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समीक्षा - ये ‘गंगाजल’ प्रकाश झा का है

अपनी पुरानी फिल्म को झाड़-पोंछ कर दर्शकों के लिए फिर नया और देखने लायक कैसे बनाया जाता है यह तो प्रकाश झा से सीखा ही जाना चाहिए। शायद यही कारण है कि अपनी सफल फिल्म गंगाजल को झा ने जय गंगाजल नाम से फिर बना दिया।
समीक्षा - ये ‘गंगाजल’ प्रकाश झा का है

गंगाजल और जय गंगाजल में वही पुलिस और राजनेताओं के गठबंधन की कहानी है। एक पुलिस अफसर जो इस बार आभा माथुर (प्रियंका चोपड़ा) हैं को भी ईमानदार बने रहने का जुनून है। देवगन की तरह वह भी बेइमान और भ्रष्ट पुलिसवालों को छोटा सा भाषण देती हैं और अचानक उन पुलिसवालों का जमीर जाग उठता है। उस गंगाजल में भीड़ थाने में घुस कर अपराधियों की आंख में तेजाब डाल देती है और यहां भीड़ स्थानीय विधायक बबलू पांडे (मानव कौल) के छोटे भाई को सरेआम फांसी पर चढ़ा देती है।

यह तो हुई कहानी की बात। लेकिन चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अपनी दाढ़ी मुंडवा कर, रंगरूट की तरह बाल रखे निर्देशक झा बाबू जब बीएन सिंह का अवतार लेते हैं तो गजब ढा देते हैं। हर सीन में वह अपनी सीनियर यानी एसपी साहिबा (मिस चोपड़ा) पर भारी पड़ते हैं। बीएन सिंह का किरदार इस फिल्म का सबसे मजबूत किरदार है जिसे झा साहब ने अकेले ढोया है।

मानव कौल तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। मुंबई थिएटर की जान और मंच की दुनिया का जाना पहचाना नाम मानव इससे पहले वजीर में अपनी खलनायिकी का जलवा बिखेर ही चुके हैं। प्रियंका ने कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन जब दर्शक सिनेमाघर से बाहर निकलता है तो आभा माथुर की जगह बीएऩ सिंह ही दिमाग पर हावी रहता है।  

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