Advertisement

इंटरव्यू : संजना सांघी - "कोई भी बड़ा काम एक दिन में नहीं होता"

संजना सांघी उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं, जिन्होंने बहुत सीमित अवसरों को भुनाकर अपनी एक अलग पहचान...
इंटरव्यू : संजना सांघी -

संजना सांघी उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं, जिन्होंने बहुत सीमित अवसरों को भुनाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। संजना ने फिल्म रॉकस्टार से शुरुआत की और आने वाले कुछ वर्षों में "दिल बेचारा", "हिन्दी मीडियम", "फुकरे रिटर्न्स" जैसी फिल्मों से सिनेमा रसिकों में लोकप्रिय हो गईं। संजना अब एक बेहद संवेदनशील और रोचक किरदार में नजर आने वाली हैं। 8 दिसम्बर को जी 5 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर संजना सांघी की फिल्म "कड़क सिंह" रिलीज हो रही है। संजना से उनकी फिल्म और अभिनय यात्रा के विषय में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।

 

फिल्म "कड़क सिंह" में साक्षी का किरदार निभाते हुए क्या चुनौतियां आईं ?

"कड़क सिंह" जैसी फिल्में बहुत कम बनती हैं। इसलिए ये कलाकार से कुछ अधिक परिश्रम, अनुशासन चाहती हैं। आपको अपनी क्षमता का विस्तार करना होता है। जीवन अनुभव का इस्तेमाल करना होता है। स्क्रिप्ट में साक्षी का किरदार बहुत ही जटिल और कई परतों में ढका हुआ था। मैंने इस तरह का काम पहले कभी नहीं किया था। सच कहूं तो शुरुआत में मुझे ऐसा लगा कि मैं इसे किस तरह निभा सकूंगी। मगर जब मैंने निर्देशक के विश्वास को देखा तो मुझमें सकारात्मक ऊर्जा पैदा हुई। मैंने धीरे धीरे किरदार को महसूस करना शुरु किया और देखते ही देखते मुझे मजा आने लगा। जो सुकून, जो आनंद मैंने साक्षी के किरदार को निभाते हुए महसूस किया, पहले कभी नहीं किया।मैंने महसूस किया कि कलाकार का असली रंग इन्हीं तरह के किरदारों से निखरता है।

 

इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी जैसे सशक्त अभिनेता आपके सामने थे। अभिनय प्रक्रिया में क्या सीखने को मिला ? 

सीखना मेरे स्वभाव में है। मैं हमेशा अपने पास एक डायरी रखती हूं। उसमें सीखी हुई बातों को लिखती हूं। इस फिल्म के दौरान भी मैंने कई बातें सीखीं। अपने जीवन में मुझे जब जब महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे, सीखी हुई बातें काम आएंगी। पंकज त्रिपाठी सर की कही हर पंक्ति में एक गहरा संदेश होता है, जिसके बारे में आप कई दिनों तक सोचते रहते हैं। इस फिल्म में यदि मैं प्रभाव छोड़ पाई हूं तो इसका श्रेय पंकज जी को जाता है। किरदार की तैयारी के लिए मैं 15 दिनों तक उनके घर गई और एक्टिंग गुरु प्रसन्ना ने हमारी वर्कशॉप कराई। साथी कलाकार को किस तरह सहज किया जाता है, कैसे उसका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है, यह पंकज जी को बखूबी आता है। उपलब्धियों के साथ कैसे सरल रहा जाता है, यह बात पंकज जी से सीखी जा सकती है।

 

फिल्म "कड़क सिंह" में पिता - पुत्री संबंध को रेखांकित किया गया है। इस बारे में कुछ बताइए ? 

पिता और पुत्री का रिश्ता मेरे लिए बहुत खास है। असल जिंदगी में मैं अपने पिता के बहुत करीब हूं। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया है। आज मैं जो कुछ भी हासिल कर पाई हूं, उसमें सबसे बड़ा योगदान मेरे पिता का है। जब मुझे पता चला कि साक्षी के किरदार में मैं पिता - पुत्री संबंध की गहराई को महसूस कर सकूंगी तो मुझे फिल्म के चुनाव पर प्रसन्नता हुई। हालांकि फिल्म का पिता - पुत्री संबंध चुनौतीपूर्ण था मगर मुझे इसे निभाने में बहुत आनंद आया। मैंने पूरी शिद्दत से काम किया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि दर्शकों को फिल्म देखते हुए मेरी मेहनत नजर आएगी। 

 

किसी भी फिल्म या किरदार को चुनते हुए, आपके जहन में क्या बातें रहती हैं ?

