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चलताऊ गुंडे – मेरठिया गैंगस्टर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का शहर मेरठ और वहां के कम पढ़े-लिखे बेरोजगार लड़के। वैसे ही जैसे खाली दिमाग शैतान का घर टाइप होते हैं। छोटी मोटी छेड़खानी और गुंडागर्दी से ही जिनका काम चलता है एक दिन उस समूह के लड़के अचानक खुद को एक बड़े गैंग के रूप में पाते हैं।
चलताऊ गुंडे – मेरठिया गैंगस्टर

मेरठिया गैंगस्टर पर अनुराग कश्यप की छाप दिखाई पड़ती है। जीशान कादरी आखिर कश्यप स्कूल के ही हैं। इस फिल्म का संपादन अनुराग कश्यप ने किया है। लेकिन वह तेजी और कसाव फिर भी नदारद है जो उनकी अपनी फिल्मों में हुआ करता है।

बेरोजगार लड़के एक दिन अचानक गैंगस्टर के रूप में बदल जाते हैं। दो अपहरण और कुछ चुटीले संवाद-दश्यों के यह फिल्म दो घंटे खींच ही लेती है। अगर इसे व्यवस्थित ढंग से बनाया जाता तो यकीनन यह अच्छी फिल्म बन सकती थी। अनुराग की फिल्म के सारे तत्व इसमें मौजूद हैं, फिर भी यह फिल्म बांध नहीं पाती है।

मेरठ और आसपास के लोगों को शायद भाषा और लोकेशन से थोड़ा जुड़ाव हो पर यह गैंगस्टर भी फीके ही रहे हैं। संजय मिश्रा उम्दा कलाकार हैं। अगर वह ऐसे ही लगातार फिल्मों में आते रहे और ऐसी ही एक जैसी भूमिकाएं निभाते रहे तो जल्दी ही अपनी चमक खो देंगे।  

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