रिश्ते जब धागों की तरह उलझ जाएं तो परिवार कपूर लोगों की तरह हो जाता है। साथ रहते हुए भी एक-दूसरे के सिरे खोजते हुए। निर्देशक शकुन बत्रा ने भरेपूरे परिवार के खालीपन को इसी ढंग से निभाया है।
दो जवान बेटों राहुल (फवाद खान), अर्जुन (सिद्धार्थ मलहोत्रा) की मां (रत्ना पाठक शाह) के पास बस यही सुख है कि वह जवान बेटो की मां है। पति हर्ष (रजत कपूर) और ससुर (ऋषि कपूर) के साथ एक ढर्रे की जिंदगी में जब आठ साल पहले चले गए बेटे दोबारा दाखिल होते हैं तो परिवार का चेहरा सामने आने लगता है। जहां सब हैप्पी फैमिली फोटो में ही खुश और साथ हैं।
ऋषि कपूर ने 98 साल के बूढ़े के किरदार में जान डाल दी है। शकुन बत्रा ने हर किरदार को ‘स्पेस’ दिया है ताकि फिल्म खुद ब खुद कहानी कहे। इस वजह से लंबाई बढ़ गई और फिल्म कहीं-कहीं वैसी ही उलझी जैसे इस फिल्म के रिश्ते।
फवाद और आलिया, अभिनय के मामले में सिद्धार्थ से काफी आगे हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा को अभी काफी मेहनत की जरूरत है। रजत और रत्ना पाठक जैसे मंजे हुए कलाकारों के आगे सिद्धार्थ बिलकुल नहीं टिक पाते।
एक आइटम सॉन्ग, कुछ भावनात्मक दृश्य और ढेर सारा तनाव अंत में बस वहीं तक पहुंचते हैं जहां हैप्पी एंडिंग की तख्ती लटकी होती है। सिवाय एक दुर्घटना के।