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फिल्‍म समीक्षा: सलमान ने दी दर्शकों को ईदी

सलमान खान के प्रशंसकों से कभी मत पूछिए कि उनकी फिल्म कैसी थी। क्योंकि उनके लिए सलमान की फिल्म निष्ठा का प्रश्न ज्यादा होती हैं। इस बार ईद का सबसे पड़ा तोहफा बजरंगी भाईजान है। इस फिल्म में भी कमियां निकालना चाहें तो ढेर मिल जाएंगी। पर फिलहाल तो ध्यान इसी पर केंद्रित रखिए कि निर्माता (सलमान खान और राकलाइन वेंकटेश) के खाते में एक के आगे कितने शून्य जमा होंगे। मनमोहन देसाई मार्का यह फिल्म दर्शक बटोरेगी या नहीं यह तो प्रश्न ही बेमानी है।
फिल्‍म समीक्षा: सलमान ने दी दर्शकों को ईदी

भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर बनने वाली फिल्मों में अकसर दुश्मनी और आंखें तरेरने वाले दृश्य आम होते हैं। इस फिल्म में पाकिस्तान की आवाम भी गैरकानून ढंग से उनके मुल्क में घुस आए एक हिंदुस्तानी को प्यार करते दिख रहे हैं। तो क्या यह दोनों मुल्कों के रिश्तों में बदलाव की शुरुआत है।

 

छह साल की एक बच्ची शाहिदा उर्फ मुन्नी (हर्षाली मल्होत्रा) जो बोल नहीं सकती हिंदुस्तान आकर खो गई है। उसे पवन कुमार चतुर्वेदी उर्फ बजरंगी (सलमान खान) को पहले मजबूरी फिर प्यार के कारण रखना पड़ता है। इस बीच बजरंगी को एक कट्टर हिंदुस्तानी (कृपया इसे हिंदू न पढ़ें) की बेटी रसिका (करीना कपूर) से प्रेम हो गया और शादी से पहले वह बच्ची को उसके माता-पिता से मिलवाना चाहता है। बिना पासपोर्ट-वीजा वह बच्ची को अपने माता-पिता से मिलवा देता है। इस बीच चांद मोहम्मद (नवाजुद्दीन सिद्दकी) एक घरेलू टाइप का स्ट्रिंगर उसकी मदद करता है। नवाजुद्दीन इतने सहज हैं कि लगता ही नहीं वह अभिनय कर रहे हैं। सलमान खान की चमक भी उनको फीका नहीं कर सकी है।  

 

पहले मनमोहन देसाई की फिल्मों में होता था, दरगाह पर जाइए और आंखों की रोशनी पाइए। नमाज पढ़िए और खोए हुए पिता को पाइए। चमत्कारों की इस कड़ी को निर्देशक (कबीर खान) ने आगे बढ़ाया है। दरगाह जाकर मां का क्लू मिलना और बच्ची चूंकि भारत की एक दरगाह में आ चुकी है इसलिए उसकी आवाज आना भी जरूरी था। सलमान नुमा लटके-झटके वाले गाने, उनकी स्टाइल की मारपीट और थोड़े झोलझाल के बाद भी यह फिल्म बांधे रखती है। इस फिल्म में एक्शन-इमोशन का शोला बराबर है। बहुत दिनों बाद ऐसी फिल्म आई है जिसे पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखा जा सकता है। कोई वयस्क मजाक नहीं। यह कॉमेडी फिल्म नहीं है पर सहज हास्य की इसमें कमी नहीं है।

 

कई दृश्य मन को छू जाते हैं। खासकर शाहिदा उर्फ मुन्नी का बिना कहे बजरंगी को पकड़ लेना कि वह अकेले पाकिस्तान नहीं जाएगी। क्रिकेट मैच के दौरान पाकिस्तान की जीत पर शाहिदा का ताली बजाना और छोटे बच्चे का कहना, ‘क्या कर रही है मुन्नी, ये गलत टीम है।’

 

अब थोड़ा पॉलिटिकल हो कर बात करें तो पवन कुमार चतुर्वेदी के पिता शाखा प्रमुख दिखाए गए हैं। क्या यह मात्र संयोग है...। 

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