‘गोल्डफ़िश’ पुशन कृपलानी द्वारा निर्देशित, इंग्लैंड की पृष्ठभूमि पर आधारित यथार्थवादी फिल्म है। फिल्म की कहानी मनोभ्रंश (डिमेंशिया) के शुरूआती चरण से जूझती माँ के अपनी बेटी के साथ तनावपूर्ण रिश्ते के बारे में है। ‘गोल्डफ़िश’ में माँ ‘साधना त्रिपाठी’ की भूमिका अप्रतिम प्रतिभा की पर्याय, उत्कृष्ट, सशक्त, दिग्गज अभिनेत्री दीप्ति नवल ने निभाई है। दीप्ति नवल का असाधारण, मर्मस्पर्शी, सर्वोत्कृष्ट अभिनय फिल्म को सिनेमाई उत्कृष्टता के उच्च स्तर तक ले जाने में सफल रहा है। दीप्ति नवल की बेटी ‘अनामिका फील्ड्स’ की जटिल भूमिका अतिशय प्रतिभासम्पन्न कल्कि केलका (कोएच्लिन) ने शानदार ढंग से निभाई है। कल्कि ने सूनी आँखों और शारीरिक भाव-भंगिमा द्वारा अपना पात्र जीवंत किया है। दीप्ति नवल और कल्कि का हृदयस्पर्शी अभिनय दिल-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ता है। माँ सब भूलती जा रही है पर बेटी कुछ भी भूल नहीं पा रही है। पर इतने जटिल रिश्ते के बावजूद, कठिन घड़ियों में माँ-बेटी के आपसी जुड़ाव का सामंजस्य बखूबी दृष्टव्य है। केवल अनामिका का अँधेरे स्क्रीन के पीछे पिता से संवाद और प्रेमी से बात करना असंगत लगता है।
‘गोल्डफ़िश’ में पुशन कृपलानी ने निपुण निर्देशकीय कौशल द्वारा सभी कलाकारों से शानदार अभिनय कराया है। पुशन द्वारा दोनों अभिनेत्रियों को धारा के विपरीत तैरने हेतु विवश करने पर दोनों ने अपनी सारी ऊर्जा लगाई है। पुशन कृपलानी और अर्घ्य लाहिड़ी ने पटकथा में मनोभ्रंश जैसी सार्वभौमिक समस्या का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया है। मनोभ्रंश जैसा गंभीर विषय संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करने से फिल्म कालातीत कृति बन गई है। भावपूर्ण दृश्यों को सहजता से दृश्यात्मक कृति में परिवर्तित करने हेतु पुशन बधाई के पात्र हैं।
शिक्षाविद अनामिका, माँ के साथ की पीड़ादायक स्मृतियां मन में गहरे अंकित होने से अलग रहती है। फिल्म की शुरूआत में पड़ोसी द्वारा माँ के रसोईघर में लगी आग की सूचना मिलने पर वो माँ के पास आती है। वर्षों के अलगाव के बाद, माँ के पास आकर अनामिका देखती है कि शास्त्रीय गायिका माँ के लिए जीवन के सुर पकड़ना कठिन होने लगा है। फिल्म दर्शाती है कि मनोभ्रंश से पीड़ितों के लिए प्रियजन तक अपरिचित होने लगते हैं। अनामिका देखती है कि माँ धीरे-धीरे शब्द, स्थान, लोग, वस्तुएं भूलने लगी हैं। माँ उसको बताती हैं कि वो अपनी भाषा भूल रही हैं। एक दृश्य में दीप्ति नवल ने सही शब्द याद ना आने की विवशता जिस मार्मिक ढंग से अभिनीत की है वो बेहद प्रशंसनीय है। माँ के सामने अनामिका अनकही पीड़ा प्रकट करती है, पर साधना भूल जाती हैं कि उन्होंने बेटी के साथ बुरा व्यवहार किया था।
गोल्डफिश’ के बारे में मिथक है कि उसकी स्मरणशक्ति 3 सेकंड की होती है पर ‘गोल्डफिश’ कई दिनों तक याद रखती है। फिल्म का प्रतीकात्मक नाम ‘गोल्डफिश’ रखना पुशन की बौद्धिकता का परिचायक है। ‘गोल्डफिश’ की तरह, माँ-बेटी को भी अपना दुखद अतीत याद रहता है, जो उनका वर्तमान बर्बाद करके, भविष्य धुंधला कर देता है। माँ को बेटी की प्रिय पालतू ‘गोल्डफिश’ मारने का स्मरण नहीं है, जबकि उसकी ‘गोल्डफिश’ का मरना ही माँ के प्रति रोष का कारण है।
