भड़कीली चीजें हमेशा ही कम चमकदार चीजों को ढक लेती हैं। कम बजट की फिल्म न्यूटन के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम की बहन पर बनी हसीना पारकर, संजय दत्त की कमबैक मूवी भूमि और रही सही कसर द फाइनल एक्जिट ने निकाल दी है। ऐसे में राजकुमार राव की न्यूटन पर ध्यान सबसे आखिर में जा रहा है, जबकि पहला नंबर तो उन्हीं का होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके में चुनाव अधिकारी के साथ हुई घटनाएं और चुनाव प्रक्रिया को बहुत करीब से दिखाती यह फिल्म देखने लायक है। राजकुमार राव दिन ब दिन निखरते जा रहे हैं। वह इतनी सहजता से अभिनय करते हैं कि हर सीन को देखकर लगता है जैसे वह उसी सीन के लिए बरसों मेहनत करते रहे हैं। इस फिल्म का बजट कम है, कोई बड़ा सितारा भी नहीं फिर भी यह फिल्म बांधे रखती है टॉकीज से बाहर आ कर लगता है कि कुछ सार्थक देख कर निकले। जो लोग हल्की और सारगर्भित फिल्में देखना पसंद करते हैं उनके लिए तो यह वाकई पैसा वसूल फिल्म साबित होगी। निर्देशक अमित मसूरकर ने फिल्म के लिए वाकई मेहनत की है।
अब बात करें, चर्चित फिल्म हसीना पार्कर की। दाउद की बहन ने लंबे समय तक अपने भाई का अंडरवर्ल्ड कारोबार संभाला। लेकिन यह फिल्म देखकर लगता है कि अब बॉलीवुड को बस यही दिन देखना बाकी बचे थे कि दाउद और उसकी बहन से सहानुभूति होने की हद तक दर्शकों झकझोरा जाए। कोर्ट रूम ड्रामा ऐसा कि हंसी आती है कि जज को भी लगने लगे कि दाउद की बहन बेचारी!
लेकिन फिर भी यह बेचारगी कमजोर स्क्रिप्ट के चलते दब गई है। श्रद्धा कपूर ने अपने दुधिया गोरे रंग को बहुत हल्का किया, पान चबाया, काले लंबे बुरके पहने लेकिन वह वैसा जादू नहीं जमा पाईं जैसा ट्रेलर देख कर लग रहा था। हालांकि हसीना पारकर के रोल में उन्होंने मेहनत की है यह देख कर लगता है। उनके भाई सिद्धांत कपूर ने पहली बार के लिहाज से अच्छा अभिनय किया है। निर्देशक अपूर्व लखिया ने 1980 की मुंबई को बहुत अच्छे से पकड़ा है। काश वह कहानी को भी अपनी पकड़ में रख पाते।