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इंटरव्यू : पहलाज निहलानी - "आखिरी दम तक फिल्में बनाता रहूंगा"

अस्सी और नब्बे के दशक में सुपरहिट फिल्में बनाने वाले निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी अपनी नई फिल्म...
इंटरव्यू : पहलाज निहलानी -

अस्सी और नब्बे के दशक में सुपरहिट फिल्में बनाने वाले निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी अपनी नई फिल्म लेकर दर्शकों के बीच आए हैं। उनकी फिल्म का नाम है "अनाड़ी इज बैक", जो 24 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है।जिस दौर में फिल्म अभिनेताओं ने अपने प्रोडक्शन हाउस बना लिए हैं, उस समय पहलाज निहलानी उन चुनिंदा बड़े इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर में हैं, जो फिल्में बना रहे हैं। शोला और शबनम, आंखें जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में देने वाले पहलाज निहलानी बहुत बेबाकी से हिन्दी सिनेमा की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हैं। उन्होंने अपनी आगामी फिल्म और हिन्दी सिनेमा को लेकर आउटलुक के गिरिधर झा से बातचीत की।

 

नई फिल्म "अनाड़ी इज बैक", आपकी पिछली फिल्मों से कितनी अलग है ?

 

मैं समझता हूं कि जिस कहानी से आम आदमी कनेक्ट करता है, वही फिल्म कामयाब होती है। इसलिए मेरी फिल्म में अलग बात हो या न हो लेकिन इससे आम दर्शक जुड़ा हुआ जरूर महसूस करेगा। मेरी फिल्म पिता और पुत्र के रिश्ते पर आधारित है। इंसानियत और प्रेम का संदेश देती है मेरी फिल्म। आज ऐसी फिल्में कम नजर आती हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह फिल्म दर्शकों को पसन्द आएगी।

 

 

आपने गोविंदा से लेकर चंकी पांडे जैसे अभिनेताओं को अपनी फिल्मों के माध्यम से हिंदी सिनेमा में अवसर दिया। फिल्म "अनाड़ी इज बैक" में भी आपने नए चेहरे को मौका दिया है।क्या कहना चाहेंगे इस बारे में?

 

मुझे नए लोगों के साथ काम करने में मजा आता है। नए कलाकार कच्ची गीली मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें जैसे चाहो ढाल सकते हैं। यह कलाकार सीखना चाहते हैं। इनमें ऊर्जा होती है।इनमें इच्छा होती है खुद को साबित करने की। इस कारण फिल्म बनाने की प्रक्रिया में बहुत जीवंतता महसूस होती है। फिल्म "अनाड़ी इज बैक" का मुख्य किरदार एक सीधे सरल इंसान का है। इस किरदार को युवा अभिनेता नवाब खान ने बहुत अच्छे से निभाया है। उन्होंने कहानी और किरदार की आत्मा को जिया है। मैं यही कहूंगा कि नवाब ने मेरी कल्पना को पर्दे पर उतार दिया है।

 

आपकी इस फिल्म से अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती और अभिनेत्री अनीता राज ने लम्बे समय के बाद एक साथ स्क्रीन पर वापसी की है। क्या कहेंगे इस बारे में ? 

 

मैंने मिथुन चक्रवर्ती के साथ सन 1984 में काम किया था। जब "अनाड़ी इज बैक" के निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी, तब मुझे एक ऐसे अभिनेता की तलाश थी, जो अभिनय में लचक और गहराई रखता हो। किरदार की सारी जरूरतें मिथुन चक्रवर्ती पूरा करते थे। मैंने उनसे संपर्क किया और वह फिल्म का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने बहुत मेहनत और समर्पण के साथ काम किया। हर सीन में उनका अनुभव नजर आता है। ठीक इसी तरह से महिला किरदार के लिए अनीता राज उपयुक्त कलाकार नजर आईं। मैं उनके साथ पहले काम कर चुका हूं। इसलिए उन्होंने कहानी सुने बिना ही फिल्म का हिस्से बनने के लिए हामी भर दी। इस तरह मिथुन चक्रवर्ती, अनीता राज और अन्य कलाकारों ने मिलकर एक सार्थक फिल्म बनाने का प्रयास किया है।

 

हिन्दी सिनेमा में जो बदलाव हुए हैं, उन्हें आप किस तरह देखते हैं और उनका आप जैसे इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर पर क्या असर पड़ा है ? 