साधना शास्त्रीय संगीत की गायिका रही हैं। वे अतीत की स्मृतियों पर मुग्ध होती हैं, तो कभी मातृत्व पर गायकी बर्बाद होने का आरोप मढ़ती हैं। संगीतकार तापस रेलिया ने माँ-बेटी की भावुकता को संगीतमय चित्रपट प्रदान किया है। उस्ताद राशिद खान और प्रतिभा सिंह बघेल की समृद्ध गायकी में साधना का अकेलापन बखूबी गुंजायमान हुआ है। शास्त्रीय सुरों से सराबोर तबला-सारंगी के सुरीले सुरों में स्मृतियां गूंजती हैं।
पश्चिमी व्यवहारिकता की हिमायती अनामिका भारतीय आदर्शवाद को कोरी भावुकता मानती है। महामारी के चलते वित्तीय समस्याओं से जूझती अनामिका, माँ को घर से हटाकर देखभाल गृह में रखने के पश्चात, नौकरी करने की इच्छुक है। लेकिन साधना अच्छे पड़ोसियों के सान्निध्य में अपने घर रहना चाहती हैं क्योंकि उनकी देखभाल हेतु पड़ोसी हर समय उपस्थित रहते हैं। पड़ोसी नर्स लक्ष्मी (भारती पटेल) के अनुरोध पर वो माँ को देखभाल गृह भेजने का निर्णय स्थगित करती है। निजी समस्याओं से जूझती लक्ष्मी, साधना की हरसंभव मदद करती है। एक-दूसरे का ख्याल रखते, मिलजुल कर रहते अच्छे पड़ोसियों का होना कितना आवश्यक है, फिल्म में इसे सुंदर ढंग से चित्रित किया है। एक महत्वपूर्ण दृश्य में दिखाया है कि साधना के बाथरूम में फिसलकर गिरने पर, बेटी के साथ पड़ोसी तुरंत आकर उनकी मदद और देखभाल करते हैं। पति की मृत्युपरांत, अकेली माँ और पड़ोस के किराना दुकानदार अश्विन रैना (रजित कपूर) का आपस में लगाव हो जाता है। इस लगाव के चलते माँ अपना घर बेटी के नाम करने की बजाए, अश्विन के नाम कर देती हैं। पर अनामिका इसे स्वीकार नहीं कर पाती है।
‘गोल्डफ़िश’ की कहानी में निहित प्रेम, हानि-लाभ, आशा-निराशा रूपी भावनाओं के जटिल ताने-बाने साथ में बुने गए हैं। माँ-बेटी के प्रति सहानुभूति दर्शाए बिना, दोनों को स्वार्थी सिद्ध किए बिना, सही-गलत के निर्णय से परे होना फिल्म की सार्थकता है। फिल्म की धीमी गति कहानी को स्वाभाविकता से सामने लाती है। ‘गोल्डफिश’ सांस्कृतिक विभाजन पाटकर, लोगों को गहरे स्तर पर जोड़ती है। मानवीय भावनाओं का सार समझना फिल्म की सफलता है। दर्शकों के मस्तिष्क में प्रतिध्वनित होता मानवीय अनुभूतियों का चित्रण, फिल्म से भावनात्मक जुड़ाव का प्रमाण है। ‘गोल्डफिश’ सुंदर उदाहरण है कि अच्छी कहानी, त्रुटिहीन निर्देशन और मर्मस्पर्शी अभिनय, कैसे दर्शकों के हृदय स्पर्श करने की क्षमता रखता है। फिल्म देखकर युवा दर्शकों को स्वयं से प्रश्न करना चाहिए कि ‘अनजाने में या जानते-बूझते, अगर माता-पिता ने बच्चों के साथ उनके बचपन में अनुचित व्यवहार किया हो, तो क्या माता-पिता के वार्धक्य में बच्चों को उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए?’
‘गोल्डफ़िश’, सिनेमा के विशाल सागर में, दुर्लभ मोती स्वरूप है। ये भावनात्मक फिल्म हृदय को उद्वेलित कर, अंतरात्मा को प्रभावित करने में सक्षम है। फिल्म माता-पिता की बढ़ती आयु में होने वाली समस्यायों के प्रति जागरूक करती है। ये सार्थक फिल्म पिछली, वर्तमान और आगामी पीढ़ियों के हर वय के दर्शकों के देखे जाने योग्य है। अर्थपूर्ण, सुरुचिपूर्ण सिनेमा का जादुई प्रभाव समझने वाले दर्शकों को ‘गोल्डफिश’ अवश्य देखना चाहिए। उथला, छिछला मनोरंजन पसंद करने वाले दर्शकों को ये फिल्म पसंद नहीं आएगी।