मैं अपने जीवन में सार्थक काम करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि जब कोई मुझे स्क्रीन पर देखे तो उसे मेरी अहमियत समझ आए। सिर्फ जगह भरने के लिए, मैं कोई भी रोल नहीं करना चाहती।यही कारण है कि मैं ग्लैमरस अवतार से ज्यादा यथार्थवादी सिनेमा में नजर आती हूं। इन फिल्मों में स्कोप होता है। आपकी कला विकसित होती है।आप बेहतर कलाकार और इंसान बनते हैं। स्क्रिप्ट पढ़ते हुए, मुझे महसूस होने लगता है कि इस किरदार को निभाकर मुझे खुशी होगी या नहीं। इस आधार पर ही मैं फिल्मों का चुनाव करती हूं।

 

आपने जो यात्रा फिल्म "रॉकस्टार" से शुरु की थी, वह "कड़क सिंह" तक पहुंच चुकी है।अपने फिल्मी सफर को लेकर कैसा महसूस करती हैं ?

मैं दर्शकों के प्यार और आशीर्वाद के लिए हर पल आभारी हूं। मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां सिनेमा को लेकर कोई विशेष माहौल नहीं था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अभिनेत्री बनूंगी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मेरी फिल्म रिलीज होगी या मैं देश के दिग्गज कलाकारों के साथ स्क्रीन साझा करूंगी। आज जब मेरी फिल्में रिलीज होती हैं, जब आलोचकों और दर्शकों का प्यार मिलता है तो सब स्वप्न जैसा लगता है। यह मुझे और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है।

 

हिन्दी सिनेमा से जुड़े वह कौन से तौर तरीके हैं, जिनमें बदलाव की कोशिश की जानी चाहिए ? 

 

मुझे हमेशा से महसूस होता है कि सिनेमा या किसी भी क्षेत्र में समानता का व्यवहार होना चाहिए। मैंने देखा है कि कैसे फिल्म "दिल बेचारा" से पहले मुझसे व्यवहार किया जाता था। ऐसा लगता था कि जैसे मैं और कोई स्टार अभिनेता अलग अलग दुनिया से हैं, अलग मिट्टी से बने हैं। वहीं "दिल बेचारा" की रिलीज के बाद, मुझे अहमियत मिलने लगी। सभी अलग तरीके से पेश आने लगे। मुझे इस बदलाव से महसूस हुआ कि आपकी प्रतिभा को तभी सम्मान मिलता है, जब आप स्टार बनते हैं। जब तक आपको बड़ी फिल्म नहीं मिलती, तब तक लाख प्रतिभाशाली होने पर भी आपको कोई नहीं पूछता। मैं चाहती हूं कि एक ऐसा माहौल फिल्म के सेट पर हो, जहां कोई छोटा महसूस न करे। इसके अतिरिक्त मैं चाहती हूं कि हिन्दी सिनेमा में मेंटल हेल्थ को लेकर चर्चा होनी चाहिए। इस तरफ ध्यान देने की बहुत जरूरत है। ग्लैमर इंडस्ट्री में जितना स्ट्रेस है, वह कलाकारों को भीतर से खोखला कर रहा होता है। इसलिए एक ऐसी व्यवस्था की बहुत जरूरत है, जहां कलाकारों के मेंटल हेल्थ की चर्चा हो। उन्हें मदद मिल सके। तभी सही मायने में हिन्दी सिनेमा, विश्व सिनेमा की बराबरी कर सकेगा।

 

जीवन में असफलताओं से कैसे निपटती हैं ?

मेरा ऐसा मानना है कि आप जब भी प्रयास करेंगे तो कुछ सीखेंगे। प्रयास करना ही महत्वपूर्ण है। परिणाम अस्थाई है। इसलिए परिणाम से विचलित होने की जरूरत नहीं है। मेरी खुद से बड़ी उम्मीदें हैं। इसलिए मैं निराश नहीं होती। मैं जानती हूं कि कोई भी बड़ा काम एक दिन में नहीं होता। सफलता रातों रात नहीं मिलती है।उसमें समय लगता है। रुकावटें आती हैं। यही वजह है कि मैं असफलताओं से प्रभावित नहीं होती।मेरा मनोबल हमेशा ऊंचा रहता है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad