादा लोगों तक और ज्यादा असरदार तरीके से पहुंच पाती है।

आप काफी कम फिल्मों में दिखाई देती हैं?

दरअसल जो बॉलीवुड फिलहाल है, उसमें मेरे जैसी अभिनेत्री के लिए काफी कम रोल होते हैं। मेरे लिए यह मुश्किल है कि मैं साइड में खड़ी होकर बहन या भाभी का रोल करूं। तो मैं खुद ही थोड़ा पीछे हट गई कि जो मन को भाएगा, वही करूंगी। इसलिए फिल्में मैं तभी करती हूं जब कोई सचमुच अच्छा रोल मिले जैसे यह फिल्म है या फिर मौहल्ला अस्सी जो बन कर अटकी हुई है, वरना मुझे थिएटर करके ही ज्यादा संतुष्टि मिलती है।

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