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समीक्षा - रंगीले की रंगीनियत

ज्यादातर भारतीय फिल्म निर्देशक ‘पोस्ट इंटरवेल ब्लू’ यानी मध्यांतर के बाद फिल्म को झुला देने की आदत से पीड़ित रहते हैं। तो कुछ हद तक गुड्डू रंगीला के निर्देशक सुभाष कपूर भी इससे बच नहीं पाए हैं। लेकिन यदि खाप पंचायत के सामने लड़कियों की स्थिति पर एक शानदार तकरीर वाले दृश्य पर विचार किया जाए, आखिरी दृश्य में शोले स्टाइल की लड़ाई और इस तरह के दृश्यों को देखें तो लगता है कि भारतीय दर्शकों के लिए भी यह सब जरूरी है। आखिर बुरा आदमी लहूलुहान हो कर पिटे ही न, उससे परेशान दो लड़कियां हीरो स्टाइल में उसे गोली न मारे तो क्या मजा। आखिर यह मजा ही दर्शकों को सिनेमाघर में खींचता है।
समीक्षा - रंगीले की रंगीनियत

जॉली एलएलबी और फंस गए रे ओबामा निर्देशित करने वाले सुभाष कपूर ने दो लफूट किस्म के लड़कों को लेकर एक मनोरंजक कथा गढ़ी है। मनोज-बबली की हत्या की झलक लिए यह फिल्म हरियाणा के मिजाज को भांपती है। वहां की मानसिकता और संस्कृति का जायजा लेती है। सुभाष कपूर ने दर्शकों के लिए खूब सारे ‘ट्विस्ट एंड टर्न्स’ भी रखें जिससे दर्शक बंधे रह सकें। स्थानीय विधायक की दबंगाई, प्रेमी जोड़ों पर कहर और देसी टाइप का ऑरकेस्ट्रा करने वाले दो लड़के कैसे इन सब परिस्थिति में फंस कर अंत में विजेता बनने हैं यह देखने लायक है। इन दो लड़कों की किस्मत से एक और लड़की बेबी के तार भी जुड़े हैं जो अपना बदला लेने के लिए इन दोनों का इस्तेमाल करना चाहती है। तीनों मिल कर अपना बदला ले रहे हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि किस्मत दस साल पुरानी कड़ी को फिर जोड़ने के लिए तैयार है। फिल्म में एक्शन-इमोशन का भरपूर तड़का है। संवाद भी हंसाने के लिए पर्याप्त हैं और कुछ-कुछ सेमी पोर्न टाइप भी जो आपको अंधेरे में झेंपा दें।

 

कल रात माता का ई-मेल आया है, माता ने मुझे फेसबुक पे बुलाया है गाना जितना मजेदार है, उतनी ही मजेदार उसकी सिचुएशन है। गांव के एक लड़के को कीनिया का वीज मिलने की खुशी में यह गाना बजाना हो रहा है। फिल्म में गुड्डू रंगीला के चरित्र को स्थापित करने के लिए यह बिलकुल मुफीद है।

 

गुड्डू रंगीला बहुत ही रंगीनियत से भरी फिल्म है। यह फिल्म रंगीला (अरशद वारसी) से ज्यादा बिल्लू पहलवान (रोनित रॉय) की है। अरशद संवाद अदायगी की अपनी परफेक्ट टाइमिंग और सहजता के लिए याद रह जाएंगे तो रोनित ठेठ हरियाणी अंदाज को आखिरी तक निभाने ले जाने के लिए। बिल्लू के किरदार को उन्होंने सच में फिल्म में जिया है। इसके अलावा बंगाली के किरदार में दिब्येंदू भट्टाचार्य ने भी अपनी पकड़ को बना कर रखा है। गुड्डू (अमित साध) और बेबी (अदिति राव हैदरी) के लिए फिल्म में जितना करने को था उन्होंने उससे भी कम किया है।   

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