 

हिन्दी सिनेमा ने तकनीक के मामले में ऊंची उड़ान भरी है।एक जमाने में पीटर परेरा और बाबूलाल मिस्त्री जैसे लोग बड़ी मशक्कत से स्पेशल इफेक्ट्स का काम करते हैं। उस दौर में कहानी इतनी अच्छी होती थी कि तकनीकी खामियां छिप जाती थीं। आज की फिल्में वीएफएक्स के मामले में बहुत आगे निकल गई हैं। इस बदलाव की तो तारीफ करनी चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ आज फिल्मों का निर्माण बिजनेस मॉडल की तरह किया जा रहा है। किस तरह से फिल्म के ओटीटी राइट्स से लेकर सैटेलाइट राइट बिकेंगे, यह सबसे पहले सोचा जा रहा है। कहानी, कॉन्टेंट बैक सीट ले चुका है। तभी इक्का दुक्का फिल्में ही ऐसी बनती हैं, जिन्हें दर्शक आज से दस साल बाद देखना चाहेंगे। बाकी तो सब बाजार की भूख मिटाने के लिए फिल्म बना रहे हैं। डेढ़ से दो घंटे की फिल्में बन रही हैं, जिससे कि ज्यादा फिल्में थियेटर में दिखाई जा सकें। फिल्म संगीत अपने सबसे बुरे दौर में है। पहले कहानी की डिमांड के हिसाब गाने बनते थे, गीतकार, गायक, संगीतकार साथ बैठते थे। अब सब कुछ मशीन की तरह हो गया है। भावनाओं, संवेदनाओं का अकाल है। रही बात इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर की तो उनकी स्थिति में गिरावट दर्ज की गई है। आज हमारी फिल्म को स्क्रीन मिलने में दिक्कत आती है। कहीं फिल्म रिलीज हो भी जाए तो बड़ी फिल्म के आने से हमारी फिल्म को जल्दी हटा दिया जाता है। फेयर गेम नहीं रहा अब। बड़े प्रोडक्शन हाउस ही अपने हिसाब से तय करते हैं कि बाकी फिल्मों को कितनी जगह मिलेगी। इसका भारी नुकसान छोटे और इंडिपेंडेंट फिल्म निर्माताओं को हो रहा है।

 

मल्टीप्लेक्स सिनेमा कल्चर में छोटी फिल्मों को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उनके विषय में आपके क्या अनुभव हैं?

 

आज हिन्दी सिनेमा अजीब दौर में है। पहले तो छोटी फिल्मों को थियेटर नहीं मिल पाते हैं। अगर थियेटर मिल जाए तो उन्हें ऐसी शो टाइमिंग मिलती है कि उस समय कोई फिल्म देखने आता नहीं। यदि छोटे बजट की फिल्म अच्छा प्रदर्शन करने लगती है तो उसे उतरवा दिया जाता है। इतना ही नहीं, चाहे 15 अगस्त हो या दीवाली, ईद बड़े स्टार की फिल्म को ही पूरा स्पेस दिया जाता है। त्यौहार के समय जब दर्शक फिल्म देखने निकलते हैं, तब केवल बड़े स्टार को पैसा बंटोरने का अवसर दिया जाता है। मैंने देखा है कि एक पूरी टीम काम कर रही है, जिसका एकमात्र उद्देश्य है कि बडे़ प्रोडक्शन हाउस का स्वामित्व, प्रभुत्व,एकछत्र राज कायम रहे। इसका परिणाम यह हुआ है कि सामान्य फिल्म निर्माता अब बहुत जद्दोजहद के बाद भी अपनी फिल्म रिलीज़ नहीं कर पा रहे हैं।

 

"अनाड़ी इज बैक" के बाद आपके बैनर की क्या योजनाएं हैं?

 

मैं सन 1964 से फिल्म जगत का हिस्सा रहा हूं।मेरी जिन्दगी फिल्म इंडस्ट्री के इर्द गिर्द ही घूमती है। इसलिए कितने ही उतार चढ़ाव आते रहें, मैं कभी भी फिल्म इंडस्ट्री से खुद को अलग नहीं कर पाता हूं। मैं जब तक जीवित रहूंगा, तब तक फिल्में बनाता रहूंगा। यही मेरा संकल्प है और जीने का प्रोत्साहन भी। 

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