बॉलीवुड डायरीज देखते हुए मन में कई तरह के सवाल आ सकते हैं। विष्णु श्रीवास्तव (आशीष विद्यार्थी) की कहानी देखते हुए लग सकता है, ‘अब यह तो अति हो गई!’ लेकिन जब आप विष्णु के अंदर झांकें तो एक ऐसा जिद्दी बच्चा पाता हैं जिसे वादा किया गया था कि फलां खिलौना उसे दिला दिया जाएगा और वक्त के साथ माता-पिता उस वादे को भूल गए पर बच्चे ने याद रखा। 50 साल की उम्र में भी यदि किसी व्यक्ति के अंदर बॉलीवुड जा कर संघर्ष करने का माद्दा है और पत्नी की आज्ञा न मिल पाने से यदि वह व्यक्ति बच्चे की तरह रो सकता है तो फिर कहानी का यह हिस्सा अति नहीं लगेगा। दूसरी और तीसरी कहानी में इमली (रिया सेन) और रोहित (सलीम दीवान) भी उस जुनून को ठीक तरह से निभाते हैं जिसके लिए के डी सत्यम ने कहानी बुनी-रची है।
यह फिल्म एक दर्द लिए चलती है और धीरे-धीरे उम्मीद के ‘नोट’ पर खत्म होती है। बार डांसर बन जाने के बाद भी इमली की उम्मीद, आखिरी सांस लेते वक्त ‘पुर्नजन्म’ की विष्णु की उम्मीद और दिमागी संतुलन के बाद भी ‘सुपर स्टार’ हो जाने की रोहित की उम्मीद। बीच में टेलीविजन टीआरपी का विद्रूप चेहरा और सपने की खातिर तितली के सपने बेचने की धुन के बीच यह फिल्म बहुत से सवाल छोड़ जाती है जिसके लिए उत्तर शायद सभी को मिल कर खोजने होंगे।